आसमान की चौखट पर पानी का बोझ लिए खड़े हैं बादल. धरती पर झुकने चला है आसमान. आपके तन पर झरने को मचल रहे हैं, रूपहले मोती. तो आप क्यों क़ैद हैं अपनी ही दीवारों में? ये बारिश, जो गीत गा रही है, वो बुला रही है कि आओ, मुझे जियो. जीवन के माथे से ऊब का, तनाव का हर ताप बहा दो. तो चलिए इस बारिश को थोड़ा और ख़ुशनुमा बनाएं. एक भीगे सफ़र पर चलें. ठिकानों का पता दे रही हैं.
लोनावला
सह्याद्रि पहाड़ की गोद में बसा लोनावला ‘महाराष्ट्र के स्विट्ज़रलैंड’ के तौर पर मशहूर है. यहां बारिश का मौसम किसी दुआ की तरह आता है, जो अपने साथ लाता है पल-पल बदलते नज़ारे और खिलखिलाते रंग. दूर बैठकर यह बातें शायद थोड़ी किताबी लगें, लेकिन लोनावला पहुंचकर आप महसूस करेंगे कि कैसे जादू सच होते हैं, कैसे इधर बादल धरती के कान में बूंदों का गीत गुनगुनाना शुरू करते हैं और उधर आसमान इंद्रधनुषी हो उठता है.
नज़ारेः टाइगर पॉइंट से बहते झरनों का अद्भुत दृश्य, दूसरी-तीसरी सदी में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बनाई गईं कार्ला की गुफ़ाओं की शांति, भुशी डैम से आती आवाज़ें, घने जंगल से घिरी पावना झील के रंग और मुग़ल, मराठा और पेशवा इतिहास के गवाह क़िले.
कैसे पहुंचें: रेलवे स्टेशन की सुविधा है. मुंबई तक फ़्लाइट लेकर आगे की यात्रा सुविधा अनुसार टैक्सी, बस, ट्रेन से की जा सकती है.
गोवा
रोमांच पसंद करने वालों के लिए गोवा से बेहतर दूसरी जगह नहीं. अगर आप ख़ामोशी से बारिश का आनंद लेना चाहते हैं, तब भी गोवा मंज़िल हो सकता है. यहां के पुर्तगाली क़िले और छोटे-छोटे घर आंखों को शांत व सुकूनभरे क्षण देने के लिए काफ़ी हैं. उस पर बीच थेरैपी का मिलना, माने जीवन की भागमभाग पर कोई मरहम रख दिए जाने जैसा है.
नज़ारेः चमकती रेत, आसमान छूते नारियल के पेड़, बड़ी-बड़ी समुद्री लहरें और शानदार सी-फ़ूड. गोवा में देखने के लिए तमाम नज़ारे हैं. जहां दूधसागर वॉटरफ़ॉल ट्रेकिंग और हाइकिंग के लिहाज़ से बेहतर है, वहीं अगुआड़ा फ़ोर्ट भव्यता को परखने के लिए. कसीनो और बीच एक अलग दुनिया के अनुभव का निमंत्रण देते हैं, लेकिन अगर पणजी, वास्को डिगामा और मोर्मुगाओ या मोर्मुगांव हार्बर को भूल गए, तो यात्रा अधूरी रह जाएगी.
कैसे पहुंचें: गोवा सड़क, रेल व हवाई तीनों मार्गों से जुड़ा है. नज़दीकी शहरों से रोड ट्रिप प्लान की जा सकती है. पॉकेट के अनुसार रेल या हवाई यात्रा विकल्प भी चुना जा सकता है.
लेह-लद्दाख
यहां क़दम रखते ही क़ुदरत के ऐसे ख़ूबसूरत रंग स्वागत करते हैं कि आप बरबस उनसे इश्क़ कर बैठें. आपके मन में भले कोई दार्शनिक सवाल न हो और न ख़ुद को खोजने की चाह, लेकिन जब आप लद्दाख के पहाड़ों पर होते हैं तो खुली आंखों से मेडिभटेशन कर रहे होते हैं.
नज़ारेः गौतम बुद्ध की स्मृतियों और धरोहरों को संजोने के लिए जापान व लद्दाख के मिले-जुले प्रयास से तैयार सफ़ेद शांति स्तूप यहां का विशेष आकर्षण है. आप पैंगॉन्ग झील के किनारे लगने वाला लद्दाख फ़ेस्टिवल, माथो मठ, बुद्ध के जीवन चित्रों से सजा लेह महल, मिट्टी से बना ज़ोरावर का क़िाला, छांगला की बर्फ़ देख सकते हैं.
कैसे पहुंचें: नज़दीकी रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है और नज़दीकी एयरपोर्ट लेह. दिल्ली से सड़क मार्ग से होते हुए लगभग 12 घंटे में पहुंच सकते हैं.
दार्जिलिंग
मुस्कुराहटों का मतलब सीखने के लिए दार्जिलिंग की पहाड़ियां सबसे मुफ़ीद जगह हैं. ये वादियां सारी नफ़ासत चुराकर आपको एक सरल इंसान की तरह सांस लेना सिखा देती हैं और जब आप लौटते हैं, तो कुछ नए से होते हैं.
नज़ारेः यहां देखने के लिए टाइगर हिल, घूम रॉक, संदक्फ़ू, लेबांग रेसकोर्स, विक्टोरियम जलप्रपात, रॉक गार्डन, सेंचल झील, जापानी मंदिर, शाक्या मठ, चाय बाग़ान, औपनिवेशिक काल की बनी इमारतें, स्ट्रीट क्लब, पुराने स्कूल भवन और चर्च जैसी तमाम जगहें हैं.
कैसे पहुंचें: नज़दीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुडी में है, जो भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा है. रेलमार्ग न चुनना चाहें तो हवाई यात्रा का विकल्प भी है.
मुन्नार (केरल)
इस बारिश में अगर आप कुछ ख़ास लम्हे, कुछ ख़ास अनुभव और कभी न भूले जा सकने वाले दृश्य सहेजना चाहते हैं, तो मुन्नार इन सबके साथ आपका इंतज़ार कर रहा है.
नज़ारेः मुन्नार से 15 किमी दूर एराविकुलम नैशनल पार्क है. यहां दुर्लभ नीलगिरी बकरियों को देखा जा सकता है. नैशनल पार्क के नज़दीक अनाई मुडी पहाड़ी है. माने दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी. यहां मट्टुपेट्टी झील है, बांध हैं और चाय के बाग़ानों के मनमोहक दृश्य, जहां बोटिंग व पिकनिक का आनंद ले सकते हैं.
कैसे पहुंचें: कोचीन से सड़क के रास्ते तक़रीबन चार घंटे में मुन्नार पहुंच सकते हैं. नज़दीकी रेलवे स्टेशन है, अलुवा व एयरपोर्ट कोचीन.
उदयपुर
झीलों के शहर के पास कहने को बहुत कुछ है. एक ऐसा गीत जो आपको आनंद और उल्लास से भर देगा. हो सकता है कि झील के आंगन में बूंदें गिर रही हों, तो आप ख़ुद कोई गीत गुनगुना उठें या कविता लिख डालें. क्योंकि इस शहर में जितनी अतीत की गंध है. उतनी ही वर्तमान की ख़ुशबू भी है. शाही आन, बान और शान के क़िस्से अब भी शहर की फ़िोज़ाओं में हैं.
नज़ारेः अरावली की पहाड़ियों से घिरे मॉनसून महल के चारों तरफ़ की हरियाली और ख़ूबसूरती सिर्फ़ मॉनसून के मौसम में ही देखी जा सकती है. यहां आकर आप सिटी पैलेस, बंगोर की हवेली, कुम्भालगढ़ क़िला, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, जग मंदिर, उदयपुर घाट और विंटेज क्लासिकल कार संग्रहालय भी ज़रूर देखें.
कैसे पहुंचें: उदयपुर में रेलवे स्टेशन है, जो देश के प्रमुख शहरों को जोड़ता है. नज़दीकी हवाई अड्डा महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है.