पर्यावरण में हो रहा बदलाव खराब मेंटल हेल्‍थ के प्रमुख कारक

दुनिया की ताकतवर सत्‍ता आतंकवाद से लड़ने में खरबों डॉलर फूंक रही है, जबकि सच तो ये है कि आज दुनिया के लिए क्‍लाइमेट चेंज सबसे बड़ा खतरा है.

Update: 2021-12-30 13:29 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | मेंटल हेल्‍थ पर विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक वर्ल्‍ड समिट में दो साल पहले एक रिपोर्ट पेश की गई. ये रिपोर्ट कहती है कि दो दशक बाद मेंटल हेल्‍थ यानि मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा. बकौल WHO मेंटल हेल्‍थ कैंसर, डायबिटीज और हार्ट डिजीज से ज्‍यादा गंभीर समस्‍या है, जो दो दशक के भीतर दुनिया की 70 फीसदी आबादी को अपनी चपेट में ले चुकी होगी.

आज की तारीख में 18 वर्ष से अधिक आयु की अमेरिका की 26 फीसदी आबादी एंटी डिप्रेसेंट दवाइयों पर निर्भर है. भारत में यह प्रतिशत 12 है, जो कि कोविड महामारी के दौरान पिछले दो सालों में 19 फीसदी बढ़ गया है. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक 2029 तक डिप्रेशन, एंग्‍जायटी और खराब मेंटल हेल्‍थ दुनिया की 10 सबसे खतरनाक और लाइफ थ्रेटनिंग बीमारियों में शामिल होगी.
यह तो हुई रूपरेखा कि मेंटल हेल्‍थ आखिर कितनी बड़ी समस्‍या है और यह दुनिया के लिए कितना खतरनाक रूप ले सकती है. यही कारण है कि आज दुनिया के सभी बड़े देश इस शोध में जुटे हुए हैं कि मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लगातार बिगड़ते जाने के प्रमुख कारक क्‍या हैं और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है.
जलवायु परिवर्तन
इस संबंध में एक नया अध्‍ययन इंटरनेशनल जरनल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ है. इस अध्‍ययन के मुताबिक क्‍लाइमेट चेंज या पर्यावरण में हो रहा बदलाव खराब मेंटल हेल्‍थ के प्रमुख कारकों में से एक है. इस स्‍टडी के शोधर्ताओं का मानना है कि जलवायु परिवर्तन सामाजिक, आर्थिक के साथ-साथ स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी खतरा भी उत्‍पन्‍न कर रहा है. आने वाले समय में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाला इसका प्रभाव और नकारात्‍मक ढंग से सामने आएगा.
यह इस तरह की पहली स्‍टडी है, जिसमें क्‍लाइमेट चेंज को मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के नजरिए से देखने की कोशिश की गई है. यह स्‍टडी कहती है कि क्‍लाइमेट चेंज का सीधा असर किसी भी देश की अर्थव्‍यवस्‍था, उसके सामाजिक ताने-बाने और राजनीतिक स्थिति पर पड़ता है.
क्‍लाइमेट चेंज सिर्फ इतनी सी बात नहीं है कि बारिश, सर्दी, गर्मी हर चीज का अनुपात बदल रहा है और कहीं तो बिलकुल उलट हो रहा है. इन सारी चीजों का प्रभाव खेती और उत्‍पादन पर पड़ रहा है, जिसका सीधा संबंध मनुष्‍य के अस्तित्‍व से है. यदि अस्तित्‍व पर खतरा मंडराएगा तो उसका असर इंसान के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर भी पड़ेगा.


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