आजकल कोरोना वायरस का संक्रमण अधिक ख़तरनाक इसलिए भी माना जाने लगा है, क्योंकि इसके सिम्पटम्स यानी लक्षण दिख नहीं रहे हैं। हालांकि इसका एक लक्षण अब भी इसकी पहचान करने में काफ़ी कारगर साबित हो रहा है। और वह है शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाना। शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो कोरोना ही नहीं कई और बीमारियों का संकेत है।
शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर सबसे ख़तरनाक असर हमारी इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है। इस स्थिति में कोई भी वायरस और बैक्टीरिया हमारे शरीर पर हावी हो सकता है। शरीर ऊर्जा का निर्माण नहीं कर पाता तो अचानक से हमें कमज़ोरी का अनुभव होने लगता है।
क्यों ज़रूरी है शरीर के लिए ऑक्सीजन, कितनी होनी चाहिए इसकी मात्रा?
शरीर में ऑक्सीजन का स्तर यह बताता है कि कितनी ऑक्सीजन हमारे ख़ून के माध्यम से पूरे शरीर में सर्कुलेट हो रही है। ऑक्सीजन को पूरे शरीर में कैरी करने का काम रेड ब्लड सेल्स करती हैं, वे फेफड़ों से ऑक्सीजन लेती हैं और उसे शरीर की हर कोशिका तक पहुंचाती हैं। सेल्स को ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
जब तक शरीर में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य बना रहता है, तब तक हमारा शरीर दुरुस्त रहता है। ब्लड ऑक्सीजन लेवल का सामान्य स्तर 75 से 100 मिलीमीटर होता है। वहीं जब ऑक्सीजन का स्तर 60 मिलीमीटर से कम हो जाता है, तब यह ख़तरे का संकेत है। ऐसे व्यक्ति को तुरंत ऑक्सीजन सप्लिमेंट्स की ज़रूरत पड़ सकती है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी को हाइपोएक्सेमिया कहा जाता है।
शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को मापने के दो प्रचलित तरीक़े हैं। सबसे आसान है पल्स ऑक्सीमीटर की मदद से इसका स्तर जांचना। लेकिन एक्युरेट रिज़ल्ट के लिए आर्टिरियल ब्लड गैस या एबीजी टेस्ट कराया जाता है। एबीजी में आम तौर पर कलाई के पास से ख़ून का सैम्पल लेकर लैब में टेस्ट किया जाता है। इसका नतीजा एकदम सही आता है।
वहीं भले ही पल्स ऑक्सीमीटर आसान हो, पर इसके नतीजे की एक्युरेसी पर बहुत ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। इसमें हाथ की उंगलियों पर एक छोटा-सा डिवाइस लगाया जाता है, जो व्यक्ति की पल्स के आधार पर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बताता है। घरों में इस्तेमाल के लिए यह एक अच्छा और उपयोगी डिवाइस है।
कैसे पता चलता है कि शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो रहा है?
जैसा कि हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि शरीर को अपनी सभी क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए 70 से 100 मिलीमीटर ऑक्सीजन स्तर की ज़रूरत होती है। जब उसका स्तर इससे नीचे जाता है, तब शरीर की नियमित क्रियाएं बाधित होती हैं, जिसका सबसे पहला असर थकान के रूप में दिखाई देने लगता है। सांस लेने में दिक़्क़त होने लगती है।
कुछ लोगों की सांस फूलने लगती है। शरीर में रक्त का प्रवाह धीमा पड़ जाता है, जिसकी वजह से बेचैनी और घबराहट बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में दिल की धड़कन असामान्य रूप से बढ़ जाती है। तेज़ सिरदर्द, सीने में दर्द, देखने में समस्या, सिर चकराना, शरीर का लड़खड़ाना जैसे कई दूसरे लक्षण भी ऑक्सीजन की कमी की ओर इशारा करते हैं।
क्या हैं शरीर में ऑक्सीजन की कमी के कारण?
रक्त में ऑक्सीजन का स्तर अचानक कम हो जाना हवा में ऑक्सीजन कम होने के चलते भी हो सकता है। अगर फेफड़े ठीक तरह से काम नहीं करते तो भी यह समस्या हो सकती है। यदि फेफड़ों तक रक्त का सर्कुलेशन ठीक तरह नहीं हो पाता तो भी शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
जो लोग फ़िज़िकली ऐक्टिव नहीं रहते उनके शरीर में भी ऑक्सीजन का स्तर कम होता है।
इसकी कमी का संबंध हमारे खानपान से भी है। आपकी डाइट अगर सही नहीं होगी तो आप ख़तरे में पड़ सकते हैं। ख़ासकर अगर आपके खानपान में आयरन की मात्रा कम है तो रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम होगी ही। आयरन लाल रक्त कोशिकाओं यानी रेड ब्लड सेल्स का एक प्रमुख घटक है। और फेफड़ों सहित पूरे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह करने में रेड ब्लड सेल्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
शरीर में ऑक्सीजन की कमी किन बीमारियों का है संकेत?
बहरहाल हम अभी की सबसे बड़ी बीमारी यानी कोरोना महामारी के संबंध में बात करें तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी यह संकेत देती है कि आपके फेफड़े ठीक तरह से काम नहीं कर रहे हैं। यह तो हम जानते ही हैं कि कोरोना का संक्रमण फेफड़ों को डैमेज कर देता है। जिन लोगों को दमा की समस्या होती है, उनमें भी दमा का अटैक आने पर शरीर की ऑक्सीजन कम हो जाती है।
यदि शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हो जाए तो ब्रेन डैमेज और हार्ट अटैक तक की स्थिति बन जाती है। शुगर के रोगियों में यदि ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो उनकी शुगर अचानक बहुत अधिक बढ़ सकती है, जो कि एक जानलेवा स्थिति भी बन सकती है। शुगर बढ़ने का कारण यह है कि ब्लड ग्लूकोज़ का रूपांतरण ऊर्जा में होना रुक जाता है।
ऑक्सीजन का स्तर अचानक से बहुत अधिक घट जाने पर शरीर में थायरॉइड हार्मोन्स का संतुलन गड़बड़ा जाता है। इस स्थिति में थायरॉइड का स्तर या तो बहुत अधिक बढ़ सकता है या बहुत अधिक घट सकता है। इससे हाइपोथायरॉइडिज़्म या हाइपरथायरॉइडिज़्म की समस्या हो सकती है।