'आधार' को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने का विरोध क्यों?
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ स्वर्गीय डॉ. साहब सिंह वर्मा के निवास पर मुलाकात के दौरान हमने उनसे ‘संसद और सांसद’ के बारे में चर्चा की थी
ज्योतिर्मय रॉय मुझे याद है, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ स्वर्गीय डॉ. साहब सिंह वर्मा के निवास पर मुलाकात के दौरान हमने उनसे 'संसद और सांसद' के बारे में चर्चा की थी. तब अटल जी ने कहा था, "संसद लोकतंत्र का मंदिर है और सांसद लोकतंत्र के पुजारी हैं. और संसद की गरिमा में ही लोकतंत्र का प्राण बसा हुआ है." हमने बात को आगे बढ़ाते हुए उनसे पूछा, लोकतंत्र में विरोधी दलों की भूमिका क्या होना चाहिए? उन्होंने स्पष्ट कहा था की, "विरोधी दल लोकतंत्र की शक्ति हैं. लेकिन विरोध, सकारात्मक होना चाहिए. हम भी विरोधी रहे, लेकिन सकारात्मक. हमने जोड़ने की राजनीति की है. विरोध जोड़ने का होना चाहिए, तोड़ने का नहीं."
आज, संसद के गलियारों में राजनीति की विचारधारा उलझ कर रह गई है. इन गलियारों में अपने भविष्य की तलाश में जुटी आम जनता को रास्ता उलझा हुआ और मंजिल धुंधली नजर आ रही है. आज संसद में विपक्षी दलों की भूमिका को लेकर एक अलग ही तस्वीर देखने को मिल रही है. अब संसद में हंगामा भारतीय लोकतंत्र की एक प्रक्रिया बन गई है. विरोध के नाम पर माइक तोड़ना, स्पीकर के सामने टेबल पर खड़े होना, कुर्सी तोड़ना, बिल फाड़ना और रूल बुक फाड़ना या फेकना संसद में सांसदों की दिनचर्या हो गई है.
हाल ही में, संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे के साथ समाप्त हुआ. शीतकालीन सत्र के 17वें दिन कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने 'निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक, 2021' पेश किया. जिसे विपक्ष के हंगामे के बीच राज्यसभा में मंजूरी मिल गई है. इससे पहले, विपक्षी सदस्यों के भारी विरोध के बीच लोकसभा ने 'निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक, 2021' को मंजूर कर दी थी. सरकार का मानना है की, मतदाता पहचान कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ने से मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान को रोकने में मददगार साबित होगा. जबकि विपक्षी दलों द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे चुनाव के दौरान गैर-नागरिकों द्वारा मतदान होगा. विपक्ष की राय थी कि यह विधेयक मतदाताओं के गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करता है
सांसद डेरेक ओ ब्रायन को निलंबित कर दिया गया
स्पीकर ने डेरेक ओ ब्रायन को बिल का विरोध करते हुए राज्यसभा की नियम पुस्तिका को कथित रूप से फेंकने के लिए उन्हें शेष शीतकालीन सत्र तक के लिए निलंबित कर दिया. जब राज्यसभा में विधेयक पारित हुआ, तो कांग्रेस, टीएमसी, वाम दलों, डीएमके और एनसीपी के सदस्यों ने विरोध में वॉकआउट किया. अपने निलंबन पर टीएमसी सांसद ब्रायन ने ट्वीट कर कहा, "पिछली बार जब मैं राज्यसभा से निलंबित हुआ था तब सरकार किसान कानून थोप रही थी. उसके बाद क्या हुआ हम सब जानते हैं. बीजेपी द्वारा संसद का मखौल उड़ाए जाने और चुनावी कानून विधेयक 2021 को थोपने का विरोध करते हुए आज निलंबित कर दिया गया. आशा है कि यह विधेयक भी शीघ्र ही निरस्त कर दिया जाएगा." ब्रायन 13वें ऐसे राज्यसभा सांसद हैं जो असभ्य व्यवहार के आरोप में निलंबित किए गए हैं.
TMC सांसद डेरेक ओ ब्रायन
गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा में कांग्रेस व टीएमसी सहित कई विपक्षी दलों के 12 सदस्यों को उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया था. इन सदस्यों को मॉनसून सत्र के दौरान 'अशोभनीय आचरण' करने के कारण, शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया था. इसके बाद विपक्ष इन सदस्यों का निलंबन वापस लेने की मांग करता रहा, जिसको लेकर संसद में जमकर हंगामा हुआ. वहीं सरकार इस बात पर अड़ी रही कि जब तक निलंबित सदस्य माफी नहीं मांगेंगे तब तक उनका निलंबन रद्द नहीं किया जाएगा. इन्हीं वजहों से सदन की कार्यवाही बार-बार बाधित होती रही.
आधार कार्ड के महत्व को जानना जरूरी है
आखिर आधार कार्ड को मतदान पहचान पत्र से जोड़ने का विपक्ष द्वारा इतना विरोध क्यों है? क्या मतदान पहचान पत्र को आधार से जोड़ने से लोकतंत्र वाकई खतरे में है? इसे समझने के लिए आधार कार्ड के महत्व को जानना जरूरी है. आधार कार्ड दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली है. आधार को 2010 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लॉन्च किया था. 29 सितंबर 2010 को पहला आधार नंबर आवंटित किया गया था. विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री पॉल रोमर ने 'आधार' को "दुनिया का सबसे परिष्कृत आईडी कार्यक्रम" बताया.
'आधार' कार्ड भारत सरकार द्वारा भारत के निवासियों को प्रदान की जाने वाली बायोमेट्रिक जानकारी युक्त एक विशिष्ट पहचान पत्र है, जिसे एक अनोखा 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या के साथ डिजिटल माध्यम से कहीं भी और कभी भी सत्यापित किया जा सकता है. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा 'आधार' कार्ड जारी किया जाता है.
आधार कार्ड दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली है.
आधार योजना के प्राथमिक उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा लाभ और सब्सिडी के वितरण में संशोधन लाना, रिसाव एवं क्षति को अवरुद्ध करना, नकली और छद्म पहचानों को रद्द करना, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना हैं. 'आधार' कार्ड में कार्ड धारक का पता नाम, लिंक माता-पिता/अभिभावक का नाम, आवासीय पता, मोबाइल नंबर और ईमेल पता (वैकल्पिक) के साथ-साथ बायोमेट्रिक जानकारी के रूप में कार्ड धारक के चेहरे की छवि, हाथ के 10 उंगलियों के निशान और दोनों आंखों के पुतलियों के स्कैनिंग की जानकारी शामिल होती है. आधार कार्ड में मौजूद धारक की बायोमेट्रिक जानकारी के कारण इसका बहुउद्देश्यीय उपयोग इसके महत्व को कई गुना बढ़ा देता है.
'आधार' का बहुउद्देशीय उपयोग इसको अहम बनाती है
'आधार' का उपयोग किसी भी प्रणाली को स्थापित करने के लिए किया जा सकता है जिसके लिए पहचान, निवास और कार्ड धारक की सुरक्षित उपलब्धता के प्रमाण की आवश्यकता होती है. आधार का उपयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्य सुरक्षा, एकीकृत बाल विकास योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार और छात्रवृत्ति और उच्च शिक्षा फेलोशिप, जननी सुरक्षा योजना, प्राचीन जनजातीय समूह विकास योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन, जनधन खाता योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, जनश्री बीमा योजना, आम आदमी बीमा योजना, संपत्ति हस्तांतरण, पहचान पत्र, पैन कार्ड, निवास का सत्यापन, आयकर रिटर्न, बैंक खाता खोलना, गैस कनेक्शन, पासपोर्ट, पासपोर्ट, परीक्षाओं में बैठने के लिये, बच्चों को नर्सरी कक्षा में प्रवेश दिलाने के लिये, सिम कार्ड खरीदने के लिये, जैसे महत्वपूर्ण कार्य में किया जा सकता है.
जन्मकाल से ही 'आधार' को लेकर विरोध होता रहा
'आधार' जन्मकाल से ही काफी चर्चा का विषय रहा है. निजी जानकारी की सुरक्षा को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे हैं. लेकिन समय के साथ सुरक्षा की दृष्टि से 'आधार' मजबूत होता गया. शुरुआत में बायोमेट्रिक एंट्री को लेकर विपक्ष ने हंगामा किया था. आज बायोमेट्रिक पहचान के कारण ही आधार इतना महत्वपूर्ण हो गया है. बायोमेट्रिक होने के कारण ही कार्ड धारक की सही पहचान होना वैज्ञानिक तरीकों से संभव है, जिससे इसके दुरुपयोग को रोका जा सकता है. बायोमेट्रिक पहचान से ही लाखों करोड़ लोगों में से अपराधी की पहचान पाना संभव हो पाया है.
मोबाइल सिम को 'आधार' से जोड़ने को लेकर इससे पहले भी सरकार को विरोधी दलों के विरोध का सामना करना पड़ा. लेकिन आज मोबाइल कनेक्शन के साथ 'आधार' को जोड़ने से कई अपराधियों की पहचान करना और उन्हें ढूंढना संभव हो पाया है, इसे बैंक खाते के साथ जोड़ने से घर बैठे बैंकिंग सेवा मिलना संभव हो पाया है और बेनामी जमीन या मकान खरीदने में काले धन के इस्तेमाल पर भी अंकुश लगाना काफी हद तक संभव हो पाया है. आज 'आधार' ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को बहुत आसान बना दिया है.
मोबाइल सिम को 'आधार' से जोड़ने को लेकर इससे पहले भी सरकार को विरोधी दलों के विरोध का सामना करना पड़ा था.
UIDAI के सीईओ सौरभ गर्ग ने कहा कि केंद्र सरकार की 300 और राज्य सरकारों की 400 योजनाओं को आधार से जोड़ने से सरकार ने वास्तविक लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) द्वारा 2.25 लाख करोड़ रुपये की बचत की है. यह आंकड़ा केवल केंद्र सरकार की योजनाओं का है, अगर इसमें राज्य सरकारों की योजनाओं को जोड़ दें तो यह आंकड़ा और बढ़ जाएगा.. 'आधार' नकली लाभार्थियों को सिस्टम से बाहर करने में सफल रहा है.
भारत सरकार द्वारा COVID-19 काल में चलाया गया विश्व का सबसे बड़े 'टीकाकरण अभियान' का प्रबंधन इसी 'आधार' पर आधारित है. लॉकडाउन के दौरान जब महामारी के डर से जनजीवन ठप हो गया, तो डिजिटल आर्थिक लेन-देन ने आम आदमी के जीवन को गतिमान रखा. यह आर्थिक लेन-देन 'आधार' को बैंक से जोड़ने के कारण संभव हुआ है.
गोपनीयता का अधिकार संविधान में मौलिक अधिकार है
2012 में, उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी ने यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई आधार योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की. इस मामले में नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से, गोपनीयता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में संरक्षित है, की पुष्टि की. इस फैसले को आधार मानकर विपक्षी दल आधार को वोटिंग आईडी कार्ड से जोड़ने का विरोध कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जहां राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी व्याख्या है, वहीं सरकार की भी अपनी व्याख्या है.
मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने पर इतना विरोध क्यों?
व्यक्तिगत गोपनीयता का अधिकार अवश्य ही होना चाहिए. यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत गोपनीयता को सार्वजनिक न किया जाए. लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में और सरकारी योजनाओं के मामले में लाभार्थी की सही पहचान होनी भी जरूरी है, अन्यथा सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग हो सकता है. सही व्यक्ति तक सरकारी सुविधाओं को पहुंचना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि मौलिक अधिकार की रक्षा करना. किसी भी जनकल्याणकारी सरकारी योजनाओं की सफलता, सरकार के पास उपलब्ध तथ्यों या आंकड़ों के आधार पर निर्भर करती है. यह जानकारी जितनी सटीक होगी, योजनाओं की सफलता की संभावना उतनी ही अधिक होगी.
'आधार' कार्ड को 'वोटर कार्ड' से जोड़ना 'अनिवार्य' नही, 'वैकल्पिक' है
आधार कार्ड को पहले ही पैन कार्ड से जोड़ा जा चुका है. इस बार नए कानून में 'आधार' कार्ड को 'वोटर कार्ड' से जोड़ा जा रहा है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में 'निजता के अधिकार' मामले के चलते फिलहाल इस मुद्दे को 'अनिवार्य' के बजाय 'वैकल्पिक' के तौर पर रखा जा रहा है. राष्ट्रहित के लिए इसे 'अनिवार्य' बनाना आवश्यक है. यह 'वैकल्पिक' व्यवस्था ही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करती है, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है. 'वोटर कार्ड' का 'आधार' से जुड़ा होने का कारण, विवादित मतदाता का ऑनलाइन सत्यापन तुरंत और सटीक हो सकता है, क्योंकि आधार में मतदाता का बायोमेट्रिक तथ्य मौजूद है.
आधार कार्ड को पहले ही पैन कार्ड से जोड़ा जा चुका है. इस बार नए कानून में 'आधार' कार्ड को 'वोटर कार्ड' से जोड़ा जा रहा है.
चुनाव आयोग ने चुनाव में फर्जी मतदान को रोकने के लिए मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) 'वोटर कार्ड' को 'आधार' से जोड़ने की सिफारिश की है. चुनाव आयोग का मानना है कि फर्जी वोटर कार्ड पकड़ने और निष्पक्ष मतदाता सूची तैयार करने के लिए यह एकीकरण जरूरी है. इस प्रस्ताव को पिछले साल कानून मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने मंजूरी दी थी. इस प्रस्ताव को कानून मंत्रालय को भेजने से पहले चुनाव आयोग ने विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ बैठक की. उनके सुझाव और सहमति के बाद ही चुनाव आयोग ने अंतिम सुझाव कानून मंत्रालय को भेजा. उल्लेखनीय है, मतदाता पहचान पत्र भारतीय नागरिकों का पहचान संबंधी एक दस्तावेज है. इसका उपयोग भी आधार कार्ड की तरह बैंक खाता खोलने, गैस कनेक्शन और मोबाइल सिम लेने के लिए किया जाता है.
विरोधियों का विरोध कितना जायज है
सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि, आधार कार्ड के साथ मतदान पहचान पत्र को जोड़ना अनिवार्य नहीं है, यह स्वैच्छिक तथा वैकल्पिक है. इसके बाद भी, निचले सदन में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, आरएसपी, बसपा जैसे दलों ने इस विधेयक को पेश किये जाने का विरोध किया. कांग्रेस ने इस विधेयक को विचार के लिये संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की थी. विपक्षी दलों ने इसे उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ तथा संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों एवं निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया.
कुछ ही महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है. विपक्षी दल आम जनता को आकर्षित करने के लिए इस बिल को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, आम जनता इसे चुनावी मुद्दा मानने को तैयार नहीं है.
विपक्षी दलों का कहना है कि, मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने से व्यक्तिगत तथ्य सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि व्यक्तिगत सुरक्षा के मामले में मतदाता पहचान पत्र आधार से ज्यादा सुरक्षित है. विरोधियों के पास इस तर्क का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. मतदाता पहचान पत्र एक साधारण पहचान पत्र है, जिसे कार्ड धारक को उसकी तस्वीर और कार्ड के विशिष्ट सीरियल नंबर से प्रमाणित किया जा सकता है. जबकि आधार बायोमेट्रिक पहचान के साथ सक्षम है, सरकार आधार की मदद से किसी भी व्यक्ति की सटीक बायोमेट्रिक पहचान तुरंत कर सकती है.
चुनाव आयोग का मानना है कि 'आधार' को 'वोटर कार्ड' से जोड़ने से मतदाता सूची और अधिक पारदर्शी होगी, जिसके सहयोग से फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है. आधार कार्ड को वोटर कार्ड से जोड़ने से कोई भी व्यक्ति एक से ज्यादा वोटर कार्ड नहीं रख पाएगा. इसके लिए भविष्य में 'वोटर कार्ड' को 'आधार' नंबर से जोड़ा जाएगा. इससे 'वन इंडिया, वन वोट' के आधार पर एक स्वच्छ लोकतंत्र का विकास संभव होगा.
चुनाव आयोग का मानना है कि 'आधार' को 'वोटर कार्ड' से जोड़ने से मतदाता सूची और अधिक पारदर्शी होगी.
लोकतंत्र की सफलता स्वच्छ चुनाव प्रक्रिया में निहित है. लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चुनावी धांधली एक आम बात हो गई है. पुराने जमाने में मतपत्रों पर मुहर लगाना, बूथों पर कब्जा करना और नकली मतदाताओं द्वारा वोट डालना चुनावी परंपरा बन गई है. अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के आगमन के साथ, मतपत्रों पर मुहर लगाने का युग समाप्त हो गया है. अब अर्धसैनिक बलों के इस्तेमाल से सुरक्षा बढ़ाने के साथ-साथ सीसीटीवी कैमरों के इस्तेमाल से चुनाव केंद्र पर कब्जा की घटनाओं पर कुछ हद तक अंकुश लगाना संभव हुआ है. कुछ मतदाताओं की पहचान को लेकर मतदान केंद्रों पर विभिन्न दलों के एजेंटों के बीच मतभेद देखा जा सकता है.
सच तो यह है कि देश के आम लोगों को इस विधेयक से कोई आपत्ति नहीं है. उन्हे इससे पहले भी सिम कार्ड और पैन कार्ड को आधार से जोड़ने पर कोई आपत्ति नहीं थी. समाज के कुछ खास वर्गों को ही इससे आपत्ति है. लेकिन क्यों? आम जनता का कहना है कि, अगर आपकी सोच शुद्ध है, अगर आप कोई गलत काम नहीं करते हैं, तो आपको उस पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए. आधार से जुड़े व्यक्तिगत तथ्य की गोपनीयता को रक्षा करते हुए सरकार को सार्वजनिकरूप से इसका इस्तेमाल करने से रोकना चाहिए और केवल सरकारी तंत्र को ही इसका इस्तेमाल करने का अधिकार होना चाहिए.
मोदी सरकार की जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14बी का संशोधन भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने का एक प्रशंसनीय प्रयास है. इस बिल का मकसद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतीय चुनावी व्यवस्था को मजबूत करना है. सरकार का दावा है कि इस बदलाव से मतदान प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी और फर्जी वोटरों को खत्म करना आसान होगा. इससे चुनाव आयोग की ताकत को और अहमियत बढ़ेगी.
विकास के लिए बदलाव जरूरी है और समाज को सही दिशा देना सरकार का सबसे बड़ा कर्तव्य है. परिवर्तन के लिए सख्त कानूनों और इसके उचित उपयोग की आवश्यकता होती है. सकारात्मक रूप से विरोध करना विपक्षी दलों का राजनीतिक धर्म है, वहीं जनहित की रक्षा करना सरकार का राजधर्म है. सरकार के लिए राष्ट्रहित और जनहित सर्वोपरि है.