Life Style लाइफ स्टाइल : मुगल बादशाह जहांगीर से जब उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उनका जवाब था, "सिर्फ कश्मीर।" बता दें, कि यहां वह सिर्फ कश्मीर की खूबसूरती का ही उल्लेख नहीं कर रहे थे, बल्कि यहां मिलने वाले शाही पकवानों का जिक्र भी कर रहे थे। कहा जाता है कि 1586 में इस राज्य पर कब्जा करने पर मुगलों को वाजवान (Wazwan) परोसा गया था, जिसमें मीट से बनाई गई 36 डिशेज थी। बता दें, कि मांसाहार के शौकीन लोगों के लिए इसका स्वाद चखना किसी सपने से कम नहीं होता है। आज वाजवान सिर्फ शादियों, देवगन (कश्मीरी सगाई समारोह) या ऐसे ही कुछ खास अवसरों के लिए तैयार किया जाता है।
वाजवान दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला वाजा और दूसरा वान। वाजा यानी पेशेवर कुक और वान मतलब शॉप। जानकारी के लिए बता दें, कि 'वाजा' प्रोफेशनल पर्शियन कुक को कहा जाता था, जिन्होंने इसकी दुकान खोली थी। वहीं, वक्त के साथ-साथ जश्न के तरह-तरह के लजीज खाने को वाजवान का नाम दे दिया गया।
कश्मीर में मशहूर है शैतान वाजा
अगर आप कश्मीर में हैं, तो ऐसा नहीं हो सकता कि आपने शैतान वाजा (Shaitan Waza) उर्फ मुश्ताक अहमद खान (Mushtaq Ahmed Khan) का नाम नहीं सुना हो। दरअसल, शैतान वाजा के ग्रेट ग्रैंड फादर ने वाजवान की 53 डिशेज बनाई थीं। ऐसे में खाने वाले महाराज ने कहा, कि एक मीट में इतनी डिशेज बनाना किसी आम इंसान का नहीं, बल्कि शैतान का ही काम हो सकता है। वाजवान में कोरमा (Korma), यखनी (Yakhni), तबक माज (Tabak Maaz) और गुश्ताबा (Gushtaba) जैसे शाही व्यंजनों के अलावा 14 तरह का कोरमा भी शामिल होता है।
सर्द मौसम में देता है शरीर को गर्माहट
यह एक मल्टी कोर्स कश्मीरी खाना है, जिसमें ज्यादातर मीट से बनी डिशेज ही देखने को मिलती हैं। वजह है, कि यह भोजन कश्मीर के सर्द मौसम में शरीर को गर्म रखने में मदद करता है। वहीं, इसमें कुछ वेजिटेरियन डिशेज भी शामिल होती हैं, इसलिए शाकाहार खाने वाले लोगों को भी टेंशन लेने की जरूरत बिल्कुल नहीं है।
तिजोरी में रखे जाते हैं इसके मसाले
भारतीय खाने में मसाले कितनी अहम भूमिका निभाते हैं, इस बारे में हर कोई जानता है। बता दें, कि वाजवान में भी ऐसा ही है। हालांकि, मजेदार बात ये है कि इसके सीक्रेट्स की ऐसी रखवाली होती है, जैसी मुगल एंपायर की होती थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि वाजवान में डाले जाने वाले इन मसालों को तिजोरी में रखा जाता है, जिसकी चाभी शैतान वाजवान के पास ही रहती है। इन्हें पीसने से लेकर बनाने और इस्तेमाल करने का तरीका किसी को बताया नहीं जाता है।
वाजवान को बनाने में लगते हैं इतने दिन!
अगर आप गुश्ताबा (Gushtaba) या रिस्ता (Rista) को देखेंगे, तो इसे मीट के बोनलेस टुकड़ों से बनाया जाता है। मीट में फैट मिलाकर लकड़ी के हथौड़ों से कूटा जाता है, जिससे यह स्पंज बॉल जैसा गठा हुआ हो जाता है। इसके बाद इसमें घंटों की मेहनत लगती है और लकड़ी की धीमी आंच पर पकते-पकते कई बार पूरी रात भी बीत जाती है। किसी शानदार वाजवान को बनाने में 2 दिन लगते हैं, इसकी तैयारी में एक दिन और कुंकिग में करीब आधा दिन। देखा जाए, तो यह मीट के सबसे एलेबोरेट फॉर्म्स में से एक है। जाहिर है, वाजवान रोज-रोज खाया जाने वाला आम खाना नहीं है और इसे सिर्फ खास मौके पर ही सर्व किया जाता है।