क्या 'आकुस' हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 'हथियारों की दौड़' का कारण बनेगा?

आकुस’ (AUKUS) ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य एक त्रिपक्षीय सुरक्षा और प्रौद्योगिकी गठबंधन है

Update: 2021-11-12 08:00 GMT

ज्योतिर्मय रॉय आकुस' (AUKUS) ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य एक त्रिपक्षीय सुरक्षा और प्रौद्योगिकी गठबंधन है, जिसकी घोषणा 15 सितंबर 2021 को भारतीय-प्रशान्त क्षेत्र के लिए किया गया है. समझौते के अन्तर्गत, अमेरिका और ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां हासिल करने में मदद करेंगे और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक साथ काम करेंगे और "साइबर क्षमताओं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वाण्टम प्रौद्योगिकियों और अतिरिक्त अन्य क्षमताओं" पर परस्पर सहयोग भी करेंगे. इस समझौते के अन्तर्गत, ऑस्ट्रेलिया अपनी वायु सेना, नौसेना और थल सेना के लिए नयी लम्बी दूरी की मारक क्षमताओं का अधिग्रहण करेगा.

इस समझौते का केंद्र बिंदु, भारत-प्रशांत क्षेत्र का विशाल समुद्री क्षेत्र है. यह क्षेत्र, पूर्व में भारत से लेकर जापान और दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया तक फैला हुआ है, जहां कई महत्वपूर्ण नौगम्य मार्ग हैं. हाल के वर्षों में इस महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र में चीन की बढ़ती शक्ति और प्रभाव का विस्तार हुआ है, उससे कई देश चिंतित हैं. 'आकुस' से पहले इसी लक्ष्य और उद्देश्य को लेकर भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच 'क्वाड' (QUAD- Quadrilateral Security Dialogue) बनाया गया था, जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर आधारित 'स्वतंत्र, मुक्त एवं समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने तथा भारत-प्रशांत क्षेत्रों को किसी बाहरी शक्ति (विशेषकर चीन) के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने तथा मौजूद चुनौतियों से निपटने के प्रति प्रतिबद्ध है
'आकुस' जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका से मिलकर बने 'क्वाड' का ही एक मजबूत और ठोस परिणाम है. जिससे जापान और भारत को बाहर रख कर, यूनाइटेड किंगडम को जोड़ा गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'आकुस' के गठन के परिणामस्वरूप हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की किसी भी प्रकार के अनैतिक सैन्य कार्रवाई का जवाब देने के लिए एक नए मजबूत सैन्य गठबंधन तैयार है.
'आकुस' का उद्देश्य चीन को महाशक्ति के रूप में उदय होने से रोकना
विश्व नौ-सैन्य शक्ति वर्चस्व की होड़ में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम द्वारा चीन के उदय को रोकने की कोशिश करना एक स्वाभाविक रक्षात्मक प्रक्रिया है. चूंकि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, इसलिए दोनों देशों का ऑस्ट्रेलिया पर निर्भर रहना रणनीतिक सिद्धांत और मजबूरी भी है. इसीलिए चीन के सरकारी मीडिया 'ग्लोबल टाइम्स' ने 'आकुस' (AUKUS) के गठन पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि "दक्षिण चीन सागर में अपनी जान देने के लिए पश्चिमी सैनिकों का पहला जत्था ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की होने कि संभावना है." इस गठबंधन को चीनी सरकार ने "पश्चिमी शीत युद्ध मानसिकता" के रूप में वर्णित किया.
चीन निर्मित सामानों का बाजार सिकुड़ रहा है
हकीकत यह है कि ऑस्ट्रेलिया हो या भारत, जापान, इन देशों को आज नहीं तो कल हिंद-प्रशांत क्षेत्र को चीन के साथ साझा करना ही पड़ेगा. पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन तीनों देश के लिए इस क्षेत्र में कोई सैन्य संघर्ष करना उनके हितों में नहीं है. लेकिन चीन की विस्तारवाद नीति के चलते चीन अगर अपने आक्रामक रवैया को नियन्त्रण में नहीं करता है तो विश्व में ध्रुवीकरण की राजनीति को वर्चस्व मिलेगा. विश्व के साथ-साथ वर्तमान में चीन भी आर्थिक मंदी से गुजर रहा है. इस स्थिति में विश्व-ध्रुवीकरण के कारण चीन को न केवल वैश्विक आर्थिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि रक्षा बाजार में भी चीन अलग-थलग पड़ सकता है, जो विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले देश के लिये हितकारी नहीं है.
कोरोना संक्रमण के कारण विश्व में चीन की छवि को धक्का पहुंचा है और चीन निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता को लेकर भी प्रश्न उठना शुरू हुआ है. कहीं-कहीं तो स्थानीय स्तर पर चीन निर्मित वस्तुओं को बहिष्कार का भी सामना करना पड़ रहा है. चीन निर्मित सामानों का बाजार सिकुड़ रहा है, चीन को इस पर गहन विचार करने की आवश्यकता है.
दक्षिण चीन सागर या समग्र रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का नियंत्रण या अधिकार बनाए रखना न केवल व्यावसायिक हितों के लिए, बल्कि खुद को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. अमेरिकी नौसैनिक-रणनीतिकार अल्फ्रेड थायर द्वारा 1896 में लिखी गई अपनी किताब 'दि इंटरेस्ट ऑफ अमेरिका इन सी पावर, प्रेजेंट एंड फ्यूचर' में कहा था कि समुद्री व्यापार या नौसैनिक शक्ति हो, समुद्र जिसके नियंत्रण में होगा, उसके द्वारा दुनिया को नियंत्रित करना संभव है. उनका कहना है कि भूमि पर कितनी भी संपत्ति हो, समुद्र के द्वारा संसाधनों का आदान-प्रदान या व्यापार करना जितना आसान है उतना किसी अन्य तरीके में नहीं है. उनके अनुसार, यदि कोई देश विश्व की एक प्रमुख शक्ति बनना चाहता है, तो उसे अपने आस-पास के जल-सीमा में अधिकार स्थापित करना आवश्यक है. विश्व की बढ़ती जनसंख्या को भविष्य में खाद्य आपूर्ति के लिए काफी हद तक समुद्री भोजन पर निर्भर रहना पड़ेगा.
नौसेना शक्ति को बढ़ाना और जलमार्गों पर नियंत्रण महत्वपूर्ण है
चीन का पर्यवेक्षण है कि अमेरिका के नेतृत्व में एक नया नौसैनिक बल धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय समुद्री प्रणाली को बदल रहा है. चीन ने लंबे समय से यह महसूस किया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए नौसेना शक्ति को बढ़ाना और जलमार्गों पर नियंत्रण स्थापित करना अतिमहत्वपूर्ण है. चीन अब अमेरिकी नौसैनिक रणनीतिकारों के लगातार नक्शे कदम पर आगे चल रहा है. अपनी नौसैनिक शक्ति बढ़ा रहा है. अपनी शक्ति पर भरोसा करते हुए, चीन पूर्वी एशिया के महत्वपूर्ण समुद्रमार्ग पर अमेरिका को घेरने की कोशिश कर रहा है.
चीन ने अपनी नौसेना शक्ति को बढ़ा कर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक वास्तविक खतरे के स्तर तक ले गया है. अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया को परमाणु चालित पनडुब्बी देने की घोषणा करके और ब्रिटेन (UK) के साथ एक सैन्य गठबंधन 'आकुस' का गठन कर के स्थिति से निपटने का प्रयास किया है. सवाल यह है कि, क्या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी नौसैनिक शक्ति बढ़ाने और अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए बेचैन चीन को इस तरह का गठबंधन बनाकर रोका जा सकता है?
'आकुस' के कारण इस क्षेत्र में हथियारों की नई दौड़ शुरू हो गई है. लंदन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्ट्रैटेजिक स्टडीज और स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, इस कोरोना महामारी के दौरान भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य खर्च में कोई कमी नहीं आई है. उनका का कहना है कि चीन और भारत के नेतृत्व में इस क्षेत्र में सैन्य खर्च पिछले एक दशक में 46 प्रतिशत बढ़ा है. विशेषज्ञों का मानना है कि, अब जब 'आकुस' बन गया है, तो सैन्य कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिये चीन की सैन्य खर्च में और वृद्धि होने कि संभावना है.
ऑस्ट्रेलिया और जापान अपने रक्षा खर्च में वृद्धि कर रहे हैं
'आकुस' के गठन के साथ, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा का माहौल और अधिक विवादास्पद होना तय है. चीन कि 'विस्तारवाद मानसिकता' को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया और जापान ने अपने रक्षा खर्च में वृद्धि कर रहे हैं. जापान ने 2022-23 की अपनी सैन्य योजना के लिए 50 बिलियन डॉलर का रिकॉर्ड बजट निर्धारित किया है. ऑस्ट्रेलिया का 2021-22 के सैन्य आवंटन पहले से ही सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के दो प्रतिशत से अधिक है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'आकुस' में शामिल होते ही ऑस्ट्रेलिया को अपने रक्षा आवंटन को जीडीपी के 3 से 4 प्रतिशत तक बढ़ाए बिना अपने वादे को पूरा करना लगभग असम्भव है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों ने भी अपने सैन्य कार्यक्रमों की समीक्षा शुरू कर दी है.
भारत-चीन की दोस्ती विश्व शांति और प्रगति के लिए वरदान साबित हो सकती है
ऐसे में चीन को अपने पड़ोसी भारत के साथ संपर्क को मजबूती देना हितकारक है. दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी इन्हीं देशों में है, जिनकी सुरक्षा और प्रगति का उत्तरदायित्व इनके सरकारों पर है. चीन को यह भूलना नहीं चाहिए कि भारत एक शांतिप्रिय और प्रगतिशील राष्ट्र है. भारत कभी भी चीन की तरह आक्रामक नहीं रहा. भारत-चीन की दोस्ती विश्व शांति और प्रगति के लिए वरदान साबित हो सकता है. पाकिस्तान के साथ चीन की दोस्ती जहां दुनिया में चीन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहा है, वहीं भारत के साथ दोस्ती चीन को शांति और समृद्धि दिला सकता है. अब चीन को ही आगे का रास्ता तय करना है


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