पटरी पर लौटेगी ब्रिटिश अर्थव्यवस्था? : ऋषि सुनक के नेतृत्व से वित्तीय चमत्कार की आस
लोकप्रियता के कारण ‘कंजरवेटिव पार्टी’ के लिए जन समर्थन को भी बरकरार रखना है।
आर्थिक संकट से जूझ रहे इंग्लैंड के प्रधानमंत्री का दायित्व संभालते ही भारतीय मूल के ऋषि सुनक के समक्ष यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि वह इस संकट का क्या हल निकालेंगे। पिछले महीनों में 27 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट के साथ 26 सितंबर, 2022 तक डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड इतिहास में अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था। उसके बाद पिछले एक महीने में 6.5 प्रतिशत तक बेहतर हुआ है। इंग्लैंड का विदेशी मुद्रा भंडार आज मात्र कुछ हफ्तों के आयातों के लिए ही पर्याप्त है।
अर्थव्यवस्था में अगस्त माह तक जीडीपी में 0.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हो चुकी थी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के अनुसार भी 2023 में जीडीपी में अधिक से अधिक 0.3 प्रतिशत की ही वृद्धि अपेक्षित है। पिछले माह ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में महंगाई की दर 10.1 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी और यूक्रेन युद्ध के चलते तेल और गैस की आपूर्ति बाधित होने के कारण ईंधन की कीमतें तीन गुना तक बढ़ चुकी हैं। ऐसे में सर्दियों में ब्रिटेनवासी मुश्किलों का सामना करने के लिए बाध्य होंगे।
माना जा रहा है कि 30 प्रतिशत इंग्लैंड वासियों की बचत समाप्त हो चुकी है और सरकारी कर्ज भी, जीडीपी के 95 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जो एक रिकॉर्ड है। प्रधानमंत्री बनते ही ऋषि सुनक ने कहा कि गंभीर संकट में फंसी अर्थव्यवस्था का समाधान उनकी पहली प्राथमिकता होगा। पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में उन्होंने कहा कि गलतियां हुई हैं, लेकिन उनकी नीयत पर शक नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने अपने बजट में लोगों को महंगाई से राहत देने के लिए सरकारी करों में भारी रियायत देने की योजना प्रस्तुत की थी।
उनका कहना था कि इससे आर्थिक विकास को गति मिलेगी और लोगों को महंगाई से राहत। उन्होंने 45 अरब पाउंड की टैक्स कटौती की बात की थी। लेकिन बाजारी शक्तियों ने इसे सही कदम नहीं माना और बाजार में अस्थिरता व्याप्त हो गई, जिससे वित्तीय मंदी के हालात पैदा हो गए। बढ़ती महंगाई के बीच करों में कटौती और उसके लिए जरूरी कर्ज लेने की अनिवार्यता के कारण बाजार ने सरकार की साख काफी नीचे गिरा दी और बॉन्डों की कीमत काफी घट गई।
इसका मतलब यह था कि यदि सरकार अपने खर्चे पूरे करने के लिए ज्यादा ऋण लेना चाहे, तो वह बहुत अधिक ब्याज दर पर मिलेगा, जिससे भविष्य में सरकार की ब्याज की देनदारी बढ़ जाएगी। केवल सरकारी ऋण ही नहीं, अर्थव्यवस्था की रिकवरी भी बढ़ती ब्याज दरों के कारण मुश्किल हो गई है। आम जनता बढ़ती कीमतों के कारण पहले ही घटती क्रयशक्ति से जूझ रही है। महंगाई ने मध्यम वर्ग का बजट पहले से ही बिगाड़ दिया है। ऐसे में मॉर्टगेज कंपनियों की वसूली भी प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है।
इससे बैंकों और वित्तीय संस्थानों की सेहत पर भी असर पड़ सकता है। ऐसे में ऋषि सुनक के ऊपर दायित्व आ गया है कि वह ब्रिटेन की डूबती नाव को पार लगाएं। हालांकि 17 नवंबर को जब वह अपनी आर्थिक नीतियों का खुलासा करेंगे, तभी स्थिति ज्यादा स्पष्ट हो सकेगी। टैक्स घटाने, खर्च बढ़ाने और उधार लेने की नीति के प्रबल विरोधी सुनक मानते हैं कि यह 'कंजर्वेटिव' सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और इसे समाजवाद ही कहा जाएगा। सुनक की योजना है कि उधार टैक्स को वर्तमान 20 पैसे प्रति पाउंड से घटाकर 16 पैसे प्रति पाउंड किया जाए (20 प्रतिशत कटौती)।
2024 तक आयकर को एक प्रतिशत घटाया जाए, घरेलू ईंधन बिल में कटौती हो और कॉरपोरेट टैक्स को 2023 तक बढ़ाया जाए। बाजारों की स्वीकार्यता की दृष्टि से सुनक की योजना लिज ट्रस की नीतियों से बेहतर दिखाई देती है। देखना होगा कि वह अपनी योजना को वास्तविकता का जामा कैसे पहनाते हैं! लेकिन इसमें दो राय नहीं कि सुनक के लिए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण है। एक तरफ उन्हें ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को संभालना है, तो दूसरी ओर 'लेबर पार्टी' की बढ़ती लोकप्रियता के कारण 'कंजरवेटिव पार्टी' के लिए जन समर्थन को भी बरकरार रखना है।
सोर्स: अमार उजाला