नंदीग्राम-सिंगुर के जिन विधायकों ने ममता को दिलाई थी सत्ता, अब क्या वही डुबाएंगे उनकी नैया ?
साल 2011 में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन ने सत्ता के शिखर पर पहुंचाया था
साल 2011 में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को नंदीग्राम (Nandigram) और सिंगुर (Singur) आंदोलन ने सत्ता के शिखर पर पहुंचाया था. इन आंदोलन के नायक क्रमशः शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) और रवींद्रनाथ भट्टाचार्य (Rabindranath Bhattacharya) की मदद से आंदोलन को व्यापक रूप दिया था और 34 सालों के वामपंथियों (Leftist) की सरकार को हटाने में सफलता हासिल की थी, लेकिन साल 2021 के विधानसभा चुनाव के पहले नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन में जो कभी ममता बनर्जी के सिपहासालार थे. अब ममता बनर्जी का साथ छोड़ चुके हैं और ममता बनर्जी के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं.
पिछले 10 वर्षों से सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव से पहले लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं. दीदी के सबसे भरोसेमंद व पुराने सिपाही भी एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं. नंदीग्राम के नायक शुभेंदु अधिकारी ने पहले ही ममता बनर्जी का साथ छोड़ दिया था और अब बीजेपी ने उन्हें ममता बनर्जी के खिलाफ नंदीग्राम में उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है, लेकिन बहुचर्चित सिंगुर आंदोलन में उनके प्रमुख साथी रहे वरिष्ठ नेता रवींद्र नाथ भट्टाचार्य ने भी उनका साथ छोड़ दिया है.
सिंगुर के साथी ने भी ममता को छोड़ा साथ
बता दें कि रवींद्रनाथ भट्टाचार्य सिंगुर आंदोलन में ममता बनर्जी के प्रमुख साथी रहे थे और साल 2001 से ही लगातार जीतते आ रहे थे. लेकिन ममता बनर्जी ने इस बार उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी रहे हरिपाल से एमएलए बेचाराम मन्ना को सिंगुर सीट से टिकट दे दिया. इतना ही नहीं बेचाराम की पत्नी को भी दूसरी सीट से तृणमूल ने टिकट दे दिया. इससे नाराज होकर अंतत: भट्टाचार्य को पार्टी छोड़ दी.
मास्टर मोशाय ने किसानों को किया था गोलबंद
सिंगुर के विधायक व इलाके में मास्टर मोशाय (शिक्षक) के रूप में विख्यात रहे रवींद्र भट्टाचार्य ने आंदोलन में ममता का भरपूर साथ दिया था. उन्होंने आंदोलन के लिए वहां के किसानों को ममता के पक्ष में गोलबंद किया था. हुगली जिले के सिंगुर में टाटा के नैनो कारखाने के लिए किसानों से जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ममता बनर्जी ने तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के खिलाफ साल 2007-08 में आंदोलन चलाया था. ममता के आंदोलन के फलस्वरूप टाटा को सिंगुर छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा था और टाटा ने गुजरात के साणंद में नैनों का कारखाना लगाया था.
नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन से सत्ता के शिखर पर पहुंचीं थी ममता
ममता बनर्जी ने सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन के जरिए राजनीति के शिखर तक पहुंचीं थी. बंगाल की सत्ता को हासिल किया था, लेकिन साल 2021 के विधानसभा चुनाव के पहले इसी नंदीग्राम और सिंगुर के उनके सिपाही उनके खिलाफ खड़े हैं. अब यह देखना है कि नंदीग्राम को अपने लिए लकी मानने वाली ममता बनर्जी की नैया इस चुनाव में पार लगती है या अपने ही सिपाहियों के हाथों डूब जाती है.