वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी: चीन के इसी संस्थान से कोविड-19 के प्रसार की जताई जा रही आशंका

वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी

Update: 2021-05-25 05:23 GMT

डॉ. अश्विनी महाजन। पिछले लगभग सवा साल से जिस भयंकर महामारी से विश्व और मानवता गुजर रही है, उसके प्रारंभ की जानकारी लेने का अधिकार सबको है। हालांकि यह बात कि कोरोना वायरस वुहान (चीन) की एक प्रयोगशाला में तैयार किया गया, वह जानबूझकर या दुर्घटनावश प्रयोगशाला के बाहर आ गया था, लगभग महामारी की शुरुआत से ही चर्चा में है। मार्च 2020 से ही यह चर्चा में है। लगभग उसी समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी बार-बार 'चाइनीज वायरस' शब्द दोहरा रहे थे। कुछ लोगों का यह कहना है कि शायद डोनाल्ड ट्रंप के चीन के साथ तल्ख रिश्तों के कारण उनकी बातों को मीडिया ने हल्के में लिया और इस महामारी के पीछे कोई षड्यंत्र भी हो सकता है, इस बात की ठीक से तहकीकात नहीं की।


हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रयोगशाला से वायरस निकलने की बात को स्वीकार नहीं किया और मार्च 2021 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह चीन के पशु बाजार से निकला हुआ वायरस है। यह वायरस चमगादड़ से निकलकर किसी और जीव से होता हुआ मानवों में प्रवेश कर गया।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी नहीं कहा गया कि यह वुहान की प्रयोगशाला से नहीं निकला। लेकिन इस आशंका को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता। इसलिए रिपोर्ट को 'अनिर्णीत' बताकर अमेरिका को भी संतुष्ट करने का प्रयास संगठन ने किया है। रिपोर्ट में शामिल हर विषय पर कहा गया है कि उसके लिए और अध्ययन की जरूरत है। लेकिन विशेषज्ञों की एक बड़ी जमात ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है और वे लोग लगातार इसमें आगे और तहकीकात कर रहे हैं।
आज अनेक अध्ययन एवं शोध पत्र प्रकाशित हो रहे हैं जो साफ तौर पर वुहान प्रयोगशाला से जानबूझकर या दुर्घटनावश वायरस के लीक होने की ओर इंगित कर रहे हैं। दुनिया भर के अधिकांश विशेषज्ञ विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को सिरे से नकार रहे हैं। उनका कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को जिन विषयों के बारे में तहकीकात करनी थी, वह की ही नहीं। इस महामारी के शुरुआती दौर से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके प्रमुख संदेह के घेरे में हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच के डायरेक्टर केन राथ का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन 'संस्थागत मिलीभगत' का दोषी है। यह उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के उस संदर्भ में कहा है जब उसने चीन की इस बात को आंख मूंदकर मान लिया था कि यह संक्रमण मानव से मानव में नहीं फैलता है, जबकि यह संक्रमण चीन में प्रारंभ हो चुका था। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के कहे पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वर्ष 2019-20 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की कुल फंडिंग का 8.6 करोड़ डॉलर चीन से, 53 करोड़ डॉलर गेट्स फाउंडेशन से और 37 करोड़ डॉलर गेट्स फाउंडेशन की ही सहयोगी संस्था गावि एलाइंस से आता है। यानी संगठन पूरी तरह से चीन और गेट्स फाउंडेशन के प्रभाव में है। गौरतलब है कि जब-जब यह आवाज दुनिया में उठी कि इस वायरस का उद्भव चीन से हुआ, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की भूमिका को उजागर नहीं किया। बिल गेट्स ने भी चीन का बचाव करने की कोशिश की और कहा कि वास्तव में चीन ने महामारी के शुरू से ही बहुत अच्छा काम किया है और विश्व स्वास्थ संगठन असाधारण एजेंसी है। यानी यदि तारों को जोड़ा जाए तो चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन और बिल गेट्स और उनकी गेट्स फाउंडेशन के बीच नापाक रिश्तों की साफ झलक मिलती है। ये नापाक रिश्ते किस प्रकार से दुनिया में तबाही का सबब बन रहे हैं, यह हमारे सामने स्पष्ट रूप से आ रहा है।
गौरतलब है कि 14 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ संगठन ने इस महामारी के मानवीय संक्रमण को नकारा था। संगठन के इस रुख के चलते इतने भयानक वायरस का मानव से मानव संक्रमण को रोकने का रत्ती भर भी प्रयास नहीं हुआ। चीन से दुनियाभर के मुल्कों को जाने वाली हवाई उड़ानें जारी रहीं और यह वायरस पूरी दुनिया में फैल गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस गलती की जिम्मेदारी भी स्वीकार नहीं की गई। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्लूएचओ से अपने संबंध विच्छेद करने की भी घोषणा कर दी और उसकी फंडिंग भी रोक दी गई। हालांकि किसी अन्य देश ने इतना बड़ा कदम तो नहीं उठाया, पर डब्लूएचओ की छवि को धक्का जरूर लगा। कई शोधपरक अध्ययनों से अब अमेरिका की संस्थाओं और व्यक्तियों के चीन के साथ संबंध भी सामने आ रहे हैं। जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनके अनुसार वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के शोधकर्ता 'गेन ऑफ फंक्शन' प्रयोग कर रहे थे, जिसका उद्देश्य यह था कि कोरोना वायरस को कैसे मानव की कोशिकाओं में संक्रमित किया जाए यानी वह प्रयोग जिससे कोविड वायरस विकसित हो सकता है।
ये तथ्य ब्रिटेन के प्रतिष्ठित विज्ञान लेखक निकोलस वेड द्वारा सामने लाए गए हैं। निकोलस वेड का कहना है कि चूंकि वायरस को पहले से ही मानव कोशिकाओं में विकसित कर लिया गया था, उसके मानव में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि दुनिया में इस वायरस के फैलाव का केंद्र वुहान ही है, इसलिए इसकी आशंका और बढ़ जाती है। इसमें एक व्यक्ति पीटर जासजैक की भूमिका और अधिक संदेहास्पद है। यह व्यक्ति डब्लूएचओ द्वारा वुहान में भेजे गए आयोग का एक सदस्य था। यह वही व्यक्ति है जिसने 'द लांसेट' में लिखा था कि वायरस के फैलाव में प्रयोगशाला की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन इसका जिक्र नहीं किया कि पीटर जासजैक न्यूयॉर्क स्थित इको हेल्थ एलाइंस के माध्यम से वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के लिए फंडिंग की व्यवस्था कर रहे थे। यानी हितों के टकराव की बात का जिक्र नहीं किया गया।
[प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]


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