यूपी में योगी मॉडल तोड़ेगा कई और मिथक

उत्तर प्रदेश में योगी मॉडल की स्वीकार्यता पर मुहर लगने के साथ ही सियासत के कई मिथक भी टूट गए हैं

Update: 2022-04-05 06:27 GMT
उत्तर प्रदेश में योगी मॉडल की स्वीकार्यता पर मुहर लगने के साथ ही सियासत के कई मिथक भी टूट गए हैं. कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू विधानसभा चुनाव में पूरी तरह चला, लेकिन यूपी के लोगों ने योगी सरकार के पांच साल के कामकाज पर भी सकारात्मक मुहर लगाई है. वर्ष 2017 का चुनाव योगी के चेहरे पर नहीं, बल्कि मोदी के चेहरे पर ही लड़ा गया था, लेकिन 2022 के चुनाव में वोटर को मोदी का चेहरा ध्यान में रखते हुए भी इस बात की तस्दीक करनी थी कि योगी सरकार ने राज्य में कैसा और कितना काम किया या फिर वह जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी.
वोटर तक पहुंचा योगी का संदेश
नतीजों से साफ़ है कि यूपी का योगी मॉडल अपना संदेश ज़्यादातर यूपी वासियों तक पहुंचाने में कामयाब रहा है. इस बार का चुनाव नतीजा आगामी कम से कम एक दशक तक निर्णायक साबित हो सकता है. योगी को जब बीजेपी ने यूपी का मुख्यमंत्री बनाया, तब उनके पास शासन का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन अब वे दोबारा सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं, तो उनके पास पांच साल का भरापूरा अनुभव है. उन्हें कोई नया प्रयोग भी नहीं करना है. पिछले पांच साल जो किया, उसे बरक़रार रखना है, आगे बढ़ाना है. बाक़ी मिशन 2024 के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो यूपी पर मेहरबान रहेंगे ही. आम चुनाव का रथ यूपी की डबल इंजन सरकार के आसरे ही पार लगना है, यह फिर से सच साबित हो गया है. बीजेपी भी यूपी में लगातार शक्ति संचार करती रहेगी, यह भी तय है.
गुड गवर्नेंस पर ही लगी है मुहर
क़रीब चार दशक बाद उत्तर प्रदेश में कोई सरकार रिपीट हुई है और कोई सियासी शख़्सियत लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी है, तो इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. समाजवादी पार्टी विपक्ष में बैठी है और सिर्फ़ विरोध ही अब विपक्ष का नज़रिया बन चुका है. लेकिन जनता ने योगी सरकार की गुड गवर्नेंस पर मुहर लगा कर विपक्ष को बता दिया है कि यूपी में 2017 से 2022 तक अपेक्षित विकास हुआ है. क़ानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार आया है. महिलाएं सुरक्षित महसूस करने लगी हैं. युवाओं की अपेक्षाएं धराशायी नहीं हुई हैं और वंचित वर्ग की बुनियादी उम्मीदें कुछ हद तक पूरी होने लगी हैं.
क़ानून व्यवस्था का फ़ायदा
उत्तर प्रदेश में महिलाओं, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में पुलिस-प्रशासन पर भरोसा बढ़ना सिर्फ़ कड़ी क़ानून व्यवस्था का ही नतीजा नहीं है. क़ानून व्यवस्था का डर अपराधियों में बैठा है, यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि तो है ही, साथ ही महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा, उनकी गरिमा का सम्मान और उनके अंदर पैदा हुए आत्मविश्वास के कुछ और भी कारण हैं. पहले उन्हें घर के बाहर खेतों में शौच के लिए जाना पड़ता था. अब घरों में शौचालय बन जाने के कारण ऐसी वारदात बहुत कम हो गई हैं.
योजनाओं के तालमेल का जादू
पहले बिजली बहुत कम आती थी. आज ऐसा नहीं है. उत्तर प्रदेश के शहरी इलाक़ों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता बढ़ी है. पिछले पांच वर्ष में 1.41 करोड़ घरों में बिजली के कनेक्शन दिए गए हैं. वंचित वर्ग के 45 लाख लोगों को पक्के आवास मिल चुके हैं. इसके अलावा जन-धन खाते, सरकार से सीधे खातों में रक़म पहुंचने, रसोई गैस की उज्जवला योजना लागू किए जाने से महिलाओं का भरोसा यूपी की योगी सरकार पर बना.
महिलाओं में बढ़ा सुरक्षा का भाव
जिस समय उत्तर प्रदेश में चुनावी घमासान छिड़ा हुआ था, तब पत्रकार मित्र सर्जना शर्मा का फ़ोन कॉल आया. वे बहुत प्रसन्न थीं. उन्होंने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी दौरे के दौरान उन्होंने अपनी एक और महिला पत्रकार मित्र के साथ रात 10 बजे गाड़ी रोक कर रोडसाइड ढाबे पर खाना खाया. क्या पहले कोई महिला ऐसा सोच भी सकती थी? दो महिला पत्रकारों के मन में रात में ढाबे पर खाना खाने के लिए रुकने का हौसला जगा तो इसका एक ही कारण था कि उन्हें यूपी पुलिस की सतर्क मौजूदगी दिखाई दी होगी. बात छोटी सी है, लेकिन इसके असल मायने इतने बड़े हैं, जिन्होंने यूपी में चार दशक बाद इतिहास रच दिया है.
वंचितों का बढ़ा आत्मविश्वास
कोरोना काल में वंचित वर्ग को मुफ़्त अनाज मुहैया कराने की डबल इंजन सरकार की दोहरी व्यवस्था का लाभ भी योगी सरकार को मिला. उनके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हुई क्योंकि काम या पैसा मांगने के लिए उन्हें किसी के सामने झुकना नहीं पड़ा. अनाज वितरण व्यवस्था में कोई चूक न हो, इस पर पूरा ध्यान रखा गया. इससे लाभार्थियों को लगा कि सरकार जो कहती है, करती भी हैं. अनाज देने का वादा प्रभावी रूप से ज़मीन पर उतार कर योगी सरकार जनता का भरोसा जीतने में सफल रही.
जो काम करेगा, वह जीतेगा
राजनैतिक गलियारों में नोएडा को लेकर एक नकारात्मक मिथक बन गया था कि यूपी का जो मुख्यमंत्री वहां के दौरे पर आता है, वह दोबारा सत्ता में नहीं लौटता. पता नहीं इस बेबुनियाद चर्चा की शुरूआत कहां से हुई, लेकिन आज के वैज्ञानिक दौर में इस तरह की दकियानूसी बातें वे ही सोच सकते हैं और सच मान सकते हैं, जिनके लिए कोविड का टीका किसी पार्टी विशेष का हो सकता है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले कार्यकाल में बहुत बार नोएडा आए और आज क़रीब चार दशक का रिकॉर्ड तोड़ कर दोबारा यूपी के मुख्यमंत्री बन गए हैं. वह भी भारी बहुमत से. तो एक बात साफ है, जो काम करेगा, वह जीतेगा. जो हालात सुधारेगा, उसे जनता सिर-माथे बैठाएगी. जो दकियानूसी बातों पर भरोसा करेगा, वह किस तरह जनता को आश्वस्त कर पाएगा?
अधिकारियों को कड़ा संदेशहाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग़ाज़ियाबाद के एसएसपी को अपराधों पर प्रभावी अंकुश नहीं लगा पाने के कारण निलंबित किया, तो सोनभद्र के जि‍लाधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद कुर्सी से उतार दिए गए. नाकारा और भ्रष्ट आलाधिकारियों पर कार्रवाई कर योगी सरकार ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अफ़सरों को अपना काम अच्छी तरह से करना ही होगा. कोई सरकार अगर इसी तरह अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले तबक़े पर सख़्त नज़र रखे, तो उसकी मंशा जनता को पसंद ही आएगी. उत्तर प्रदेश में यही हुआ है. यही कारण है कि वर्ष 2014, 2017 और 2019 के बाद 2022 में बीजेपी ने 41.3 प्रतिशत वोट पाकर यूपी में कामयाबी का चौका लगाया है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
रवि पाराशर वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं. नवभारत टाइम्स, ज़ी न्यूज़, आजतक और सहारा टीवी नेटवर्क में विभिन्न पदों पर 30 साल से ज़्यादा का अनुभव रखते हैं. कई विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग फ़ैकल्टी रहे हैं. विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल हो चुके हैं. ग़ज़लों का संकलन 'एक पत्ता हम भी लेंगे' प्रकाशित हो चुका है।
Tags:    

Similar News

-->