गोवा विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ममता बनर्जी को सत्ता की कुंजी सौंपेगी या फिर टूरिस्ट वीजा?
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का गोवा दौरा एक तरह से असफल रहा.
अजय झा
परिस्थितियां बदलते ही किसी व्यक्ति के सुर कैसे बदल जाते हैं इसका ताज़ा नमूना कल गोवा (Goa) की राजधानी पणजी में देखने को मिला. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) अपने तीन दिन के दौरे पर गोवा में थीं. मकसद था गोवा विधानसभा चुनाव के पूर्व, राज्य में अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के लिए जमीन तलाशना. वही ममता बनर्जी जो कुछ महीनों पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी को बाहरवालों की पार्टी कह रही थीं और बार-बार उनका यही कहना था कि गुजरात के नेता पश्चिम बंगाल पर कब्ज़ा करना चाहते हैं, बीजेपी शासित गोवा में वह कुछ और ही राग अलाप रही थीं.
इससे पहले कि कोई उनसे सवाल करता कि क्या पश्चिम बंगाल की पार्टी और पश्चिम बंगाल के नेता कोलकाता से 2200 किलोमीटर दूर गोवा में बाहरवाले नहीं हैं, ममता बनर्जी ने खुद इसका जवाब देना उचित समझा. उनकी सफाई थी कि गोवा में वह राज नहीं करेंगी, अगर उनकी पार्टी गोवा चुनाव जीतने में सफल रही तो गोवा के लोग ही गोवा में सरकार चलाएंगे, बस वह उस सरकार पर नज़र बनाए रखेंगी ताकि तृणमूल कांग्रेस की सरकार गोवा की जनता के हित में काम करती रहे.
क्या ममता बनर्जी गोवा की जनता को मूर्ख समझती हैं?
ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल की ही तरह गोवा भी उनका घर है, क्योंकि गोवा भारत का हिस्सा है. "जैसे की मैं बंगाल की बहन हूं, उसी तरह मैं गोवा की भी बहन हूं." ममता बनर्जी ने कहा. यानि कि बंगाल की दीदी गोवा की भी दीदी बनना चाहती हैं.
अब दीदी से कोई सवाल करे कि क्या बीजेपी की जीत की स्थिति में गुजरात का कोई नेता पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने वाला था, कि उन्होंने बाहरवालों का बवाल शुरू कर दिया था? शुभेंदु अधिकारी, दिलीप घोष या मुकुल रॉय जिसे भी बीजेपी मुख्यमंत्री पद के लिए मनोनीत करती वह क्या पश्चिम बंगाल के निवासी नहीं हैं? पर राजनीति है, सब चलता है. जनता तो मुर्ख है, उन्हें जो समझा दिया वह समझ जाते हैं. दीदी ने तो कम से कम गोवा की जनता को मुर्ख ही समझ रखा है.
गोवा में ममता बनर्जी का विरोध एक नाटक था?
ममता बनर्जी का गोवा दौरा एक तरह से असफल रहा. अगर उनके पोस्टर और बैनर पर कालिख नहीं पोती गयी होती और उनका स्वागत काले झंडे के साथ नहीं होता तो शायद किसी को पता भी नहीं चलता कि वह गोवा पधारी हैं. और ममता बनर्जी नाटक कला में कितनी परिपूर्ण हैं इसका नमूना पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान दिखा था. एक दुर्घटना को जिसमें उनके एक पैर में मामूली सी चोट लग गयी थी, उसे उन्होंने अपने ऊपर बीजेपी द्वारा जानलेवा हमला करार दे दिया था. कई दिनों तक अस्पताल में रहीं और पैर पर प्लास्टर लगा कर और व्हील चेयर पर बैठ कर चुनावी सभाओं में जाती रहीं ताकि उन्हें सहानुभूति वोट मिल सके. जैसा की अनुमान था, वोटिंग ख़त्म होते ही उनका प्लास्टर उतर गया.
जिसकी हड्डी टूट गयी हो और उसके पैर पर प्लास्टर लगा हो, प्लास्टर उतरने के बाद वह कुछ दिनों तक थोड़ा लंगड़ाकर तो चलता ही है, पर प्लास्टर उतरते ही दीदी अपनी पुरानी रफ़्तार में ही चलती दिखीं. अगर पैर टूटने का नाटक हो सकता है तो क्या उनके पोस्टर और बैनर पर खुद कालिख नहीं पुतवाई जा सकती. क्या कुछ लोगों को पैसे दे कर अपने खिलाफ नारेबाजी और उनके हाथों में काला झंडा नहीं पकड़ाया जा सकता?
गोवा में टीएमसी से बीजेपी को खतरा है या कांग्रेस को?
यह सोचना ही हास्यास्पद है कि तृणमूल कांग्रेस के गोवा में चुनाव लड़ने के फैसले से गोवा की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी डर गयी है. बीजेपी तो खुश होगी क्योंकि गोवा चुनाव में बीजेपी की टक्कर कांग्रेस पार्टी से होगी और तृणमूल कांग्रेस को गोवा में जो भी वोट मिलेगा वह कांग्रेस के खाते से टूट कर ही आएगा. वोटों के इस बंटवारे से बीजेपी का फायदा होगा ना कि नुकसान. वैसे लगता नही हैं कि कांग्रेस पार्टी का भी वह कोई खास नुकसान कर पाएंगी. गोवा में अगर कांग्रेस पार्टी हारी तो उसका कारण उनकी खुद अपने घर को सुरक्षित नहीं रखने की विफलता होगी ना कि तृणमूल कांग्रेस के कारण.
गोवा में कांग्रेस या किसी दूसरे दल को तोड़ कर उनके नेताओ को पार्टी में शामिल करने में दीदी की पार्टी पूर्णतया विफल रही. अभी तक सिवा लुइजिन्हो फलेरो के कोई और कांग्रेस का नेता तृणमूल कांग्रेस में शामिल नहीं हुआ है और इस बात को हुए भी एक महीने से ज्यादा समय गुजर चुका है. हां, कल गोवा में यह दिखाने की कोशिश जरूर की गयी कि समाज के प्रमुख लोग गोवा चुनाव के पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं.
क्या लीएंडर पेस और नफीसा अली गोवा में दिलाएंगे सत्ता
प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी लीएंडर पेस और फिल्म कलाकार नफीसा अली को कल तृणमूल कांग्रेस में शामिल किया गया, मानो वह गोवा के निवासी हों. दोनों का कोलकाता से पुराना नाता है और उनकी पैदाईश कोलकाता की है. दोनों फर्राटेदार बंगाली बोलते हैं ना कि कोंकणी. पेस गोवा मूल के जरूर हैं, पर उनकी मां बंगाली हैं और पेस के माता-पिता कोलकाता में रहते हैं. टेनिस से सन्यास लेने के बाद पेस अब ज्यादातर समय मुंबई में रहते हैं.
वहीं नफीसा अली दिल्ली में रहती हैं. फलेरियो को तृणमूल कांग्रेस में शामिल करने के लिए पिछले महीने कोलकाता बुलाया गया था. पर पेस और नफीसा अली को तृणमूल कांग्रेस में शामिल करने गोवा क्यों बुलाया गया यह समझ से परे है. दोनों को कोलकाता में भी तो बुला कर सदस्य बनाया जा सकता था. इस बात की सम्भावना नगण्य है कि इन दोनों में से कोई भी गोवा से चुनाव लडेगा. हां, उन्हें चुनाव प्रचार के लिए गोवा लाया जा सकता है. अगर इसे नाटक नहीं कहते हैं तो नाटक और क्या होता है?
पर अभी तो दीदी के खेला की सिर्फ शुरुआत हुई है. गोवा चुनाव में अभी भी तीन महीने से कुछ अधिक समय बाकी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि दीदी आने वाले समय में नाटकों से गोवा की जनता का इसी तरह मनोरंजन करती रहेंगी. पर दीदी गोवा की जनता इतनी मासूम भी नहीं है कि आपके नाटक के झांसे में आ जाए और मुर्ख तो कतई नहीं है जैसा कि आपने उन्हें समझ रखा है. देखना सिर्फ यही होगा कि गोवा की जनता ममता बनर्जी को सत्ता की कुंजी सौंपेगी या फिर टूरिस्ट वीजा?