History Of Saree: हमारी संस्कृति,हमारी परंपरा हमेशा से बेहद अलग और खास रही है. खान-पान से लेकर पहनावे तक प्राचीन समय से ही हमारा अंदाज सबसे अलहदा रहा है. खासकर महिलाओं के परिधानों की बात ही अलग है. जिसमें बेहद विशेष है साड़ी. सदियों से ही महिलाओं के लिए साड़ी एक महत्वपूर्ण परिधान रहा है. तीज-त्यौहार और तमाम विशेष मौकों पर महिलाएं इसे पहनकर सजती-संवरती हैं. अपने इस आर्टिकल में हम आपको साड़ी के इतिहास और उससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताएंगे-
साड़ी की खासियत-भारतीय संस्कृति में साड़ी का है खास महत्व
यह विश्व में शायद सबसे लम्बा बिना सिला हुआ परिधान है. इसकी लम्बाई 5 से 6 फीट तक की होती है. यह विश्व में पांचवा सबसे ज्यादा पहना जाने वाला परिधान है. अलग अलग राज्यों में अलग अलग प्रकार की साड़िया मिलती है. साड़ियों को पहनने का तरीका भी अलग-अलग होता है.
कुछ मशहूर साडियां-
मध्य प्रदेश की चंदेरी और माहेश्वरी साड़ी, गुजरात की बांधनी साड़ी, राजस्थान की लहरिया साड़ी, असम की मूंगा सिल्क साड़ी, तमिलनाडु की कांचीवरम, उत्तर प्रदेश की बनारसी,तांची,जामदानी साड़ी, महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी आदि खूबसूरत साड़ियों के उदाहरण हैं.
खास मौकों पर अलग रंग की साड़ी-
साड़ी को अलग-अलग रीति रिवाजों के अनुसार खास समय पर खास रंगों के अनुसार पहना जाता हैं. हरियाली तीज के अवसर पर महिलाएं हरे रंग की साड़ी पहनना पसंद करती हैं. ऐसे ही कई अन्य मौके जैसे दुर्गा पूजा और दूसरे खास त्यौहार या समारोह.
साड़ी का इतिहास -
एक परिधान के रूप में साड़ी का इतिहास बहुत पुराना है. इसका सबसे पहला उल्लेख वेदों में मिलता है. यज्ञ और हवन के समय साड़ी पहनने का उल्लेख है. सिर्फ वेदों में ही नहीं बल्कि महाभारत में भी इसका उल्लेख है. महाभारत में जब दुशासन ने द्रौपदी का चीर हरण करने की कोशिश की तो श्री कृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी की लम्बाई बढ़ाकर उनकी रक्षा की.
जी-आई टैग प्राप्त खास साड़ियां-
कर्नाटक की इल्कल साड़ी,मोलाकलमुरु साड़ी, उडुपी साड़ी, केरल की कासरगोड साड़ी, कुथमपल्ली साड़ी, मध्य प्रदेश की माहेश्वरी साड़ी, ओडिशा की संबलपुरी बंध साड़ी, बोमकाई साड़ी,हबसपुरी साड़ी, तमिलनाडु की कंडांगी साड़ी, ऐसे ही अन्य राज्यों