चाणक्य नीति के अनुसार माता-पिता से मिले संस्कार संतान को बनाते हैं महान और सफल
चाणक्य नीति
कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. इतना ही नहीं आचार्य चाणक्य असाधारण और बुद्धि के स्वामी थे. आचार्य चाणक्य ने अपने बुद्धि कौशल की दमपर समूचे नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था. मौर्य साम्राज्य की स्थापना में आचार्य का ही परम योगदान माना जाता है.आचार्य चाणक्य राजसी ठाट-बाट से हमेशा परे रहकर सादा जीवन जीना पसंद करते थे. यही कारण है कि सालों पहले उन्होंने जो बातें अपनी नीतियों में कहीं थीं आज सटीक होती हैं.
आचार्य ने निजी जीवन, राजनीति, धन हर एक विषय पर गहन बातें की हैं. चाणक्य ने बच्चों के संस्कारों में माता पिता का अहम योगदान बताया है.उनके अनुसार हर एक माता पिता खुद अपनी संतान को योग्य और कुशल बनाना चाहती है. इसलिए माता पिता कठोर परिश्रम भी करते हैं. अपनी संतान के उज्जव भविष्य के माता पिता हर एक खुशी का हंसते हुए त्याग कर देते हैं. अपने बच्चे की हर एक फरमाइश को पूरा करने के लिए माता पिता अनगनित कष्टों को पार कर जाते हैं.
चाणक्य स्वयं भी एक योग्य शिक्षक थे. यही कारण है कि चाणक्य संस्कारों की अहमियत को सबसे अधिक जानते थे. चाणक्य का मानना था कि संस्कार के बिना ज्ञान का सही प्रयोग संभव नहीं है. संस्कार से ज्ञान का महत्व बढ़ जाता है.
आचार्य चाणक्य की मानें तो जीवन में अगर किसी को सफल और महान बनना है तो इसके लिए उसके अंदर संस्कार होना अति आवश्य है. संस्कार संतान को अपने माता पिता से ही मिलते हैं. ऐसे में हर एक माता पिता को अपने बच्चे की परवरिश में हर छोटी चीज का ध्यान रखना चाहिए. घर में भी बच्चे आचरण को देखते हैं और जीवन में उतारते भी हैं. इसलिए बच्चों के मामले में माता पिता को अधिक सजग और गंभीर रहना चाहिए और इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
बच्चों को नैतिक गुणों के महत्व के बारे में बताएं
चाणक्य के अनुसार हर एक माता पिता को अपने बच्चों को शुरू से ही नैतिक गुणों के बारे में बताना चाहिए. बच्चों को देश के महापुरुषों के बारे में बताना चाहिए और बताना चाहिए कि कैसे बच्चों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. इसके लिए संतान को प्रेरित भी करना चाहिए.
बच्चों के सामने गलत आचरण प्रस्तुत न करें
माता पिता को बच्चों के सामने सदैव ही अच्छा और सही तरीके का आचरण करें. हर माता पिता को ध्यान में रखना चाहिए कि वह अपनी संताने के सामने भाषा शैली उचित प्रयोग करें. इसके साथ ही दूसरों के साथ भी उचित व्यवहार करना चाहिए. क्योंकि जो माता पिता करते हैं, संतान भी वही करने का प्रयास करती है.