योग मैट क्या है
गंभीरता से नियमित योगाभ्यास करने वालों को योगा मैट की जरूरत होती है। योगा मैट गिरने या किसी तरह की चोट से बचाने में काम आता है। देर तक अपने आप को बैलेंस रखने के लिए भी योग मैट काम आता है। योग मैट रबर का, सूती कपड़े का पतला और मोटा दोनों तरीका का हो सकता है। योग के लेवल के हिसाब से आप सही योगा मैट का चयन कर सकते हैं।
योग मैट का इतिहास
ऋषि मुनियों के युग में ही योग की शुरुआत हो गई थी। साधु-संत पहाड़ियों, हिमालय की चोटी, जंगलों और गुफाओं आदि में योग किया करते थे। लेकिन उस समय योग मैट नहीं हुआ करती थी। वह जमीन पर ही योग करते थे। 1970 के दशक में लोग योग करने के लिए दरी या चटाई का उपयोग करते थे। उस समय योग करने के लिए लोग जमीन पर दरी बिछाया करते थे। बाद में दरी और चटाई का स्थान रबर की मैट ने ले लिया। लेकिन योग करने के लिए जमीन पर कुछ बिछाने या योग मैट की जरूरत क्यों और किसने महसूस की गई?
पहली बार योग मैट का इस्तेमाल
पहली बार योग मैट की जरूरत को योग गुरु बीकेएस आयंगर ने महसूस किया। पहले वह भी अन्य लोगों की तरह की जमीन में कंबल बिछाकर योग किया करते थे। लेकिन 1960 में योग गुरु बी के एस आयंगर यूरोप के देशों में योग की कक्षाएं लेने के लिए गए। यूरोपियन यानी विदेशी छात्रों को योग करते समय फर्श पर खड़े होकर आसन करने में परेशानी होती थी। विदेशी नंगे पैर फर्श पर खड़े होकर योग करने में फिसलन महसूस करते थे। वह योग में ध्यान नहीं लगा पाते थे क्योंकि उनका ध्यान गिरने से बचने पर लगा रहता था।
बीकेएस अयंगर ने योग मैट की जरूरत को समझा
भारत में योग करते समय यह परेशानी इसलिए महसूस नहीं की गई, क्योंकि यहां की फर्श की बनावट इतनी फिसलन वाली नहीं थी और अधिकतर लोग योग बाहर खुले मैदान या कुडप्पा नाम के चट्टान के बने पत्थरों पर किया करते थे। हालांकि विदेशी देशों के फर्श अलग तरह के होने के कारण वहां जमीन पर योग करना मुश्किल होता था। योग गुरु विदेशी योगा छात्रों की इस मुश्किल को समझते थे और इसका कुछ हल निकालना चाहते थे। एक बार योग गुरु जर्मनी में थे, जहां फर्श से फिसलकर वह गिरने वाले थे लेकिन कार्पेट के नीचे रखी रबर की चटाई ने उन्हें गिरते-गिरते बचा लिया। यहां से उन्हें योग मैट का विचार आया कि योग मैट छात्रों का आसन के दौरान फिसलने से बचाएगी। इस विचार के साथ कंबल को हटाकर उन्होंने रबर की चटाई का इस्तेमाल मैट के तौर पर किया।
स्टिकी मैट
रबर की इस मैट का रंग हरा हुआ करता था, फिसलने से बचाने के कारण इसे स्टिकी मैट कहा जाता था। ब्रिटेन के छात्रों ने जर्मनी से इस पहले रबर मैट के सेट को खरीदा। उस समय इस तरह की मैट कालीनों के नीचे बिछाई जाती थी। लेकिन इनका ट्रेंड खत्म होने के कारण कंपनियां बंद हो रही थीं। तो इन रबर मैट को योग के लिए पुनर्जीवित किया गया। हरे स्टिकी मैट की तरह की जर्मनी में नीले मैट बनाए गए।
जर्मनी योगा मैट का निर्माता
अब तक जर्मनी योग मैट का मुख्य निर्माता बन चुका था और यूके, यूरोप व अमेरिका जैसे देशों में योग मैट का इस्तेमाल शुरू हो गया था। हालांकि भारत में ऐसे मैट तब तक उपलब्ध नहीं थे और न ही उस समय तक इनकी भारत में आवश्यकता महसूस की गई थी। लेकिन बाद में जब विदेशी छात्र भारत में योग सीखने के लिए आए तो पुणे में ही वह अपनी मैट छोड़ गए। भारत में इन मैट को संभालकर रखा गया। पिछले 20 सालों में कई देशों में मैट्स का निर्माण और निर्यात देखा गया। सबसे ज्यादा जर्मनी, यूएसए और चीन में मैट बनते हैं। अब इन मैट को स्टिकी मैट न कह कर योग मैट नाम मिल चुका है। मैट्स की आवश्यकता बढ़ने के बाद नाइकी और रीबाॅक जैसी कंपनियां ब्रांडेड मैट के तौर पर बेचती हैं। योग मैट का उद्योग बिलियन डॉलर का हो चुका है।
भारत में नहीं बनते योग मैट
भारत योग गुरु बन चुका है। भारत से ही योग का प्रसार हुआ। योग मैट की जरूरत को बी के एस आयंगर ने महसूस कर इसका उपयोग शुरू कराया लेकिन ताज्जुब की बात है कि भारत में अभी भी योग मैट की निर्माण नहीं होता है। पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए चीन से योग मैट आयात किए गए थे। जिसके लिए भारत ने 92 लाख रुपये खर्च किए थे।