मुंबई (आईएएनएस)| एक नए सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 61 फीसदी मुंबईकर काम पर उनींदापन महसूस करते हैं और उनमें से लगभग 35 का मानना है कि वे भयानक अनिद्रा से पीड़ित हैं।
स्लीप सॉल्यूशन प्रोवाइडर वेकफिट डॉट को द्वारा आयोजित द ग्रेट इंडियन स्लीप स्कोरकार्ड (जीआईएसएस) ने भारतीयों के बीच स्लीप पैटर्न और ट्रेंड को समझने का प्रयास किया।
हालांकि मुंबई को 'कभी न सोने वाले शहर' के रूप में जाना जाता है, सर्वेक्षण में पाया गया कि यहां के 70 प्रतिशत लोग रात 11 बजे के बाद ही काम बंद करते हैं। हालांकि रात 10 बजे सोने का आदर्श समय होता है।
आई-पॉपर की रिपोर्ट में कहा गया है, "आधी रात के करीब बिस्तर पर जाने के बावजूद शहर की 29 फीसदी आबादी सुबह 7-8 बजे के बीच उठ जाती है और 49 फीसदी लोगों ने जागने पर तरोताजा महसूस नहीं किया।"
दिलचस्प बात यह है कि जीआईएसएस-2022 ने पाया था कि 53 प्रतिशत मुंबईकर काम पर नींद महसूस करते हैं। यह संख्या अब बढ़कर 61 प्रतिशत (2023) हो गई है - लेकिन इस मोर्चे पर महिलाओं की संख्या (67 प्रतिशत) पुरुषों (56) से अधिक है।
2022 की तुलना में इस साल सुबह उठने के बाद 'थका हुआ महसूस करने' की शिकायत करने वाले मुंबईकरों में 34 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "नींद पूरी न होना दिन में ज्यादा नींद आने के शीर्ष कारणों में से एक है। हालांकि सोने के लिए बेडरूम का माहौल अनुकूल बनाए रखना महत्वपूर्ण है। 43 प्रतिशत मुंबईकरों ने महसूस किया कि उनके बेडरूम का माहौल उनकी नींद को प्रभावित करता है।"
मुंबई के मेडिको डॉ. हिमांशु शाह ने कहा कि किसी भी बीमारी से ग्रस्त रोगियों में नींद की कमी एक बहुत बड़ी शिकायत है, ज्यादातर डर और अपने व परिवार के भविष्य की चिंता से यह स्थिति उत्पन्न होती है।
प्रमुख प्रकृति चिकित्सक और एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ डॉ. मेई (शुभांगी) देशमुख ने कहा कि पिछले तीन वर्षो में और विशेष रूप से महामारी के बाद के युग में लोगों में 'भय कारक और तनाव अधिभार' के कारण नींद की समस्या काफी बढ़ गई है।
मुंबईकरों की देर रात को डिजिटल स्क्रॉलिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, क्योंकि यह एक सिद्ध तथ्य है कि सोने से कम से कम एक घंटे पहले मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट, टीवी आदि जैसे डिजिटल उपकरणों का स्विच ऑफ करना स्वस्थ नींद के लिए जरूरी है।
दुर्भाग्य से 37 प्रतिशत मुंबईकर देर रात तक सोशल मीडिया ब्राउजिंग के कारण जागते रहते हैं, जबकि 88 प्रतिशत ने सोने से ठीक पहले तक अपने फोन का उपयोग करते रहना स्वीकार किया और 90 प्रतिशत लोगों की समस्या रात में कम से कम एक-दो बार नींद का टूट जाना है।
डॉ. शाह ने कहा कि पर्याप्त या अच्छी नींद की कमी व्यक्ति के स्वास्थ्य, व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में उसकी उत्पादकता को प्रभावित करती है और अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय उत्पादकता को प्रभावित करती है।
रिपोर्ट ने यह भी उजागर किया कि कैसे 31 प्रतिशत मुंबईकर अपने भविष्य के बारे में चिंता करते हुए रात में जाग जाते हैं और लगभग 35 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे 'अनिद्रा' का शिकार हो गए हैं।
जीआईएसएस-2023 ने पाया कि 37 प्रतिशत मुंबईकरों के लिए एक प्रचलित अभ्यास 'अपने बिस्तर के अलावा अन्य जगहों पर सोना' था, जो उनकी नींद आने की समस्या का कारण है, क्योंकि सोने की एक निश्चित जगह एक सकारात्मक नींद की आदत बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।
डॉ. देशमुख ने कहा कि पहले हर महीने हर तरह की नींद संबंधी बीमारी के सिर्फ 8-10 मरीज आते थे, मगर अब लगभग 25-30 आते हैं।
डॉ. देशमुख ने आईएएनएस को बताया, "मैं बिना दवा के उनका इलाज करता हूं.. केवल एक्यूपंक्चर और 'पंचकर्म' के साथ उपचार चक्र 2-4 सप्ताह के बीच चलता है और पुराने रोगियों के लिए थोड़ा अधिक।"
नींद के मुद्दे अब स्पष्ट हो गए हैं, 'क्योंकि लगभग सभी रोगी पूछते हैं कि क्या यह टीकाकरण के कारण है' और डॉ. देशमुख ने स्थिति बिगड़ने से पहले सरकार से इस पहलू पर गंभीरता से विचार करने का आग्रह किया।
वेकफिट डॉट को के मुताबिक, जीआईएसएस-2023 के लिए मार्च 2022-फरवरी 2023 तक शहरों, आयु समूहों, जनसांख्यिकी में 10,000 से अधिक लोगों का सर्वेक्षण किया गया और पिछले छह वर्षो में लगभग 210,000 प्रतिक्रियाएं एकत्र की गईं।
--आईएएनएस