फिजिकल रिलेशन से जुड़े इन मिथकों पर कभी ना करें यकीन

पर कभी ना करें यकीन

Update: 2023-09-06 14:00 GMT
जब भी बात फीमेल प्लेजर की आती है, तो लोग अधिकतर इस तरह की बातें करने लगते हैं कि उन्हें इसके बारे में कुछ पता नहीं और इसके बारे में बात करना गलत है। ऐसा नहीं है कि भारत में कोई सेक्शुअल एजुकेशन की बात नहीं करता, लेकिन फिर भी अवेयरनेस की कमी है। इंटिमेसी, सेक्स, प्लेजर और रिप्रोडक्शन की बात बहुत ज्यादा नहीं की जाती है। परिवार के बीच अगर इस तरह की बात की जाए तब तो विवाद भी हो जाता है।
इंटिमेसी की बात करें, तो लोगों को इस बारे में फर्क ही नहीं समझ आता कि इंटिमेसी और इंटरकोर्स या सेक्स में क्या अंतर है। एक इंस्टाग्राम लाइव में सेक्शुएलिटी एजुकेटर अपुरूपा वात्सल्य ने हरजिंदगी की कृति पुरवार से बात की और इंटिमेसी से जुड़े कुछ मिथकों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि किस तरह लोग अपनी ही इच्छाओं और जरूरतों के बारे में बात नहीं करते हैं।
आज हम आपको ऐसी ही कुछ बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।
मिथक : सेक्शुअल प्लेजर सिर्फ इंटरकोर्स तक सीमित है
सबसे पहला मिथक जिस पर लोग यकीन करते हैं वो यही है कि सेक्शुअल प्लेजर के लिए पेनिट्रेशन और ऑर्गेज्म बहुत जरूरी है। अपुरूपा के अनुसार, सेक्शुअल प्लेजर का मतलब पूरे फिजिकल और मेंटल एक्सपीरियंस से है। इंटिमेसी का मतलब है कि आप अपने एक्सपीरियंस को बढ़ा रहे हैं। अपुरूपा के अनुसार ये लॉटरी जीतने जैसा है। पूरा सेक्शुअल प्लेजर 100 करोड़ है, तो इंटरकोर्स और पेनिट्रेशन उसका सिर्फ 10वां हिस्सा ही होगा।
इंटिमेसी की बात करें, तो इमोशनल कनेक्शन भी बेहतर होगा। फिजिकल कनेक्शन जरूरी है, लेकिन इमोशनल कनेक्शन को लेकर भी जरूरत बढ़ती ही है। अगर आप पूरे एक्सपीरियंस की बात कर रहे हैं, तो आपको उसे एन्जॉय करना भी जरूरी है।
मिथक : सेल्फ प्लेजर या मास्टरबेशन चीटिंग होता है
अपुरूपा के अनुसार, कमिटेड रिलेशनशिप में लोग सेक्शुअल प्लेजर के बारे में बात तो करते हैं, लेकिन सेल्फ प्लेजर को गलत मानते हैं। मेल या फीमेल मास्टरबेशन प्लेजर के टूल्स होते हैं ना कि कुछ और। इसे आप चीटिंग नहीं बोल सकते हैं। अपुरूपा के अनुसार, "बात चाहे सेक्स टॉयज यूज करने की हो या फिर किसी और चीज की, लेकिन सेल्फ प्लेजर गलत नहीं हो सकता है। वो आपके सेक्शुअल एक्सपीरियंस को बढ़ा सकता है, उसे किसी कम्पटीशन की तरह देखना गलत होगा।"
इतना ही नहीं कुछ लोगों के अनुसार सेल्फ-प्लेजर आपके रिलेशनशिप को बेहतर बना सकता है। अपुरूपा के अनुसार, सेक्शुएलिटी को लेकर दो तरह की डिजायर हो सकती हैं, त्वरित या प्रतिक्रिया के आधार पर जन्मी इच्छा। त्वरित इच्छा किसी फिल्म या किसी एक्ट के जरिए हो सकती है, लेकिन प्रतिक्रिया वाली इच्छा समय लेती है और उसके लिए आपके पार्टनर का सहयोग जरूरी है।
मिथक : एक उम्र के बाद सेक्शुअल प्लेजर नहीं मिलता
कई बार लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें किस तरह का प्लेजर चाहिए। दरअसल, सभी उम्र के लोगों को किसी ना किसी तरह का सेक्शुअल प्लेजर हो सकता है। इसकी शुरुआत प्यूबर्टी से ही हो जाती है। टीनएजर्स के हार्मोनल बदलावों का असर उनके शरीर पर होता है, उनकी सेक्शुअल इच्छाएं और तीव्र हो जाती हैं। हालांकि, बच्चों के मामले में हमें सेक्शुअल एब्यूज और उनके मन में पैदा होने वाले सवालों की बात जरूर करनी चाहिए।
अपुरूपा ने फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' का उदाहरण देते हुए बताया कि बड़ी उम्र के लोगों को भी इस तरह की चीजें एक्सप्लोर करने का हक होता है।
मिथक : लुब्रिकेंट का इस्तेमाल जरूरी नहीं होता है
अपुरूपा के अनुसार, लुब्रिकेंट को लेकर बहुत ज्यादा या कम कुछ नहीं होता है। अगर आपको और आपके पार्टनर को जरूरत है, तो खासतौर पर लुब्रिकेंट का इस्तेमाल करना होगा। लुब्रिकेंट असल में पेनिट्रेशन को बेहतर बनाते हैं और इससे पूरा सेक्शुअल एक्सपीरियंस अच्छा होता है। इससे कटना, जलना, छिलना और ये सारी समस्याएं कम हो सकती हैं। हालांकि, सेंटेड लुब्रिकेंट का इस्तेमाल कम करना चाहिए। इनसे यीस्ट इन्फेक्शन होने का खतरा बना रहता है।
मिथक : इंटिमेसी पाने का एक ही तरीका होता है
हरजिंदगी से बात करते हुए अपुरूपा ने बताया कि फिजिकल इंटिमेसी के कई तरीके हो सकते हैं। इसे किसी एक दायरे में बांधना जरूरी नहीं है। यह एक अजीब तरह का मिथक है कि लोगों को एक ही तरह से सेक्शुअल प्लेजर लेना चाहिए। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हर जोड़ा अपने लिए अलग एक्सपेरिमेंट कर सकता है।
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