हमारी संस्कृति में किसी भी शिक्षाविद के लिए स्कूल और कॉलेज के छात्रों को सुरक्षित यौन शिक्षा का विचार स्वीकार्य नहीं होगा, लेकिन इसके विपरीत जाते हुए केरला हाई कोर्ट ने सरकार से स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में सुरक्षित यौन शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता पर विचार करने को कहा है। स्कूलों और कॉलेजों में यौन शिक्षा को शामिल करने को लेकर कोर्ट की यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आई। केस कुछ इस तरह से था कि एक व्यक्ति ने अपनी नाबालिग बेटी की गर्भावस्था खत्म करने को लेकर याचिका दायर की थी। बता दें कि मासूम को उसके अपने भाई ने ही गर्भवती कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि इसमें माता-पिता को कोई दोष नहीं दे सकता, बल्कि इसके लिए समाज ही जिम्मेदार है। भाई का बहन के साथ ऐसा करना परिवार में एक अच्छे माहौल की कमी है। सुरक्षित यौन संबंध के बारे में ज्ञान की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। माननीय कोर्ट ने कहा कि समाज को एक बेहतर माहौल देने के लिए स्कूलों और कॉलेजों को उचित यौन शिक्षा की आवश्यकता के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। कोर्ट ने स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में सुरक्षित यौन शिक्षा को शामिल करने के मुद्दे का अध्ययन करने के लिए एक समिति बनाने को कहा है। माननीय कोर्ट ने किन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए स्कूल और कॉलेज में सुरक्षित यौन शिक्षा की जरूरत महसूस की है, इस बात पर विचार किया जाना चाहिए। हमें तार्किक होते हुए इस विषय को अपनी संस्कृति पर कुठाराघात समझते हुए इसे सिरे से नकार नहीं देना चाहिए। विद्वान मानते हैं कि यौन शिक्षा एक शैक्षिक सिद्धांत है जो शरीर में विभिन्न यौन परिवर्तनों और प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।
इसका लक्ष्य यौन संचारित रोगों और सुरक्षित यौन संबंधों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। स्कूलों में यौन शिक्षा आवश्यक है क्योंकि यह छात्रों को प्रजनन स्वास्थ्य, संबंधित अंगों, किशोरावस्था और यौन संचारित रोगों के बारे में जानकारी देती है। यह लोगों को विभिन्न यौन-संबंधी मुद्दों के बारे में गलत धारणाओं से बचाने के लिए जागरूकता भी बढ़ाती है। यह छात्रों को यौन संचारित रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाती है। यौन संचारित रोग वे हैं जो संक्रमित लोगों के साथ यौन संपर्क से फैलते हैं। स्कूलों में यौन शिक्षा शुरू करके छात्रों को विभिन्न प्रकार के एसटीडी और उनके कारण होने वाले रोगों के बारे में जागरूक किया जा सकता है। यौन शिक्षा से बाल शोषण को कम किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई दुव्र्यवहार करने वाले बच्चे इस बात से अनजान हैं कि उनके साथ क्या हो रहा है। उन्हें उचित रूप से शिक्षित करने से उन्हें अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में पता चलेगा, जिससे संभवत: बाल शोषण के मामलों में उल्लेखनीय कमी आएगी। यौन शिक्षा शरीर और यौवन के दौरान होने वाले परिवर्तनों के बारे में जागरूकता बढ़ाती है। कई माता-पिता को अपने बच्चों को यह समझाने में कठिनाई होती है और वे अक्सर इसे छोड़ देते हैं। परिणामस्वरूप, यौन शिक्षा से माता-पिता और बच्चों दोनों को लाभ हो सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि यौन रूप से जागरूक छात्र असुरक्षित यौन संबंध को न कहने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं। यौन शिक्षा के माध्यम से किशोरों को सेक्स के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सिखाए जा सकते हैं। समय-समय पर, शोध से पता चला है कि मानव कामुकता के बारे में सटीक और उचित जानकारी के साथ सिखाई जाने वाली यौन शिक्षा, जिसमें जोखिमों को कम करने के कदम भी शामिल हैं, छात्रों के लिए फायदेमंद रही है। अक्सर एक बच्चा जो अपने शारीरिक विकास से अनजान होता है, उसे शरीर में बदलाव महसूस करना पूरी तरह से परेशान करने वाला लगता है। वे अलग और टूटा हुआ महसूस करते हैं। यौन शिक्षा बच्चे को जीवन के दौरान मानव शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार करती है।
जब एक छोटे बच्चे को बदलावों के बारे में सिखाया जाता है और बताया जाता है कि कैसे हर किसी के जीवन में अलग-अलग संघर्ष होते हैं, तो वह बड़ा होकर अधिक जिम्मेदार बनता है। यदि वे अपने साथियों में किसी शारीरिक परिवर्तन से गुजर रहे हों या लड़कियों को मासिक धर्म हो रहा हो तो वे उनका मजाक नहीं उड़ाते। वे इस अवधारणा के अनुरूप ढलना सीखते हैं और एक-दूसरे का मजाक उड़ाने के बजाय एक-दूसरे के लिए मौजूद रहना कितना महत्त्वपूर्ण है, यह सीखते हैं। यौन शिक्षा बच्चों, किशोरों को पुरुषों और महिलाओं के शरीर को समझने और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य व्यवहार के प्रति उनके दृष्टिकोण में सुधार करने में मदद करती है। यौन शिक्षा व्यक्ति के मन में अपने साथ-साथ दूसरों के प्रति भी जिम्मेदारी का बीज बोती है। यौन स्वास्थ्य छात्रों की शैक्षणिक सफलता को प्रभावित कर सकता है। अच्छी यौन शिक्षा युवा पीढ़ी को सिखाती है कि यौन हिंसा क्या होती है। कभी-कभी बच्चे अपने साथ होने वाले यौन शोषण से अनजान होते हैं, वे अपने माता-पिता को इसके बारे में बताने से झिझकते हैं क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती है। नाबालिगों के साथ बढ़ रहे यौन अपराधों के लिए इंटरनेट पर मौजूद सामग्री भी जिम्मेवार है। इंटरनेट पर सेक्स पहले से ही खराब तरीके से सिखाया जाता है। बच्चे जिज्ञासु होते हैं, वे माता-पिता के सोचने से पहले ही सेक्स के बारे में जानकारी इक_ा कर लेते हैं। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही यौन शिक्षा सिखाने की पहल करनी चाहिए और बच्चे के बड़े होने पर शिक्षा जारी रखनी चाहिए। इससे बच्चे और माता-पिता के बीच सुरक्षा की भावना भी पैदा होती है।
यौन शिक्षा के बारे में माता-पिता का चुप रहना खतरनाक हो सकता है क्योंकि बच्चा अंतत: इसके बारे में अपने साथियों और इंटरनेट से सीखेगा। माता-पिता वे मुख्य लोग हैं जो बच्चे के बड़े होने पर उसका साथ देते हैं। उन्हें निरंतर मार्गदर्शन और परामर्श की आवश्यकता है। यौन शिक्षा तब सबसे अच्छा काम करती है जब आपस में आपसी विश्वास, आराम और सुरक्षा हो। यौन शिक्षा बच्चे की उम्र और विकास की अवस्था के अनुसार सिखाई जानी चाहिए। भारत के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, भारतीय समाज को हर बच्चे के जीवन में इसके महत्त्व को समझने और स्वीकार करने के मामले में यौन शिक्षा को अभी और अधिक दूरी तय करनी है। अधिकांश स्कूलों में यौन शिक्षा अभी भी कहीं देखने को नहीं मिलती। छात्र अभी भी सडक़ों और इंटरनेट से ज्ञान इक_ा करते हैं। क्या यह ठीक है, सोचना होगा। यह ठीक है कि शिक्षा संस्थानों में यौन शिक्षा के विचार का विरोध होगा, लेकिन एक बार इसकी कमी से होने वाले नाबालिगों के शोषण पर विचार करना होगा। क्या हर स्कूल में यौन शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए या नहीं, व्यवस्था को चिंतन करना होगा। मनोविज्ञान मानता है कि यौन शिक्षा यौन संबंध बनाने को बढ़ावा नहीं देती है, जिसे हमें समझना चाहिए। यौन शिक्षा अगर विद्यार्थियों को दी जाए तो वे कई प्रकार के रोगों से अपना बचाव खुद कर सकते हैं।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com
By: divyahimachal