• ऑटिज्म की स्थिति हर किसी के लिए अलग होती है।
• सही इलाज के लिए समय पर बीमारी की पहचान आवश्यक है।
• परिवार और समुदाय द्वारा इस स्थिति को समझना और इसे स्वीकार करना बहुत महत्वपूर्ण है।
इन लक्षणों पर करें गौर
• ऑटिज्म से पीड़ित लड़कियां सामाजिक गतिविधियों में शामिल हो सकती हैं, लेकिन उससे पहले, उसके दौरान या गतिविधि पूरी होने पर काफी महसूस करती हैं। • उन्हें गुड़िया या विशेष क्राफ्ट में गहरी रुचि हो सकती है, जो सामान्य सा खेल प्रतीत होता है। • वे तेज आवाज, तेज रोशनी या कपड़ों के विशेष टेक्सचर के प्रति काफी संवेदनशील हो सकती हैं, लेकिन अपनी इस संवेदनशीलता को प्रदर्शित नहीं करती हैं। • भले ही अच्छा बोलती हों, पर उनकी बातचीत में गहराई या भावनात्मक पहलू कम होता है। वो व्यंग्य को नहीं पहचान पातीं। • उनके व्यवहार में बार-बार दोहराव हो सकता है, जैसे वो वस्तुओं को बार-बार किसी निश्चित क्रम में व्यवस्थित कर सकती हैं या बहुत सख्त दिनचर्या का पालन कर सकती हैं।
घर पर आजमाएं ये उपाय
• बच्चे को उनकी दैनिक दिनचर्या को चित्रों या सरल शब्दों के माध्यम से बार-बार दिखाएं ताकि उन्हें समझना बच्चे के लिए आसान हो जाए।
• बातचीत स्पष्ट रखें और उसमें मुश्किल भाषा का उपयोग ना करें।
• बच्चे को ज्यादा बोझ महसूस होने पर उसे सुकून के लिए समय दें या शांति प्रदान करने वाली गतिविधियों में लगाएं।
• बच्चे जिस चीज में अच्छे हों, उस काम को करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें। लक्ष्य प्राप्त करने पर खुशी मनाएं ताकि बच्चे का आत्मविश्वास बढ़े।
• ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे को बेहतर तरीके से मैनेज करने में परिवार के विभिन्न सदस्यों की भूमिका अहम हो सकती है, पर इस दौरान आपको बच्चे की सहजता का भी ध्यान रखना होगा।
• बच्ची को वो सांस्कृतिक व सामाजिक परिवेश दें, जिसमें वो सहज महसूस करें। उसे ऐसा माहौल दें, जिसमें वह सुरक्षित तरीके से समाज के अन्य लोगों से मिलजुल सके।
• उन्हें किस आहार से मदद मिल सकती है, यह जानें। इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक या अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
आजमाएं प्रबंधन की ये तकनीकें
ऑटिज्म के लिए कोई एक इलाज नहीं है। इसमें विभिन्न तरह की थेरेपी का उपयोग किया जाता है, ताकि लोगों को इसका सामना करने और जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने में मदद मिल सके। ये थेरेपी ऑटिज्म का सामना करने में विशेष रूप से प्रभावी साबित हो सकती हैं:
• एप्लाइड Behavior एनालिसिस (एबीए): इस थेरेपी में किसी भी नई स्किल को सिखाने के लिए उसे छोटे-छोटे चरणों में बांट दिया जाता है। साथ ही थेरेपी के दौरान सकारात्मक बातें बार-बार कहकर उस स्किल को सीखने के लिए बच्चे को प्रेरित किया जाता है।
• स्पीच और लैंग्वेज थेरेपी: इसमें वर्बल और नॉन-वर्बल संचार का कौशल बेहतर बनाने में मदद की जाती है।
• व्यवसायिक थेरेपी: इसमें जीवन के दैनिक कौशल के विकास और संवेदी समस्याओं का प्रबंधन किया जाता है।