बड़े चाव से खाते हैं वेज, मटन और चिकन बिरयानी, पहले जान लें इसका इतिहास
बिरयानी में फैट अधिक होता है, इसलिए मोटापा बढ़ सकता है. साथ ही उसमें पड़े अधिक मसाले भी एसिडटी व हार्ट बर्न को बढ़ाते हैं.
बिरयानी( Biryani) का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. फिर चाहे वो वेज बिरयानी हो या नॉन वेज बिरयानी. जगह बदलते ही बिरयानी का स्वाद भी बदल जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिरयानी एक विदेशी फू़ड डिश है जो भारत आने के बाद सिर्फ अपने टेस्ट की वजह से भारत में पसंद की जाने लगी. तो आइये जानते हैं बिरयानी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से. बासमती चावलों में मटन-चिकन और मसाले का संगम इतना हिट और फिट है कि वह शरीर और मन को भी आनंदित कर देता है. इस बात में कोई दो-राय नहीं कि बिरयानी विदेशी डिश है और ईरान में प्रचार पाने के बाद मुगलों ने इसे एक तरह से अपना विशेष व्यंजन बनाया. मुगलों में मटन बिरयानी और चिकन बिरयानी ज्यादा खाई जाती थी. हल्के भारत म बिरयानी ने खूब नाम कमाया है.
पूरा भारत भ्रमण कर लेंगे तो पचासों किस्म की बिरयानी मिल जाएगी. इनमें हैदराबादी और लखनवी बिरयानी नंबर वन है. इसके अलावा कोलकता की बिरयानी, दक्षिण भारत राज्यों में कई प्रकार की बिरयानी, सिंधी बिरयानी, रामपुरी बिरयानी खूब चलन में है. बिरयानी का हाल तो अब यह हो चला है कि भारत के राज्य की बात तो छोड़िए, अब तो शहरों में भी अलग-अलग स्वाद व प्रकार की बिरयानी मिल रही है. असली बिरयानी तो मटन की मानी जाती है, लेकिन चिकन की बिरयानी का प्रचलन खूब है. मुस्लिम बहुल इलाकों में बीफ बिरयानी भी खाई जाती है.
बिरयानी का इतिहास निकालेंगे तो कहा गया कि बिरयानी शब्द की उत्पत्ति पर्शियन (ईरानी) शब्द 'बिरंज बिरयान' से हुई है. पर्शियन भाषा में चावल को बिरिंज कहते हैं और बिरयान का अर्थ है पकाने से पहले फ्राई किया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा यह भी गया कि मुगल बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल ने जब सैनिक छावनी का दौरा किया तो उन्हें सैनिक कमजोर दिखाई दिए. उन्होंने शाही बावर्ची से सैनिकों के लिए चावल, गोश्त और मसालों की स्पेशल डिश बनाने के लिए कहा, जो बिरयानी कहलाई.
कहा तो यह भी जाता है कि बादशाह तैमूर हिंदुस्तान में बिरयानी को लेकर आया. दूसरा तर्क यह है कि अरब के जो सौदागर दक्षिण भारतीय तट पर व्यापार के लिए उतरे, वह अपने साथ बिरयानी की रेसिपी आए. सुरक्षा के लिए ये सौदागर अपने साथ फौजी भी लाते थे. हम मान सकते हैं बिरयानी डिश जल्द बनाया जाने वाला ऐसा भोजन है जो पौष्टिकता से भरपूर है और इसका संबंध सिपाहियों से जरूर जुड़ा है, जिन्हें बहुत कम समय में बनने वाला पौष्टिक भोजन चाहिए.
बिरयानी को अब अगर भारत से जोड़ा जायेगा तो भारत में आकर बिरयानी का स्वाद भी निखरा और रंग-रोगन भी. वजह ये है कि इसमें देसी घी, जायफल, जावित्री, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, बड़ी व छोटी इलायची, तेजपत्ता, धनिया और पुदीना के पत्ते, अदरक, लहसुन और प्याज सहित केसर डालने का प्रचलन भारत में ही हुआ, जिससे इसका स्वाद जबर्दस्त निखरा. भारत के शाकाहारियों ने इसे 'अपनाते' हुए वेज बिरयानी का चलन शुरू कर दिया. इस बिरयानी में आलू, सब्जियों, पनीर, दाल आदि को मसालों के साथ जोड़ दिया गया.
वहीं कुछ लोगों कि बात करें तो उन्हें बिरयानी और पुलाव में फर्क नहीं पता होता. बिरयानी में चावल को स्टॉक (गोश्त का उबला पानी) में नहीं पकाया जाता. बिरयानी में तहें यानी परतें होती हैं और इसे दम पर भी पकाया जाता है. बिरयानी की खूबसूरती बढ़ाने के लिए इसकी ऊपरी तह पर केसर का इस्तेमाल होता है. लेकिन पुलाव बनाते समस्य ऐसा नहीं होता. बिरयानी में फैट अधिक होता है, इसलिए मोटापा बढ़ सकता है. साथ ही उसमें पड़े अधिक मसाले भी एसिडटी व हार्ट बर्न को बढ़ाते हैं.