कारगर रही योगी की सोशल इंजीनियरिंग; चंद महीनों में एंटी-इन्कंबेंसी के नायक कैसे बन सकते थे सपा के नेता

पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में पंजाब और उत्तर प्रदेश ने सबको चौंकाया

Update: 2022-03-11 08:36 GMT
अभय कुमार दुबे का कॉलम:
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में पंजाब और उत्तर प्रदेश ने सबको चौंकाया। अखिलेश यादव सपा का मत प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब रहे, सीटें भी 2017 की तुलना में तकरीबन 80 बढ़ीं। लेकिन सपा नॉकआउट पंच करने वाली स्थति में नहीं आ पाई। यूपी परिणामों को समझने की कोशिश करते हैं।
Q. योगी यूपी बचाने में कैसे सफल रहे?
- मोटे तौर पर इसकी तीन वजहें नजर आती हैं। पहला तो सामाजिक गठजोड़ की किलाबंदी, दूसरा एंटी-इनकम्बेंसी में नरमी और तीसरा विपक्ष का रवैया। बीजेपी के सामाजिक गठजोड़ में थोड़ा क्षय तो हुआ है, लेकिन इतना नहीं कि उसे हराया जा सके। इसे बचाए रखना भी बीजेपी की जीत है।
भाजपा ने 54 हजार करोड़ रुपए खर्च करके मुफ्त राशन बंटवाना जारी रखा, जिससे एंटी-इनकम्बेंसी को नरम करने में काफी मदद मिली। मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के नेता चार सालों तक घरों में रहे, कोई संघर्ष नहीं किया। वे चाहते थे कि आखिरी छह महीने या सालभर में एंटी-इन्कंबेंसी के नायक बन जाएं, जो नहीं हो पाया।
Q. बीजेपी के सामाजिक गठजोड़ को तोड़ने में अखिलेश कितना कामयाब रहे?
- सपा ने बीजेपी के सामाजिक गठजोड़ की बहुत -सी बिरादरियों के वोटों को विभाजित तो किया, लेकिन पूरी तरीके से नहीं खींच पाए। जो गैर यादव, पिछड़ी जाति के नेता दलबदल करके सपा के साथ गए, उनके साथ उनके पूरे वोट सपा में नहीं गए। इसी तरीके से पश्चिमी यूपी में जाट समाज ने जयंत चौधरी (आरएलडी) के उम्मीदवारों को तो वोट दिए लेकिन सपा के उमीदवारों को उस तरीके से वोट नहीं दिए। इसने बीजेपी को थोड़ा कमजोर तो किया, लेकिन उसके पराजित होने की स्थिति पैदा नहीं हो पाई।
Q. पर बीजेपी की 50 सीटें कम होती दिख रही हैं, क्या यह बड़ा नुकसान है?
- पांच साल सरकार चलाने के बाद कुछ नाराजगियां हो जाती हैं, ऐसे में 30-40 सीटें कम होना नुकसान नहीं कह सकते। अगर बीजेपी 205-210 सीटों पर ठहर जाती और गठजोड़ की नौबत आती, तब इसे नुकसान माना जाता और जबरदस्त एंंटी-इनकम्बेंसी के रूप में देख सकते थे। लेकिन अभी कुछ नहीं दिखता।
Q. अखिलेश-माया-प्रियंका का यूपी में अब कोई भविष्य बचा है?
- भविष्य सिर्फ अखिलेश यादव का बचा है। प्रियंका गांधी ने न सिर्फ यूपी में पार्टी को डुबोया बल्कि पंजाब में भी पार्टी के हश्र के लिए प्रियंका ही जिम्मेदार हैं। रही बात मायावती की तो उन्होंने अपना सबकुछ खो दिया है। बसपा को 11-12% वोट मिला है। मतलब सिर्फ जाटव समाज ने उन्हें अपना वोट दिया है।
जाटवों से परे जितने वोट उनकी पार्टी लाती थी, इस बार उन्हें वो नहीं मिले। मायावती बहुजन समाज की नेता बनने के बजाय सिमटकर अब सिर्फ जाटव समाज की नेता रह गई हैं। जब आपको केवल एक ही बिरादरी वोट देगी तो आप 9-10% वोट तक ही सिमट जाते हैं और सीटें तब बननी शुरू होती हैं, जब आप 20% वोट पाते हैं।
Q. क्या योगी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता होगी?
- मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी गोरखपुर के नेता थे। 2017 में सीएम बनने के बाद उप्र के नेता बने और इस चुनाव के बाद वे राष्ट्रीय स्तर के नेता बन सकते हैं। बशर्ते वो अपने पत्ते ठीक तरह से खेलें। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
आंदोलन का मुद्दा बेअसर!
मुद्दे बेअसर नहीं रहे। अगर असर नहीं होता, तो पश्चिमी यूपी में सपा का गठजोड़ 47 से 48 सीटें जीतता हुआ नहीं दिखता। हां, किसान मुद्दे का पंजाब में जरूर असर दिखाई दिया। पंजाब में इससे भाजपा और अकाली दोनों को नुकसान हुआ।
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