क्यों पंजाब के मामले में गांधी परिवार एक शतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छुपा रही है?

बागी तेवर अपनाये हुए राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट छह दिनों तक दिल्ली में डेरा डाले रहे,

Update: 2021-06-25 13:08 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अजय झा | बागी तेवर अपनाये हुए राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin pilot) छह दिनों तक दिल्ली में डेरा डाले रहे, पर कांग्रेस (Congress) आलाकमान ने उन्हें मिलने के लिए समय नहीं दिया. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह (Punjab CM Captain Amarinder Singh) दो दिनों तक दिल्ली में रहे, पर कांग्रेस आलाकमान ने उनसे मिलने की कोशिश नहीं की. ये दो अलग-अलग घटनाएं एक ही दास्तां बयां करती हैं. कांग्रेस आलाकमान को पता है कि दोनों कांग्रेस-शासित प्रदेशों में सब कुछ ठीक नहीं है, पर लगता है कांग्रेस आलाकमान अपनी जिम्मेदारी से आंख चुरा रही है.

कहते हैं मुसीबत की घड़ी में शुतुरमुर्ग रेत में अपना मुंह छुपा लेता है, इस उम्मीद में की शायद ऐसी ही उसकी मुसीबत टल जाए, पर ऐसा अमूमन होता नहीं है. सचिन पायलट के बारे में यह समझा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की यह योजना है कि पायलट को धरती पर ले आयें, ताकि उनके सपनों की उड़ान रुक जाए, अमरिंदर सिंह के मामले में यह साफ़ साफ़ दिखता है कि कांग्रेस आलाकमान में हिम्मत की कमी है कि उन्हें कुछ सलाह दे सके, आदेश देना तो दूर की बात है.
बुजुर्गों के सहारे कांग्रेस
यह बताते चलें कि कांग्रेस आलाकमान का मतलब अब महज गांधी परिवार रह गया है, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, बाकी केंद्रीय नेताओं की कमान उन्हीं के हाथों में होती है. बहरहाल, तथाकथित आलाकमान ने पंजाब में हो रहे घमासान पर काबू पाने के लिए एक तीन-सदस्यीय कमिटी गठित की. इस कमिटी के मुखिया हैं मल्लिकार्जुन खड़गे. चूंकि 78 वर्ष के बुजुर्ग हैं, इसलिए कांग्रेस पार्टी के चहेते हैं. खड़गे दो बार कर्नाटक में नेता प्रतिपक्ष रहे पर मुख्यमंत्री कभी नहीं बन सके. और अब दूसरी बार संसद में नेता प्रतिपक्ष हैं, 2014 से 2019 तक लोकसभा में और 2019 का चुनाव हारने के बाद फरवरी 2021 से राज्यसभा में हैं. 2019 में खड़गे चुनाव हार गए और अगले वर्ष उन्हें राज्यसभा में चुना गया, इसीलिए कि आलाकमान को एक और बुजुर्ग नेता की जरूरत थी.

कमिटी के दूसरे सदस्य हैं जयप्रकाश अग्रवाल, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमिटी के भूतपूर्व अध्यक्ष जिन्हें सभी भूल चुके थे. 2014 में लोकसभा चुनाव हार गए और सभी उन्हें भूल चुके थे, पर कांग्रेस आलाकमान नहीं. उम्र 76 वर्ष, यानि बुजुर्ग नेता, तो फिर केंद्र की राजनीति में जगह तो बनती ही थी. पंजाब कांग्रेस की मुसीबत उनके लिए वरदान साबित हुई और अग्रवाल वापस केंद्र में और सुर्ख़ियों में वापस आ गए.
कमिटी के तीसरे सदस्य हैं हरीश रावत. जब जवान थे तो 2002 में उन्हें अंगूठा दिखाते हुए बुजुर्ग नेता नारायण दत्त तिवारी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया गया था. 2012 में एक बार फिर उनकी अनदेखी हुयी और मुख्यमंत्री पद उनसे उम्र में बड़े विजय बहुगुणा को सौंप दिया गया. जब आफत आयी तो रावत की बारी आयी. 2014 से 2017 के बीच तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, 2017 के उत्तराखंड चुनाव में दो क्षेत्रों से चुनाव लडें और दोनों क्षेत्रों से पराजय का सामना करना पड़ा. पर चूंकि अब 73 वर्ष के हैं और बुजुर्गों की श्रेणी में आते हैं, पार्टी आलाकमान के अब चहेते हैं. हैं तो पंजाब के प्रभारी पर नज़र हैं पंजाब के साथ ही होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव पर, इस उम्मीद में कि अगर कांग्रेस पार्टी चुनाव जीत जाए तो उन्हें एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल जाए.
दो बार रावत मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और उनके प्रमुख चुनौती देने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को आमने-सामने बैठाने में सफल भी रहे, वहां रोटी भी तोड़ी गयी और चाय की चुस्की भी ली गयी, पर रावत सिद्धू-सिंह के बीच की दूरी मिटाने में पूर्णतया असफल रहे.
तीन नेता, तीनों 70 वर्ष के अधिक के बुजुर्ग, तीनों चुनाव में परास्त, और उन्हें जिम्मेदारी दी जाती है कि वह पंजाब कांग्रेस में कलह का अंत करवाएं. अब इसी कमिटी के जिम्मे है कि अगले वर्ष फरवरी-मार्च के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी कैसे जीते, इसकी रणनीति तैयार करें. तीन चुनाव हारे हुए, जनता द्वारा नकारे हुए नेता पंजाब में कांग्रेस की जीत की रणनीति बनायेंगे!
अब पंजाब का फैसला कमिटी लेगी
हां, इस कमिटी की अमरिंदर सिंह से दिल्ली में मुलाकात जरूर हुयी, और अमरिंदर सिंह को पार्टी आलाकमान (गांधी परिवार) का सन्देश दे दिया गया कि वह सब को साथ ले कर चलें और 2017 में जनता से किये गए वायदे पूरा करें, इस उम्मीद के साथ कि जो उन्होंने पिछले लगभग साढ़े चार साल में नहीं किया, अब कर देंगे.
रावत ने एक और घोषणा की कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी 8 से 10 जुलाई के बीच पंजाब कांग्रेस पर अपना निर्णय सुनायेंगी. पहले खबर आई थी कि सोनिया गांधी अमरिंदर सिंह, सिद्धू और पंजाब के अन्य नेताओं से 20 जून को मिलेंगी और उसके बाद अपना फैसला सुनायेंगी, पर यह निर्णय लेने की जिम्मेदारी निचली अदालत (कमिटी) को दे दिया गया. अग्रवाल ने फैसला सुनाया कि अमरिंदर सिंह अगले चुनाव तक पंजाब में मुख्यमंत्री बने रहेंगे और बाद में खड़गे ने ऐलान किया कि पंजाब में अगला चुनाव सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा जायेगा, मानो जैसे यही जीत की कुंजी है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस आलाकमान सर्वोच्च न्यायलय बन गया है, जहां आगे की डेट दे दी जाती है. न्यायलय में आगे की डेट इसलिए दी जाती है कि उनके पास काम का बोझ होता है, पर कांग्रेस आलाकमान (गांधी परिवार) द्वारा इस लिए निर्णय को टाला जा रहा है क्योंकि यह साफ़ है कि उन्हें यह सूझ नहीं रहा की कैसे और क्या निर्णय लिया जाए.
कमिटी से अमरिंदर सिंह और सिद्धू दोनों मिले, राहुल गांधी बुधवार को पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़, वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बजवा से मिले, पर सिंह और सिद्धू से दूरी बनाये रखी. यह यही दर्शाता है कि या तो कांग्रेस आलाकमान (गांधी परिवार) निर्णय लेने से डरता है या फिर उनमे निर्णय लेने की क्षमता ही नहीं है. इसी अनिर्णय का नतीजा है कि कांग्रेस पार्टी आज रसातल में पहुंच चुकी है. पार्टी का बस एक ही निर्णय है कि चाहे जो भी हो जाए, पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथों में ही होगी.


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