एक साल बाद भी चिंता कायम
पिछले साल इन्हीं दिनों जिस लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी, उससे हम आज तक आजाद नहीं हुए हैं
पिछले साल इन्हीं दिनों जिस लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी, उससे हम आज तक आजाद नहीं हुए हैं। भूलना कठिन है, संपूर्ण लॉकडाउन की अवधि चार बार बढ़ाई गई थी और उसके बाद से अब तक अनलॉक होने का सिलसिला चल रहा है। फिलहाल देश अनलॉक 10 से गुजर रहा है, मगर देश के करीब एक तिहाई हिस्से में फिर से लॉकडाउन का खतरा मंडरा रहा है। चिंता कायम है, सिर्फ यह महारोग ही मुसीबत नहीं है, उसके साथ समस्याओं का पूरा गिरोह सा चल रहा है।
एक लाख साठ हजार से ज्यादा लोगों की मौत कोरोना से हुई है, लेकिन उससे कई गुना ज्यादा लोग अपनी माली हालत से बेहाल हुए हैं। कोरोना से हानि के अनेक आंकडे़ सामने आते रहते हैं और दिल केवल यही चाहता है कि जल्द से जल्द इससे मुक्ति मिले और इस चाह में लॉकडाउन से मुक्ति भी शामिल है। यह बहस तो अनंतकाल तक जारी रहेगी कि कोरोना ने ज्यादा नुकसान पहुंचाया या लॉकडाउन ने? यह बहस भी हमेशा रहेगी कि क्या लॉकडाउन ही बचाव का एकमात्र विकल्प था?