क्या आप जानते हैं दुनिया का सबसे बड़ा औषधि केंद्र हमारा रसोईघर है. अच्छी सेहत पाने के लिए हमें इसके बाहर कहीं जाने की आवश्यकता ही नहीं है. हम जिसे मसाला कहते हैं दरअस्ल, वे औषधि हैं. वही जिसे आप सादा भोजन मानते हैं, वह न केवल हमारी क्षुधा को शांत करता है, बल्कि हमारे शरीर को अतिरिक्त पोषक तत्व भी देता है. अपने इन्हीं चिकित्सीय गुणों के कारण ही यह कहलाते हैं सुपरफ़ूड. गीता ध्यानी बता रही हैं इन्हें अपनी डायट में शामिल करने का तरीक़ा
हम भारतीयों के खाने में जब तक घी, तेल, नमक, मिर्च, हल्दी न हो, तो स्वाद नहीं आता. मसाले और ज़ायके से भरपूर भारतीय खाना दुनियाभर में मशहूर है. जबकि मसाला और ज़ायका हमारा शब्द नहीं है. ये दोनों ही बाहर से आए हैं. ये अरबी शब्द हैं. फारसी से अरबी में, और अरबी से हमारे यहां आए हैं. यदि आप चरक संहिता, वेद पुराण आदि का अध्ययन करेंगे तो कहीं भी आपको मसाला शब्द नहीं मिलेगा. हर जगह अजवायन औषधि, जीरा औषधि, मेथी औषधि, आंवला औषधि लिखा हुआ पाएंगे. वहीं घी, चावल, दही ऐसे सुपरफ़ूड्स हैं, जिन्हें न सिर्फ़ ग्रहण करने, बल्कि लगाने से भी लाभ मिलता है.
चावल
चावल को आयुर्वेद में कूलिंग फ़ूड कहा गया है. इसकी तासीर ठंडी होती है. यह पेट को ठंडा रखता है और खाने में भी बहुत हल्का होता है. चावल की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह एक प्री बायोटिक है. ध्यान रहे कि प्री बायोटिक और प्रो बायोटिक दोनों ही अलग चीज़े हैं. इन्हें साथ में लिया जाए तो यह कई तरह के लाभ पहुंचाता है. आपको बता दें कि प्रो बायोटिक एक तरह का बैक्टीरिया है. जितनी भी चीज़ों को ख़मीर करके बनाया जाता है, वे सभी प्रो बायोटिक होती हैं. जबकि प्रो बायोटिक का पूरा इस्तेमाल करने के लिए प्री बायोटिक लिया जाता है. इसलिए गर्मियों में दही-चावल को सबसे हल्का पौष्टिक आहार माना जाता है.
रात में भात बनाकर उसे ख़मीरीकरण के लिए पानी में छोड़ दिया जाता है. इसे गर्मियों में खाया जाता है, ताकि लू न लगे या अल्सर की शिकायत न हो. यदि आप डायबिटिक या बीपी के मरीज़ हैं, तब भी चावल खा सकते हैं, लेकिन बिना पॉलिश्ड चावल ही खाएं. पॉलिशिंग न होने के कारण इसमें फ़ाइबर होता है. यह आपको फ़िट रखने में मदद करेंगे और शुगर भी नहीं बढ़ने देंगे. यहां तक जिन्हें पतला होना है, वे भी मजे से चावल खा सकते हैं.
हमारे यहां चावल को दाल, सब्ज़ी या दही के साथ खाया जाता है. इससे चावल का डीईआई और भी कम हो जाता है. यदि आप प्रोटीन, फ़ाइबर और फ़ैट के साथ किसी भी कार्ब्स को खाते हैं, तो उससे इनका डीआईआई और भी कम हो जाता है. इसलिए जब हम दाल चावल खाते हैं तो साथ में घी ज़रूर लेना चाहिए. यह उसके डीईआई को और कम करेगा.
गाय का घी
आयुर्वेद में गाय के दूध, घी, मूत्र और उसके गोबर को थेरैप्यूटिक माना जाता है. घी में एस सी एफ़ ए एसिड होता है. यह घी को लाइपोलाइट बनाता है. लाइपोलाइटिक का मतलब है जो फ़ैट को तोड़े. घी कोलेस्टरेरॉल को भी कम करता है. घी इनफ़र्टिलिटी के लिए भी फ़ायदेमंद होता है. पीसीओ और पीसीओडी में यह फ़ायदे पहुंचाता है. घी में विटामिन ए और विटामिन डी होता है.
दही
सही मायने में भारत का कोई पारंपरिक प्रो बायोटिक है तो वह है दही. वह भी घर पर जमाई हुई दही. घर में जमाई हुई दही तीन दिन में ख़राब भी हो जाती है, क्योंकि उसके बैक्टीरिया मर जाते हैं. ख़मीर किए हुए सभी खाद्य पदार्थों में गट बैक्टीरिया होते हैं. यह हमारे इंटेस्टाइन के लिए अच्छा होता है. पैक्ड प्रो बायोटिक छह महीने तक ख़राब नहीं होते हैं, क्योंकि उनमें जीवित बैक्टीरिया नहीं होते हैं. दही कैंसर और डायबिटीज़ के मरीज़ के लिए फ़ायदेमंद होता है. डिप्रेशन से बचना हो या वज़न कम करना हो, रोज़ एक कटोरी दही खाएं. दही हैप्पी हार्मोन-सेरोटिन के स्राव को बढ़ाता है. इसलिए हमारे यहां एग्ज़ाम में जाने से पहले या हर शुभ काम के पहले दही-शक्कर खिलाया जाता है, ताकि घबराहट न हो और मूड अच्छा रहे. दही पेट को भी ठंडा रखता है.
नारियल
नारियल के पेड़ को कल्पवृक्ष कहते हैं. चाहे इसका पानी हो या मलाई इसे खाने से हमें मीडियम चेन फ़ैटी एसिड्स मिलते हैं. यह फ़ैट की तरह शरीर में जमा नहीं रहते. पेट में जाने के बाद यह तुरंत बर्न हो जाते हैं. मुनमुन गेनरिवाल, न्यूट्रीशनिस्ट और फ़िटनेस कंसल्टेंट कहती हैं,“नारियल में लॉरिक एसिड होता है. यह भी एक तरह का फ़ैटी एसिड है, जो वज़न कम करने में मदद करता है. यह हार्ट डिज़ीज़ और डिप्रेशन के जोख़िम को कम करता है.”
हल्दी
आयुर्वेद में हल्दी को ख़ून साफ़ करने के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है. हल्दी में ऐंटीसेप्टिक और ऐंटीबायोटिक गुण होते हैं. इसके सेवन से रक्त साफ़ होता रहता है. इसे खाने से रक्त में मौजूद विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं. यह रक्त को पतला करने के साथ-साथ उसके प्रवाह को भी बढ़ाता है. इसे दूध में मिलाकर पीने से पुराने से पुराना घाव भी भर जाता है. यदि इसे चोट में लगाया जाए तो चोट जल्दी ठीक हो जाता है. हल्दी दूध लें या फिर सब्ज़ी में आधा टीस्पून हल्दी ज़रूर डालें.
अजवायन
बहुत आसानी से उपलब्ध होनेवाली औषधि है अजवायन. इसका स्वाद शुरुआत में कड़वा और बाद में मीठा लगता है. अरमीत अरोड़ा खुराना, बीएचएमएस, सीएफ़एन बताती हैं,“हमारा शरीर वात, पित्त और कफ़ इन तीनों प्रवृत्ति वाली होती है. सुबह जब सोकर उठते हैं तो शरीर में सुबह वात ज़्यादा होता है, दोपहर में पित्त होता रहता है और रात को कफ़ सबसे ज़्यादा होता है. गाय के घी के बाद जो सबसे ज़्यादा पित्तनाशक है वो अजवायन है. दोपहर को पित्त बढ़ता है और बढ़ना भी चाहिए, क्योंकि भोजन को पचाना है. इसलिए इसे संतुलित करने के लिए दोपहर के खाने में अजवायन को शामिल किया जाता है.” अजवायन को कभी भी अकेले न खाएं, उसे काले नमक के साथ खाएं. तीन दिन में गैस ख़त्म हो जाएगी.
जीरा
साबुत जीरा, जीरे का तेल और जीरा पाउडर, ये तीनों ही हमारे शरीर को कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्रदान करते हैं, जो हमें स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं. जीरे के सेवन के कई फ़ायदे हैं, जैसे-पाचन में सहायता करना, इम्यून सिस्टम बढ़ाना, त्वचा विकारों और अनिद्रा का इलाज करना. यह एनीमिया, कैंसर और श्वसन संबंधी विकारों जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के इलाज में भी मदद करता है.
आंवला
आंवला को लेकर एक बात बहुत मशहूर है, वह ये कि बुजुर्गों की बात और आंवला के स्वाद का पता बाद में चलता है. आंवला विटामिन सी का अच्छा स्रोत होता है. एक आंवला में तीन संतरे के बराबर विटामिन सी की मात्रा होती है. इसे खाने से लीवर को शक्ति मिलती है, जिससे हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थ आसानी से बाहर निकल जाते हैं. इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह ख़ून साफ़ करने के साथ-साथ त्वचा को भी स्वस्थ और जवां रखने का काम करता है.
मेथीदाना
मेथी के 8-10 दाने भिगोकर खाने से हाई ब्लड प्रेशर और हाई ब्लड ग्लूकोज़ लेवल कम होता है और साथ ही पेट में गैस, अर्थराइटिस के दर्द, स्ट्रोक, दिल की बीमारियां और डाइबिटीज़ का असर कम होता है. मेथी के दाने का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, इसलिए यह धमनियों को संकुचित होने से रोकती है. यह ऐंटासिड की तरह काम करती है. सीने में जलन, भूख न लगना, कब्ज़ आदि में काफ़ी कारगर साबित होती है. महिलाओं के लिए मेथी वरदान है. पीरियड्स में होने वाले दर्द, पीसीओडी और फ़ाइब्रॉयड आदि में लाभ पहुंचाती है.
सब्ज़ा
यह मीठी तुलसी के बीज होते हैं. इनमें फ़ाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. सब्ज़ा के बीज प्रोटीन, फ़ाइबर विटामिन ए, विटामिन के, काइब्राहाइड्रेट्स, ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड व कई खनिज तत्वों से युक्त और ठंडी तासीर वाले होते हैं. सब्ज़ा के बीज में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का गुण होता है. यह फ़ैट को बर्न करने के साथ-साथ वज़न कम करता है. यह शरीर को ठंडा रखता है, इसलिए इसे गर्मियों में ख़ासतौर पर खाना चाहिए. इसे खाने का तरीक़ा बहुत आसान है. मुनमुन की सलाह है कि सब्ज़ा के नियमित सेवन से आपको एसिडिटी, गैस, खट्टा पानी आना, पेट में जलन, छाले इत्यादि से छुटकारा मिल जाएगा.