दिल, पाचन के लिए गुणकारी है अरबी, पढ़ें इस कंद के बारे में महत्वपूर्ण बातें

अरबी (Colocasia) एक सब्जी है, जो कंद (Yam) की श्रेणी में आती है. स्वास्थ्य के लिए इसे खासा गुणकारी माना जाता है.

Update: 2022-08-24 08:25 GMT

अरबी (Colocasia) एक सब्जी है, जो कंद (Yam) की श्रेणी में आती है. स्वास्थ्य के लिए इसे खासा गुणकारी माना जाता है. यह दिल की गति को सामान्य बनाए रखती है तो पेट के लिए भी लाभकारी है. बीपी को कंट्रोल करने में भी फायदेमंद मानी जाती है अरबी. कंद-मूल मानव सभ्यता के खानपान के अभिन्न अंग रहे हैं. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष के वनवास के दौरान कंद-मूल का खूब सेवन किया था. गुफाओं, वनों में तपस्या करने वाले ऋषि-मुनि भी हजारों सालों से इसका सेवन कर रहे हैं.

खाए जाते हैं अरबी के पत्ते भी
कंद-मूल की विशेषता यह होती है कि इसे उबालकर खाने से ही शरीर के लिए गुणकारी बन जाते हैं. अरबी भी इन्हीं में से एक है. अफ्रीकी देशों में तो सालों से इस जैसे कंद-मूल का आर्थिक महत्व भी है. अब इस जैसे कंद-मूल का प्रयोग भोजन के अलावा आटा, ब्रेड, नूडल्स, केक, पेय पाउडर आदि के रूप में भी किया जा रहा है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और 'वेजिटेबल' पुस्तक के लेखक डॉ. बिश्वजीत चौधरी के अनुसार, अरबी एक ऐसा कंद है, जिसके पत्ते का भी भोजन के रूप में इस्तेमाल होता है. बस, शर्त यह है कि इसे अच्छी तरह पकाया जाए वरना यह गले और तालू में खुजली पैदा कर देगा. आजकल तो अरबी का चिप्स के रूप में भी इस्तेमाल हो रहा है.
दक्षिण पूर्व एशिया है इसका जन्म स्थल
अरबी की उत्पत्ति का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. ऐसा माना जाता है कि करीब 9000 वर्ष पहले दक्षिण पूर्व एशिया और न्यू गिनी में यह सबसे पहले उगाई गई. उसके बाद फॉर्मोसा (चीन के अधीनस्थ प्राचीन गणराज्य), फिलीपींस, असम (भारत) और तिमोर द्वीप में इसकी खेती शुरू हुई. बाद में इसकी खेती टोंगा, समोआ, न्यूजीलैंड, ईस्टर द्वीप और हवाई में पहुंच गई. जानकारी बताती है कि औपनिवेशिक काल के दौरान अरबी को बार-बार पश्चिम अफ्रीका से अमेरिका ले जाया जाता था, जिसका इस्तेमाल 18वीं सदी के दास पौधारोपण के प्रावधानों के लिए किया जाता था. चीन और जापान में भी यह हजारों सालों से मुख्य फसल के रूप में उगाई जा रही है.
अरबी की उत्पत्ति का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है.
दूसरी ओर भारतीय-अमेरिकी वनस्पति-विज्ञानी सुषमा नैथानी के अनुसार, अरबी (घुइयां) का उत्पत्ति स्थल इंडा-बर्मा उपकेंद्र है. इनमें वर्तमान भारत का असम और बर्मा (म्यामार) आते हैं. वैसे, भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ 'चरकसंहिता' में 'अरबी' शब्द से किसी सब्जी या कंद का वर्णन नहीं है, लेकिन उसमें प्रमुखता से तीन कंद मुंजातक, विदारीकंद व अम्लीकाकंद का वर्णन है. इनके गुण-अवगुण भी अरबी के ही समान हैं.
धमनियों के लिए लाभकारी, बीपी करे कंट्रोल
शरीर के लिए अरबी को स्वास्थ्यकारी माना गया है. आधुनिक विज्ञान के अनुसार, 100 ग्राम अरबी में कैलोरी 97, नमी 73 ग्राम, प्रोटीन 3 ग्राम, फाइबर 1 ग्राम, वसा 0.1 ग्राम, मिनरल्स 1.7 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 21 ग्राम के अलावा कैल्शियम, आयरन, विटामिन ए, सोडियम, फॉस्फोरस भी पाया जाता है. मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन वैद्यराज दीनानाथ उपाध्याय के अनुसार, अरबी दिल के लिए लाभकारी है. उसका कारण यह है कि इसमें बहुत कम वसा और कोलेस्ट्रॉल होता है, जो धमनियों को सख्त होने से रोकने में मदद करता है. इससे बीपी भी कंट्रोल में रहेगा. इसके सेवन से वजन भी नहीं बढ़ेगा. यह चिपचिपी होती है और इसमें फाइबर भी है, इसलिए यह पाचन शक्ति को दुरुस्त रखती है. यह तुरंत ऊर्जा भी देती है, क्योंकि इसमे कैलोरी की पर्याप्त मात्रा है. इसका उचित सेवन शरीर में प्रतिरक्षा को बढ़ाता है. अरबी में पाए जाने वाले विटामिन्स व मिनरल्स बीमारियों से बचाने के साथ-साथ उम्र बढ़ाने की प्रकिया को धीमा करने में उपयोगी माने जाते हैं. इसका सेवन मांसपेशियों, हड्डियों और तंत्रिका स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक माना जाता है.
पेट की समस्या में ना खाएं अरबी
अरबी वातकारी है, इसलिए इसे अजवायन डालकर पकाया जाता है. इसके पत्ते भी खाए जाते हैं, लेकिन वह खुजली पैदा करते हैं. ऐसे में कोई भी व्यंजन बनाने से पहले इन्हें उबाल लें. अरबी में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक पाई जाती है, जिससे पेट में गैस की समस्या हो सकती है. जिन्हें पेट संबंधी समस्या है, वह अरबी न खाएं. अरबी में ऑक्सालिक एसिड होता है. इसका अधिक सेवन किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है. अगर आपको किसी तरह की किडनी की समस्या है, तो अरबी का सेवन न करें. अरबी डायबिटीज रोगियों के लिए अच्छी मानी जाती है, लेकिन इसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट ब्लड में मौजूद शुगर को कम कर देता है, तो जिनका शुगर लो रहता है, वह इसके सेवन से बचें.


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