Lifestyle: जाने गुड और बैड स्ट्रेस में फर्क

Update: 2024-08-29 13:14 GMT
Lifestyle जीवन शैली: आज के मॉडर्न लाइफस्टाइल और भागदौड़ भरी जिंदगी में ना जाने कितने मसले इंसान के साथ होते रहते हैं. ऐसे में व्यक्ति को किसी न किसी बात को लेकर स्ट्रेस होना बहुत आम बात है. शायद ही ऐसा कोई इंसान होगा जो स्ट्रेस न लेता हो. जब भी हमें कोई जरूरी फैसला लेना होता है. तब हम उसके बारे में सही से सोचते हैं. उसके बाद ही किसी परिणाम पर पहुंचते हैं. किसी बात को लेकर चिंता करना बहुत ही आम बात है. लेकिन कई लोग किसी बात को लेकर हद से
ज्यादा
सोचने लगते हैं, जिससे वो स्ट्रेस में रहने लगते हैं. जिसके कारण व्यक्ति की सेहत पर भी गलत प्रभाव पड़ सकता है. लेकिन वहीं स्ट्रेस हमें कई तरह की परिस्थिति से निकलने में भी मदद करता है.
स्ट्रेस दो तरीके के होते हैं एक गुड स्ट्रेस और दूसरा बेड स्ट्रेस. हर एक व्यक्ति किसी परिस्थिति में सोच विचार करने के बाद ही फैसला लेता है. ऐसे में थोड़ा बहुत Stress लेना सही रहता है. लेकिन अगर आप छोटी से छोटी बात के बारे में लगातार सोच रहें और उस परिस्थिति से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और इससे आपकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है तो वो बेड स्ट्रेस भी हो सकता है. आइए जानते हैं इसके बारे में एक्सपर्ट से
गुड और बेड स्ट्रेस में अंतर
स्ट्रेस थोड़ा बहुत होना जरूरी है. लेकिन अगर स्ट्रेस ज्यादा हो जाता है तो ये भी सही नहीं होता है. जैसे कि अगर ट्रैफिक लाइट रेड होने पर जब गाड़ी रोकते हैं तो उस समय अगर आप स्ट्रेस नहीं लेंगे और उसकी जगह ये सोचेंगे की जब भीड़ पूरी निकल जाएगी तब हम निकलेंगे तो ऐसे में ट्रैफिक लाइट दोबारा से रेड हो जाएगी और आप इस लाइट को कभी भी पार नहीं कर पाएंगे. लेकिन अगर आप उस समय ज्यादा स्ट्रेस लेंगे और जल्दबाजी करेंगे तब भी आप भीड़ में कहीं फंस सकते हैं. क्योंकि उस समय हम भीड़ में से कैसे भी निकलने के कोशिश करते हैं. लेकिन कई बार जल्दबाजी के कारण भीड़ में फस जाते हैं. ऐसे में अगर गुड स्ट्रेस रखा, तो हम लाइट के ग्रीन होने पर समझदारी से भीड़ में भी अपनी जगह बनाकर आगे निकल जाते हैं.
गुड स्ट्रेस में व्यक्ति समझदारी और आराम से काम लेता है. वहीं बेड स्ट्रेस में व्यक्ति बस जल्दबाजी करता और उस परिस्थिति से बाहर निकलने के प्रयास करते है. जिसके कारण कई बार परिस्थिति ज्यादा खराब हो जाती है. अगर हम एक ही परिस्थिति के बारे में सोचते जा रहे हैं और उससे बाहर नहीं आ पा रहे हैं तो वो बेड स्ट्रेस बन सकता है.
डॉक्टर का कहना है कि अगर स्ट्रेस हमारी लाइफ के रूटीन और काम को इफेक्ट कर रहा है. जो हमारे फ्यूचर को इफेक्ट कर रहा है वो बेड स्ट्रेस में आता है. वहीं पास्ट लाइट या फ्यूचर को लेकर चिंता करते रहना भी बेड स्ट्रेस में आता है. अगर स्ट्रेस हमें 
Motivate 
कर रहा है और हमें आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रहा है. किसी मुश्किल या बुरी परिस्थिति से हमें बाहर निकलने में मदद कर रहा है. साथ ही अगर हम प्रेजेंट के बारे में ज्यादा सोच रहे हैं तो वो गुड स्ट्रेस कहलाता है.
गुड और बेड स्ट्रेस को ऐसे पहचानें
अगर स्ट्रेस गुड होगा तो व्यक्ति को घबराहट नहीं होगी और पसीने नहीं आएंगे साथ ही व्यक्ति के अंदर कॉन्फिडेंस रहता है. वहीं बेड स्ट्रेस में व्यक्ति को घबराहट, पसीने आना और चलने में मुश्किल के अलावा कई तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं. साथ ही आप जो काम करना चाह रहे हैं तो बेड स्ट्रेस के कारण नहीं कर पाएंगे. जैसे एग्जाम में अगर स्ट्रेस ज्यादा बढ़ जाए तो आप सही से लिख नहीं पाएंगे, लेकिन अगर थोड़ा से स्ट्रेस हुआ तो आप पॉजिटिव तरह से याद करने की कोशिश करते है कि आपने इस विषय के बारे में क्या और कहां पर पड़ा था.
Tags:    

Similar News

-->