रूस-यूक्रेन युद्ध को 17 दिन बीत चुके हैं, लेकिन राजधानी कीव आज भी अभेद्य किला है। यूक्रेन अब भी जि़ंदा है। उसके सैनिक और मिलिशिया देश के अस्तित्व और आज़ादी के लिए, जुनून और जज़्बे के स्तर तक, अब भी लड़ रहे हैं। रूसी सेनाओं का डटकर प्रतिरोध अब भी जारी है, बल्कि उसके सैनिक भी मारे जा रहे हैं। कीव रूस और यूक्रेन की साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। बेहद खूबसूरत और 30-35 लाख की आबादी का सुसज्जित शहर है। रूस की रणनीति लगती है कि कीव को तबाह कर खंडहर और मलबे में तबदील न किया जाए, लिहाजा वह कम हमलावर है और नई रणनीति के साथ आगे बढ़कर कीव पर कब्जा करना चाहता है। यूक्रेन के खूबसूरत और विख्यात वे शहर भी थे, बल्कि खारकीव तो यूक्रेन की प्रथम राजधानी थी, लेकिन रूस ने उन्हें मिट्टी में मिला दिया है। भव्य इमारतों को मलबा बनाया जा चुका है। हालांकि वहां भी रूस अपना स्थायी कब्जा करने में नाकाम रहा है। बेशक कीव के बाहर पूर्व, पश्चिम और उत्तर में रूसी सेनाओं ने घेराबंदी कर ली है और मिसाइल, रॉकेट, बमबारी से जबरदस्त हमले किए जा रहे हैं, लेकिन कीव से रूसी सेना आज भी उतनी ही दूरी पर है, जितनी 8-10 दिन पहले थी। बहरहाल सेनाओं की मोर्चेबंदी और हमलों का विश्लेषण हमारा बुनियादी विषय नहीं है।
दरअसल सवाल और चिंताएं युद्ध को लेकर हैं, जिसके कारण विश्व में मानवीय और अन्य संकट बढ़ते जा रहे हैं। यूक्रेन से 25 लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं और 50 लाख से अधिक लोगों में विस्थापित होने का भय, खौफ है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रॉयटर और सीएनएन के साथ साक्षात्कार में और ब्रिटिश संसद को संबोधित करते हुए समझौते के संकेत दिए थे। उनके तेवर नरम पड़े थे। यूक्रेन कहां तक महाशक्ति रूस के खिलाफ युद्ध का सामना कर सकता है! जेलेंस्की ने स्पष्ट कहा था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बन रहा, न ही इस मुद्दे पर कोई जोर देगा। जेलेंस्की क्रीमिया को भी रूस का हिस्सा मानने और मान्यता देने पर तैयार दिखे। रूस जिन अलगाववादी इलाकों को 'स्वतंत्र देश' घोषित कर चुका है, यूक्रेन उन पर भी विमर्श करने को सहमत है। बेहद गंभीर और मौजू सवाल है कि फिर भी युद्ध क्यों जारी है? रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ बातचीत करने की सहमति क्यों नहीं दी है? पुतिन युद्ध को जारी रखने और तबाही के अंबार लगाने पर ही क्यों आमादा हैं? आश्चर्य है कि बड़े देश और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां संवाद के आग्रह तो नहीं कर रहीं, लेकिन उनकी पहली चिंता रासायनिक और जैविक हथियारों को लेकर है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन बार-बार यूक्रेन से आग्रह कर रहा है कि वह प्रयोगशालाओं में कीटाणुओं को यथाशीघ्र मार दे। यदि हमला होने की स्थिति में कीटाणु बाहर फैल गए, तो नई महामारी पैदा हो सकती है और उसमें हजारों लोग मारे जा सकते हैं। यह आशंका और भय भी मानवीय है, लेकिन यूक्रेन में जो हो रहा है, उसकी मध्यस्थता की पहल कौन करेगा? संयुक्त राष्ट्र, उसकी सुरक्षा परिषद, मानवाधिकार आयोग आदि किसी भी युद्ध को लेकर दखल नहीं दे सकते, तो फिर इन संगठनों पर अरबों डॉलर फूंकने का औचित्य क्या है? क्या कोई भी महाशक्ति देश इतना निरंकुश और आततायी हो सकता है कि छोटे देश का अस्तित्व ही ज़मींदोज़ कर दे? यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो दुनिया में नई व्यवस्था लागू हो जाएगी। छोटे और साधनहीन देश बड़े और परमाणु शक्ति देश के 'गुलाम' बनकर जि़ंदा रह सकेंगे! शायद भविष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ भी न रहे। फिर युद्धों का चलन बढ़ेगा और इस तरह दुनिया समाप्त होने के कगार पर जा सकती है! बहरहाल तुरंत युद्धविराम घोषित होना चाहिए और दोनों देशों के राष्ट्रपति बातचीत की मेज पर आएं और लगातार संवाद करें। कोई समाधान जरूर निकलेगा, ऐसा दुनिया के लोकतांत्रिक यकीनी लोगों का मानना है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल