भारतीय मसाला सौंफ औषधीय गुणों से भरपूर है, जानिए इसका इतिहास

सौंफ इतनी मशहूर है कि अधिकतर घरों की मसालेदानी में इसके दर्शन हो जाएंगे, घरों, रेस्तरां या ढाबों में माउथ फ्रेशनर के लिए इसे छोटी-छोटी स्टील की कटोरियों में रखा जाता है.

Update: 2022-07-15 07:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सौंफ इतनी मशहूर है कि अधिकतर घरों की मसालेदानी में इसके दर्शन हो जाएंगे, घरों, रेस्तरां या ढाबों में माउथ फ्रेशनर के लिए इसे छोटी-छोटी स्टील की कटोरियों में रखा जाता है. स्पेशल वेज या नॉनवेज सब्जी बनानी है तो मसाले में सौंफ का प्रयोग जरूर होगा. यानी खान-पान में सौंफ एक अनिवार्य आहार सा बन गया है. वह इसलिए कि इसमें गुण कम नहीं है. खान-पान के अलावा दूसरे मसलों पर भी चर्चित रही है यह यह छोटी-छोटी सौंफ.

2 हजार साल से हो रहा है प्रयोग
सौंफ को घरेलू औषधि के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है. माना जा रहा है कि करीब 2 हजार साल से सौंफ को उगाया और खाया जा रहा है. सौंफ पर रिसर्च करने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि हजारो सालों पूर्व इसका उत्पत्ति केंद्र पृथ्वी का उर्वर अर्धचंद्राकार (fertile crescent) रहा है, जिसमें इजरायल, सीरिया, जॉर्डन, लेबनान, इराक, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और एशिया के कुछ क्षेत्र शामिल हैं. इस मसाले को लेकर जो अन्य ऐतिहासिक जानकारी मिली है, उसके अनुसार मिस्र में 3500 वर्ष पूर्व स्वास्थ्य व
अन्य सामग्री के रूप में इसका प्रयोग किया जा रहा था. एक वर्ग का यह भी दावा है कि हजारों साल पूर्व भारत के ठंडे क्षेत्रों में सौंफ उगाई व खाई जा रही थी. लेकिन यह स्पष्ट है कि भारत के प्राचीन धार्मिक व आयुर्वेद से जुड़े ग्रंथों में सौंफ का कोई वर्णन नहीं है.
ज़हर का असर कम करने में होती थी इस्तेमाल
खान-पान या मसालों में तो सौंफ का प्रयोग सालों से हो ही रहा है, कुछ अन्य मसलों पर भी सौंफ चर्चित रही है. यूनानी व रोमवासी इसे कीमती मानते थे और दवा, भोजन के अलावा कीट-पतंगों को दूर रखने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे. रोमन यह भी मानते थे कि इससे मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है. भारत और चीन में सांप या बिच्छू के काटे जाने पर पीड़ित को सौंफ खिलाई जाती थी, जिससे जहर का असर कम हो जाता था. मध्य युग में कुछ देशों में सौंफ को बेहद पवित्र माना जाता था. घरों से बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए सौंफ की पोटली को घर के दरवाजे पर लटकाने का रिवाज था, साथ ही भूत-प्रेतों को घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए सौंफ के दानों को की-होल में भर दिया जाता था.
उस समयकाल में पागल कुत्तों के काटने पर सौंफ की जड़ों को पीसकर उसका प्लास्टर जख्मी स्थान पर लगाने का रिवाज था. रोमन योद्धाओं को साहस प्रदान करने के लिए सौंफ खिलाई जाती थी और उन्हें इसके पत्तों की मालाएं भी पहनाई जाती थीं.
दुनिया के चार गरम बीजों में है शुमार
सौंफ की विशेषताओं की पहचान बहुत पहले ही कर ली गई थी. पहली शताब्दी में यूनान में जन्मे चिकित्सा-विज्ञान व शरीर रचना-शास्त्र का अद्भुत ज्ञान देने वाले वैज्ञानिक गैलेन ने सौंफ को पृथ्वी के चार गरम बीजों में से एक माना था. इनमें बाकी अजवाइन, अजमोद और शतावरी थे. पांचवीं शताब्दी में एंग्लो-सैक्सन लोगों ने (प्राचीन डच व जर्मनी) अपनी नौ पवित्र जड़ी-बूटियों में सौंफ को भी शामिल किया था, जो शरीर की किसी भी बीमारी व जख्म से लड़ने के लिए कारगर थीं. ये लोग हमेशा ब्रिटिशों से युद्ध लड़ते रहते थे.
सौंफ में हैं भरपूर गुण
गुणों को लेकर सौंफ अनूठी है. यह एंटी-ऑक्सिडेंट, रोगाणुरोधी, एंटी-स्पास्मोडिक (आंतों की ऐंठन) और जठराग्नि (भोजन पचाने वाले तत्व) संबंधी गतिशीलता को उत्तेजित करने के लिए जानी जाती है. आयुर्वेदाचार्य डॉ. आरपी पराशर मानते हैं कि सौंफ वात तथा पित्त को शांत करती है, भूख बढ़ाती है और भोजन को पचाती है. यह हृदय, मस्तिष्क तथा शरीर के लिए लाभकारी है.
यह बुखार, गठिया आदि वात रोग, घावों, दर्द, आंखों के रोग, योनि में दर्द, अपच, कब्ज की समस्या में फायदा पहुंचाती है. इसके साथ ही यह पेट में कीड़े, प्यास, उल्टी, पेचिश, पाइल्स, टीबी आदि रोगों को ठीक करने में भी मदद करती है. माउथ फ्रेशनर तो यह है ही. इसको ज्यादा खाने का नुकसान यह है कि स्किन पर खुजली के अलावा एलर्जी हो सकती है. वैसे जो इसका स्वाद और गंध है, वह इसे ज्यादा खाने के लिए प्रेरित भी नहीं करती है.
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