बीजेपी की सियासी गणित में निषाद पार्टी का गठजोड़ सफल प्रयोग साबित होगा?

बीजेपी ने निषाद पार्टी से दोस्ती कर साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरने का मन बना लिया है

Update: 2021-09-25 09:17 GMT

फाइल फोटो 

बीजेपी (BJP) ने निषाद पार्टी (NISHAD Party) से दोस्ती कर साल 2022 के विधानसभा (2022 Assembly Elections) चुनाव में उतरने का मन बना लिया है. ऐसे में बीजेपी के लिए निषाद पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के चले जाने की भरपाई कर सकेगी इस पर निगाहें सबकी टिकी रहेंगी. बीजेपी ने अपना दल(एस) और निषाद पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का मन बना लिया है. यूपी के चुनाव प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने इसकी औपचारिक घोषणा भी कर दी है. लेकिन निषाद पार्टी कितने सीटों पर लड़ेगी इसका खुलासा अभी नहीं हो पाया है.


सवाल बीजेपी के साथ भारतीय सुहेलदेव पार्टी के नाता तोड़ने के बाद होने वाले नुकसान का है. इसलिए माना जा रहा है कि बीजेपी ने उसकी भरपाई के लिए निषाद पार्टी से हाथ मिलाया है. दरअसल साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का गठबंधन अपनादल (एस) और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भारतीय सुहेलदेव पार्टी से हुआ था. बीजेपी के इस सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला हिट हुआ था और 300 से ज्यादा सीटें जीतने मे वह कामयाब हुई थी. लेकिन ये गठजोड़ साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद टूट गया और योगी सरकार से ओमप्रकाश राजभर ने किनारा कर लिया।

इस्टर्न यूपी के दो दर्जन सीटों पर राजभर समुदाय का दबदबा है
इस्टर्न यूपी में राजभर समुदाय दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर चुनाव के गणित को बदलने की हैसियत सीधे तौर पर रखता है. यूपी में राजभर समाज की आबादी 3 फीसदी कही जाती है और मिर्जापुर और भदोही, गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर और वाराणसी जिले में इस समुदाय की अच्छी आबादी है. बीजेपी राजभर की पार्टी को 8 और अपना दल (एस) को 11 सीटें देकर साल 2017 में 384 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. बीजेपी को इसका फायदा मिला था और यूपी में 22 सीटों पर बीजीपी राजभर वोटबैंक की वजह से जीत पाई थी. साल 2017 में भारतीय सुहेलदेव पार्टी 4 और अपना दल (एस) 9 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी.

निषाद पार्टी से समझौते के क्या हैं मायने?
निषाद समुदाय का पूर्वांचल में बड़ा वोट बैंक हैं. निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड आदि उप जातियां जो निषाद समाज का हिस्सा हैं उन्हें साधने की कोशिश बीजेपी द्वारा की गई है. कहा जाता है कि यूपी के 20 लोकसभा और 60 विधानसभा सीटों पर निषाद वोटरों की आबादी निर्णायक है. इसलिए निषाद पार्टी को साथ लाकर बीजेपी ने निषाद समाज में पकड़ मज़बूत करने की कोशिश की है. बीजेपी निषाद का मत संजय निषाद को चुनाव लड़ाकर साल 2019 में प्रयोग कर चुकी है. बीजेपी का ये प्रयोग हिट हुआ था और संजय निषाद संत कबीर नगर से चुनाव जीते थे. इसलिए साल 2022 में समीकरण हिट हो इसलिए औपचारिक घोषणा कर दी गई है.

यूपी के कई जिले जैसे गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद ,फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर में निषाद वोटरों की तादाद अच्छी है. लेकिन उनकी अलग-अलग उपजातियों की वजह से वोट बंटने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता. दूसरी तरफ बिहार में निषाद समुदाय के मंत्री और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी भी यूपी में चुनाव लड़ने का दम भर रहे हैं. ज़ाहिर है निषाद समाज को साधने का बीजेपी फॉर्मुला कारगर हो पाएगा इसको लेकर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी. दरअसल ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद दोनों ही पूर्वांचल और अतिपिछड़ी जाति से हैं. इसलिए बीजेपी संजय निषाद को राजभर का विकल्प मानकर राजनीतिक समीकरण को मज़बूत करने की फिराक में है.

गैर बीजेपी पार्टियां भी निषाद समाज को लुभाने की कोशिश में पीछे नहीं
समाजवादी पार्टी फूलनदेवी की मूर्ति गोरखपुर में लगाने का ऐलान कर चुकी है. मुलायम सिंह पहले फूलन देवी को पार्टी में शामिल करा निषाद समाज का विश्वास जीतने में कामयाब रहे हैं. फिलहाल समाजवादी पार्टी के विशंभर प्रसाद निषाद राज्यसभा के सदस्य हैं. इसलिए समाजवादी पार्टी ब्राह्मण समाज के अलावा निषाद समाज पर डोरे डाल रही है. वहीं कांग्रेस बोट यात्रा के ज़रिए निषाद समाज को साधने की फिराक में है. ऐसे में देखना वाकई दिलचस्प होगा कि बीजेपी की सियासी गणित सटीक बैठती है या फिर राजभर के किनारे होने से उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा?
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