जानिए नेशनल डॉक्टर डे के मौके पर जानिए भारत की पहली महिला डॉक्टर के बारे मे...

एक जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। इस दिन देशभर के सभी डॉक्टरों का सम्मान किया जाता है

Update: 2022-07-01 04:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एक जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। इस दिन देशभर के सभी डॉक्टरों का सम्मान किया जाता है। डॉक्टरों को अपने काम, सेवा भाव और जीवन रक्षा के लिए किए जा रहे प्रयत्नों पर आभार दिया जाता है। भारत में सैकड़ों डॉक्टर हैं, जो हर तरह के रोग और समस्याओं से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए काम करते हैं। कोरोना काल में तो डॉक्टरों के सेवा भाव को हर किसी ने महसूस किया। उनकी लगन और मरीजों की देखरेख में पीपीटी किट पहन घंटों काम करते रहने वाले डॉक्टरों के लिए हर दिल में सम्मान बढ़ा। वैसे तो डॉक्टर सिर्फ डॉक्टर होते हैं, उनमें महिला पुरुष जैसा कुछ भी महसूस नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन महिलाओं का मेडिकल के क्षेत्र में आना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। आज हमारे देश में बहुत सारी महिला डाॅक्टर्स हैं, जो कई अलग अलग रोगों के विशेषज्ञ के तौर पर कार्य कर रही हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत की पहली महिला डॉक्टर कौन हैं? उस महिला ने डॉक्टर बनने की क्यों ठानी? कैसे एक महिला ने डॉक्टर बनने का सफर तय किया। नेशनल डॉक्टर डे के मौके पर जानिए भारत की पहली महिला डॉक्टर के बारे में।

देश की पहली महिला डॉक्टर कौन है?
भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी हैं। आनंदीबेन जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे के जमींदार परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम यमुना था लेकिन शादी के बाद ससुराल में उन्हें आनंदी नाम से पुकारा जाने लगा। इन दिनों शादी के बाद लड़कियों के सरनेम के साथ ही पूरा नाम ही बदल जाता था।
16 साल बड़े पुरुष से हुई शादी
आनंदी की शादी महज 9 साल की उम्र में कर दी गई थीं। उनके पति गोपालराव आनंदी से 16 साल बड़े थे। पहली पत्नी के निधन के बाद 25 साल के गोपाल राव ने आनंदी से शादी की। दोनों के बीच उम्र का काफी फासला था लेकिन गोपालराव और उनका परिवार आनंदी से बहुत प्रेम करता था। महज 14 साल की उम्र में आनंदी ने बच्चे को जन्म दिया। लेकिन उनका नवजात शिशु किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित था, जिसकी वजह से उसकी 10 दिन में ही मृत्यु हो गई।
14 साल की उम्र में बच्चे को दिया जन्म
आनंदी के बच्चे की मौत सदमे की तरह थी। उन्होंने सोचा कि अगर उनका बच्चा बीमार न होता, तो वह कभी दुनिया से नहीं जाता। इसी सोच के साथ आनंदी ने ठान ली कि अब किसी बच्चे को बीमारी से मरने नहीं देंगी। उसके बाद उन्हें डाॅक्टर बनने की इच्छा पति के सामने रखी। पति ने आनंदी का समर्थन किया और उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ने भेजा। गोपालराव और आनंदी के इस कदम की समाज और परिवार वालों ने कड़ी आलोचना की। लेकिन आनंदी ने पढ़ाई जारी रखीं।
एमडी की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला
गोपाल राव ने अमेरिका में चिकित्सा की पढ़ाई करने की पूरी जानकारी एकत्र की और आनंदी को डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज भेजा। कॉलेज में दाखिले के लिए आनंदी ने अपने सारे गहने बेच दिए। कुछ लोगों ने उन्हें मदद करते हुए पैसे भी दिए।
19 साल की उम्र में बनी डाॅक्टर
मात्र 19 साल की उम्र में आनंदीबेन ने एमडी की डिग्री हासिल कर ली। आनंदीबेन जोशी एमडी की डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। पढ़ाई पूरी करके वह स्वदेश लौटी और कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक पद पर कार्य करने लगीं। हालांकि प्रैक्टिस के दौरान टीबी की बीमारी से ग्रस्त हो गई और 22 साल की उम्र में 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई का निधन हो गया।
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