ऊर्जा: चिंतन करे और चिंता नहीं जानिए इन दो शब्दों का मतलब ?
जीवन को सकारात्मक गति देने के लिए मनुष्य को चिंता
जनता से रिस्ता वेबडेस्क :- चिंता मनुष्य का एक गंभीर विकार है। यह मनुष्य को अंदर ही अंदर जलाती है। यह किसी समस्या का समाधान नहीं है। एक सामान्य व्यक्ति अपने जीवन भर विभिन्न प्रकार की चिंताओं से युक्त रहता है। एक कहावत है कि चिंता चिता के समान है। चिंता ग्रस्त व्यक्ति के लिए समस्याओं से लड़ना कठिन ही नहीं, बल्कि असंभव हो जाता है। चिंता से व्यक्ति इतना तनावग्रस्त हो जाता है कि उसकी बुद्धि और विवेक दोनों नष्ट हो जाते हैं। इसमें घिरा व्यक्ति विभिन्न प्रकार के मनोविकारों और रोगों से घिरने लगता है।
जीवन को सकारात्मक गति देने के लिए मनुष्य को चिंता न करके चिंतन करना चाहिए। चिंता से जहां मन अशांत रहता है वहीं चिंतन से मन में एकाग्रता, शांति, उत्साह और प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। चिंतन जीवन को प्रकाश की ओर ले जाता है। चिंतनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई सुगम मार्ग अवश्य मिल जाता है। वास्तव में चिंता ही चिंतन को जन्म देती है। जब व्यक्ति किसी समस्या से ग्रस्त होता है तभी वह उस समस्या के बारे में चिंतन करता है और चिंतन से समस्या का समाधान निकालता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए यह स्वाभाविक है कि वह चिंता, डर, लोभ, क्रोध, भय, प्रेम, घृणा, करुणा आदि मानवीय प्रवृत्तियों से युक्त रहता है। मनुष्य को चाहिए कि वह इन स्वाभाविक प्रवृत्तियों से बिना घबराए इनका सामना करे और आगे बढ़े।
भगवान श्री कृष्ण ने भविष्य की चिंता व्यर्थ बताई है। उन्होंने वर्तमान में जीने को सर्वोचित बताया है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में चिंता न करने की बात कही है। वह कहते हैं कि क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? तुम क्या लेकर आए थे जो खो गया है? कर्म पर तुम्हारा अधिकार है फल पर नहीं। अत: हमें चिंता से उबरने के लिए उस चिंता के विषय में चिंतन करना चाहिए। चिंतन ही चिंता समाधान की कुंजी है। चिंतन के पश्चात जो कार्य किया जाता है, उसकी सफलता में संदेह नहीं रहता है।