चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लेकर केदारनाथ में इतना हंगामा क्यों?

केदारनाथ की बर्फ़ीली ठिठुरन में चारधाम देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ तीर्थ-पुरोहितों के भारी विरोध प्रदर्शन ने देवभूमि उत्तराखंड का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है

Update: 2021-11-03 15:16 GMT

प्रवीण कुमार केदारनाथ की बर्फ़ीली ठिठुरन में चारधाम देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ तीर्थ-पुरोहितों के भारी विरोध प्रदर्शन ने देवभूमि उत्तराखंड का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है. कहें तो चुनावी सरगर्मियों के बीच यह तापमान बीजेपी और उत्तराखंड सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है. चारधाम हकहकूकधारी महापंचायत के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे तीर्थ पुरोहित देवस्थानम बोर्ड को भंग किए जाने से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं. इस बीच विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी ने तीर्थ पुरोहितों के इस विरोध को भांपते हुए, बिना देरी किए ऐलान कर दिया है कि चुनाव बाद अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो इस बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा.

ऐसे में अब सत्ताधारी बीजेपी को यह डर सताने लगा है और यह डर स्वाभाविक भी है कि कहीं चुनावों में ब्राह्मण वोट बैंक उससे छिटक न जाए. अगर ऐसा हुआ तो इसका असर न सिर्फ उत्तराखंड, बल्कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव पर भी पड़ सकता है. बीते दिनों जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को तीर्थ-पुरोहितों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा और केदारनाथ के दर्शन किए बिना उन्हें लौटना पड़ा, तमाम बीजेपी नेता, कार्यकर्ता और प्रदेश सरकार इस बात को लेकर पशोपेश में हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 नवंबर को केदारनाथ धाम पहुंचने वाले हैं. टीएस रावत की तरह अगर पीएम मोदी का भी ऐसा ही विरोध हुआ तो फिर क्या होगा?
देवस्थानम बोर्ड को लेकर इतना हंगामा क्यों?
श्रीमद्भागवत गीता के चौथे अध्याय में एक श्लोक है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
मतलब जब-जब संसार में धर्म की हानि होगी, जब-जब संसार में धर्म को चोट पहुंचेगी तब-तब मैं धर्म को बचाने के लिए, सज्जनों की रक्षा तथा दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना व उसके उत्थान के लिए हर युग में अवतार लूंगा. तो क्या देवभूमि उत्तराखंड के मंदिरों में धर्म की इतनी हानि हो रही थी कि उसे बचाने के लिए सरकार को देवस्थानम बोर्ड का गठन करना पड़ा? निश्चित रूप से सरकार ने बोर्ड का गठन कर जिस तरह की परिस्थितियों को जन्म दिया है, उससे कई सवाल उठने लगे हैं.
अगर सरकार के चश्मे से देखें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि बद्रीनाथ मंदिर हो या केदारनाथ का मंदिर, गंगोत्री हो या फिर यमुनोत्री, ये निजी मंदिर तो हैं नहीं. लोगों की सामूहिक भागीदारी से ही इन मंदिरों की दीवारें खड़ी की गई हैं. लिहाजा इन मंदिरों में चढ़ावे के तौर पर करोड़ों-करोड़ की जो कमाई होती है उसका हिसाब-किताब रखने और उस पैसे से श्रद्धालुओं की सुविधा व मंदिर परिसर के संरचनात्मक ढांचे को बेहतर बनाने के लिए ही सरकार ने वैष्णो देवी मंदिर की तर्ज पर ये कदम उठाया है. राज्य सरकार इस बात का ढिंढोरा पीट भी रही है कि चारधाम देवस्थानम बोर्ड गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है. इसका मकसद इतना ही है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं का ठीक से स्वागत हो और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सके. लेकिन तीर्थ पुरोहित लगातार विरोध प्रदर्शन कर सरकार की नीति और नीयत पर सवाल उठा रहे हैं.
विरोध के पीछे धार्मिक परंपराओं में सरकारी दखलंदाजी
तीर्थ पुरोहितों ने अपनी लड़ाई के लिए जो चारधाम हकहकूकधारी महापंचायत गठित की है उसने बोर्ड को लेकर सरकार की नीयत पर कई तरह से सवाल खड़े किए हैं. महापंचायत के प्रवक्ता बृजेश सती का साफतौर पर कहना है कि देवस्थानम एक्ट के वजूद में आने के बाद से सदियों से चली आ रही परंपराएं तो टूटी ही हैं, यात्रा प्रबंधन एवं संचालन में भी समस्याएं आई है. यहां तक कि मंदिर के पूजा मुहूर्त तक में बदलाव कर दिया गया है. पहले पूजा ब्रह्म मुहूर्त में होता था. उसका समय बदल दिया गया है. मंदिर के इतिहास में पहली बार सरकार इस तरह की दखलंदाजी कर रही है.
जबकि हाईकोर्ट का भी इस संदर्भ में साफतौर पर कहना है कि चार धाम देवास्थानम बोर्ड का अधिकार केवल मंदिर की संपत्ति के प्रशासन और प्रबंधन तक ही सीमित होगा. सती का कहना है कि सरकार मनमानी कर रही है. उसने 31 अक्टूबर तक देवस्थानम बोर्ड को लेकर स्थिति साफ करने की बात कही थी. लेकिन कुछ भी नहीं हुआ. मुख्यमंत्री ने इस बात का भी आश्वासन दिया था कि इस एक्ट पर पुनर्विचार के लिए हाई पावर कमेटी में चारों धामों के आठ तीर्थ पुरोहितों को शामिल किया जाएगा, लेकिन जब हमने नाम भेजे तो उसमें से कई लोगों के नाम ही हटा दिए. उसपर से हाई पावर कमेटी ने बिना तीर्थ पुरोहितों और मंदिर समितियों से संवाद किए ही अपनी अंतरिम रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी.
महापंचायत का कहना है कि देवस्थानम बोर्ड के गठन के दो साल होने जा रहे हैं बावजूद इसके अब तक सरकार के पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है. उल्टे देवस्थानम बोर्ड की ओर से चारों धामों की संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. दबी जुबान में इस बात को लेकर भी कानाफूसी शुरू हो गई है कि मोदी सरकार जिस तरह से रेलवे समेत तमाम सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंप रही है, वो वक्त भी आएगा जब बड़े-बड़े मंदिरों और तीर्थस्थलों को भी निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा.
बोर्ड अधिनियम की धारा 22 पर है बड़ा विवाद
चारधाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम की धारा 22 कहता है कि चारधाम देवास्थानम से संबंधित सभी संपत्तियां जो कि सरकार, जिला पंचायत, जिला परिषद, नगर निगम के अधिकार या अधीक्षण में हैं या किसी कंपनी, सोसाइटी, संगठन या किसी संस्था के अधिकार या अधीक्षण में हैं उन सभी संपत्तियों का हस्तांतरण बोर्ड को हो जाएगा. सरकार स्थानीय प्राधिकरण या किसी व्यक्ति में निहित संपत्तियां और संबंधित देयताएं भी बोर्ड को हस्तांतरित हो जाएंगी. धारा 22 के मुताबिक बोर्ड के पास अधिकार होगा कि बेहतर विकास के लिए वह मंदिर के आसपास की भूमि का अधिग्रहण करे. कोर्ट में भी याचिकाकर्ता ने इसी बात पर आपत्ति जताई थी कि राज्य सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है और तीर्थ स्थान से जुड़े मामलों को लेकर पुजारी समुदाय से कोई परामर्श नहीं किया गया.
टूरिज्म स्पॉट बनाने की नीति से भी है नाराजगी
सरकार चारधाम को दुनिया के नक्शे पर एक भव्य पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की बड़ी भूल कर रही है. असल में चारधाम से यहां बसे आसपास के गांवों की आस्था जुड़ी हुई है. यहां के तीर्थ-पुरोहित, हक-हकूक धारी नंगे पांव बर्फ में डोली लेकर भगवान को लाने और छोड़ने जाते हैं. इसके दस्तूर में इन्हें एक किलो चावल और 10 रुपये मिलते हैं. कहने का मतलब यह कि भगवान की डोली लेकर बर्फ पर मीलों मील नंगे पांव चलने के पीछे भगवान के प्रति एक भावना होती है, आस्था की गहराई होती है. तीर्थ पुरोहितों को लगता है कि देवस्थानम बोर्ड पूरी तरह से एक्शन में आया नहीं है तब तो पुनर्निर्माण के नाम पर केदारनाथ मंदिर का वास्तु बदल दिया गया है. मंदिर की धार्मिक परंपराओं को बदला जा रहा है. तो आने वाले वक्त में यहां किस-किस तरह के बदलाव होंगे सहज ही समझा जा सकता है.
आखिर केदारनाथ में शंकराचार्य की प्रतिमा का क्या मतलब है. यहां तो स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा होती है. धर्म को अपनी राजनीतिक सत्ता में कैसे इस्तेमाल करना है, यह उसकी एक बानगी है. आने वाले समय में जिस तरह से काशी विश्वनाथ मंदिर को नया रूप दिया गया है उसी तरह से कई तरह के टूरिस्ट सर्किट चारधाम में भी बनाए जाएंगे जो टूरिज्म स्पॉट के तौर पर सरकार की कमाई का साधन बनेंगे.
सवाल तो ये भी उठता है कि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत प्रदेश के 51 मंदिरों का प्रबंधन हाथ में लेने के लिए बनाया गया चारधाम देवस्थानम बोर्ड अगर इतना ही शानदार है तो फिर बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने इसके खिलाफ याचिका क्यों लगाई, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया? स्वामी ने इस याचिका में कहा था कि देवस्थानम बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है. देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम और 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है.
यह तो अपने आप में बड़ा विरोधाभास है कि जिस पार्टी की सरकार देवस्थानम बोर्ड का गठन कर रही है उसी पार्टी का सांसद हाईकोर्ट में उसे असंवैधानिक ठहराने के लिए अर्जी लगा रहा है. ऐसे में कोई कुछ भी कहे, असलियत में उत्तराखंड सरकार देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से मनुस्मृति के उसी दर्शन को स्थापित और प्रतिपादित करने में जुटी है कि मंदिर का मुख्य पुजारी तो राजा ही होता है और राजा जिसे चाहे मंदिर प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंप सकता है, पूजा का अधिकार दे सकता है.


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