क्या आपको भी प्रेज़ेंटेशन के दौरान ग़लती करने का डर सताता है

Update: 2023-05-03 13:21 GMT
बिल्कुल सामान्य है ऐसा होना
सबसे पहले तो आप इस बात को दिमाग़ से निकाल दें कि ऐसा आपके साथ ही होता है. ऐसा अच्छे-अच्छों के साथ हो सकता है. होता यह है कि हम अपने प्रेज़ेंटेशन के साथ पूरी तरह तैयार होते हैं, पर मीटिंग या प्रेज़ेंटेशन का समय आते ही हम अनजाने डर से आशंकित हो जाते हैं. मीटिंग में जब इस तरह की मनोस्थिति के साथ पहुंचते हैं, तब मीटिंग बढ़ने के साथ-साथ हमारी यह घबराहट बढ़ने लगती है. हमें लगता है हमसे कुछ न कुछ तो गड़बड़ होनेवाला है.
जब आप दिमाग़ी रूप से किसी अनहोनी की आशंका में परेशान होते हैं, तब उसका असर उस कमरे में भी दिखने लगता है. आप बेवजह की ग़लतियां करने लगते हैं. और सचमुच कुछ न कुछ गड़बड़ हो ही जाता है. बाद में आकलन करने पर आप भी पाते हैं कि आपके पास सबकुछ था, फिर भी उस वक़्त न जाने आत्मविश्वास कहां ग़ायब हो गया था. मानसिक रूप से ख़ुद को बेहद कमज़ोर क्यों समझ रहे थे, पता नहीं.
आप यह सोचकर सुकून का अनुभव कर सकते हैं, कि ऐसा महसूस करनेवाले दुनिया में आप अकेले व्यक्ति नहीं हैं. आप जैसे हज़ारों लोग आख़िरी समय पर पैनिक अटैक का शिकार हो जाते हैं. अब आइए खोजें, इस तरह की पैनिक सिचुएशन से बाहर निकलने का रास्ता.
छोटे-छोटे तरीक़े, जो आपको आत्मविश्वास से भर देंगे
ज़ाहिर है आप बार-बार ऐसा होने के चलते काफ़ी परेशान हैं. महत्वपूर्ण सलाह और सुझाव होते हुए भी आप उन्हें सही जगह पर प्रस्तुत नहीं कर पाते. आख़िर वह मौक़ा होता है, जब आप अपनी छाप छोड़ सकते हैं. कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा हमारे आत्मविश्वास में कमी के चलते होता है. आत्मविश्वास में यह कमी हमारे पालन-पोषण के तरीक़े और सामाजिक मान्यताओं से जुड़ी होती है. आप इन चीज़ों को बदल तो नहीं सकते, तो आख़िर किया क्या जा सकता है? इसका सामना करने का सबसे सही तरीक़ा है, ख़ुद को सही होने का आत्मविश्वास से भर लेना. मीटिंग में जाते समय यह सोचकर जाना कि इस विषय पर सबसे अधिक तैयारी और रिसर्च आपने किया है. इसलिए सब्जेक्ट पर सबसे अधिक जानकारी आपको है.
दूसरी बात यह क्लीयर कर लें कि आप मीटिंग के दौरान सबके ‘अच्छे फ़ीडबैक’ की उम्मीद नहीं कर सकते. आप लाख अच्छा काम कर लें, पर पूरी दुनिया को एक साथ संतुष्ट कर पाना संभव नहीं है. आप दुनिया को नहीं, ख़ुद को संतुष्ट करने के बारे में सोचें. दिमाग़ में यह बात रखें कि अपनी जानकारी के अनुसार आप वहां बेस्ट परफ़ॉर्म करने जा रहे हैं.
तीसरी बात है बॉडी लैंग्वेज को सही रखना. आप ख़ुद को कॉन्फ़िडेंट साबित करने के लिए प्रेज़ेंटेशन के दौरान दाएं-बाएं झाकने के बजाय बड़े आत्मविश्वास से सामनेवाले की आंखों में देखकर बात करें. अपनी बातों को टू-द-पॉइंट रखें. जब आप यहां-वहां भटकेंगे नहीं, तक आपका प्रदर्शन अपने आप प्रभावशाली हो जाएगा.
हर ऑफ़िस में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो ख़ुद तो काम करते नहीं, दूसरे कलीग्स को भी काम नहीं करने देते. बिल्कुल स्कूल की तरह, जहां हमारे ग्रुप का कोई दोस्त हमें पढ़ने नहीं देता था. आप दोस्त तो चुन सकते थे, पर ऑफ़िस कलीग्स चुनना आपके हाथ में नहीं है. हां, यह आर्टिकल पढ़कर आप कम से कम इतना तो सीख ही सकते हैं कि ऐसे कलीग्स से सुरक्षित दूरी कैसे बना सकते हैं. यह सीखने के लिए पहले आपको ऑफ़िस में टाइमपास करनेवाले कलीग्स को कैटेगराइज़ करना होगा.
यूं निपटें बातूनी कलीग से: ऑफ़िस में सबसे अधिक डिस्टर्बेंस इस तरह के लोग ही क्रिएट करते हैं. इनके पास मानों बातों का बाज़ार हो. इनकी बातों की सप्लाई इतनी अधिक होती है कि शायद ही कभी इनका मुंह बंद होता हो. ये एक बार आपके डेस्क की ओर आ जाएं तो आपकी हालत ख़राब होने लगती है. पर बेसिक शिष्टाचार के चलते आप इन्हें मना भी नहीं कर पाते और अंत में शाम को आपके पास काम का ढेर होता है. चूंकि ये बातचीत में बहुत निपुण होते हैं तो लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय भी होते हैं. ऐसे लोगों को मना करना बहुत झिझक पैदा करने जैसा होता है. पर आपको काम की ख़ातिर फ़ैसला करना ही होगा. जब अगली बार ये अपनी बातों की दुकान आपके वर्कस्टेशन पर पसारना चाहें तो इन्हें प्यार से टरका दें. या इन्हें देखते ही अपने कम्प्यूटर में घुस जाएं. थोड़े हैरान-परेशान से दिखने लगें. बहुत संभव है कि मानवता के नाम पर आपको छोड़ ही दें.
रोनेवाले सहकर्मी कहीं आपको न रुला दें: इस टाइप के सहकर्मी बातूनी टाइप के दुखियारे वर्ज़न होते हैं. ये ऑफ़िस के सभी लोगों के पास घूम-घूमकर अपना दुखड़ा रोते रहते हैं. अब जब कोई अपने दुख का पहाड़ आपके सामने रखता है तो आप चाहकर भी मना नहीं कर पाते. ऐसे लोगों को ढांढस बंधाने में आपका काफ़ी वक़्त ज़ाया हो सकता है. उस वक़्त में किया जानेवाला काम भी आपके ही पल्ले पड़ जाता है. काम का तो छोड़िए ये लोग बहुत धीरे से अपनी नकारात्मक ऊर्जा आपके अंदर भर देते हैं. ऐसे कलीग से दूरी बनाए रखें, ऑफ़िस के घंटे अच्छे गुज़रेंगे. तो आप इनका दुख सुनने के बजाय इन्हें प्यार, ग़ुस्सा या चाहे जैसे भी समझा-बुझाकर ख़ुद से दूर रखें.
कुछ ज़्यादा ही काम करनेवाले कलीग: आप कहेंगे इस तरह के लोग हमारा टाइम कैसे वेस्ट कर सकते हैं? करते हैं, बिल्कुल करते हैं. कुछ लोग काम करने में काफ़ी फ़ास्ट होते हैं. वे अपना काम पूरा करने के बाद दूसरों के साथ टाइम पास करने लगते हैं. कई बार जिन लोगों के पास काम कम होता है, वे घूम-घूमकर सबको ज्ञान बांटते रहते हैं. आपने ग़ौर किया होगा, जब इन लोगों के पास काम होता है तो शायद ही किसी से बात करते हों. तो ऐसे लोगों के बहकावे में न आएं. अपनी अक्ल लगाएं और अपना बहुमूल्य समय बचाएं. सबसे ज़रूरी काम पूरा करने, सीधा अपने घर जाएं.
गॉसिप किंग या क्वीन के साम्राज्य में दख़ल न दें: हर ऑफ़िस में थोड़ी-बहुत गॉसिप होती ही है. थोड़ी गॉसिप से कोई नुक़सान भी नहीं है. पर पूरा का पूरा समय गॉसिप में बितानेवाले लोग न तो ख़ुद अपना काम करते हैं और न ही दूसरों को काम करने देते हैं. वे सहकर्मियों, बॉसेस, फ़िल्म स्टार्स से लेकर अपनी जान-पहचान के हर किसी की ज़िंदगी की कच्ची-पक्की बातें रस लेकर बताने लगते हैं. अगर आपको अच्छा एम्प्लॉयी बनना है तो ऐसे मनोरंजन कर्ताओं से दूर ही रहें. टाइम वेस्ट करने के अलावा इनका दूसरा नुक़सान यह भी है कि जिस तरह आपको दूसरों की ज़िंदगी की मसालेदार ख़बरें बताते हैं, उसी तरह कल आपकी ‌ज़िंदगी का वर्णन दूसरों से भी कर सकते हैं. यानी टाइम के साथ-साथ दिमाग़ ख़राब होने की भी पूरी गैरेंटी.
Tags:    

Similar News

-->