देश में पहली बार जन्म दर में भारी गिरावट इतनी उत्साहजनक क्यों?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों को सार्वजनिक किया जा चुका है

Update: 2021-12-20 13:22 GMT
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों को सार्वजनिक किया जा चुका है. महत्त्वपूर्ण बात है कि यह सर्वेक्षण कोविड-19 महामारी के कारण दो चरणों में किया गया था. सर्वेक्षण-5 के अनुसार, भारत में पहली बार जन्म दर में इतनी गिरावट आई है. देश में जन्म दर 2.1 के प्रतिस्थापन अनुपात से नीचे रही है. सर्वेक्षण के पुराने आंकड़े देखें तो इसके पहले वर्ष 2015-2016 के दौरान देश की प्रजनन दर 2.2 रह गई थी. बता दें कि शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर 1.6 है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश के केवल पांच राज्यों, बिहार (3.0), मेघालय (2.9), उत्तर प्रदेश (2.7), झारखंड (2.4) और मणिपुर (2.2) में अपेक्षाकृत उच्च प्रजनन दर दर्ज की गई है, जो कि देश की औसत प्रतिस्थापन दर से ऊपर है.
हालांकि, देखा जाए तो इन पांच राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से ऊपर दर्ज की गई है, लेकिन इसका सकारात्मक पक्ष है कि यह राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 से कम है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, सिक्किम में केवल 1.1 की प्रजनन दर दर्ज की गई है, जो देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कम है. सवाल है कि देश में पहली बार जन्म दर में भारी गिरावट उत्साहजनक क्यों है? इसका एक सीधा उत्तर तो यही है कि प्रजनन दर जनसंख्या नियंत्रण उपायों के प्रभाव की एक झलक की ओर इशारा करती है.
बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कुल प्रजनन दर को उसकी प्रजनन अवधि के अंत में एक महिला से पैदा हुए बच्चों की औसत संख्या के रूप में निर्धारित करता है. इस मायने में प्रतिस्थापन दर जन्म दर का वह स्तर होता है, जिसके तहत जनसंख्या का पैटर्न एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने आप बदल जाता है. कहने का मतलब है कि यदि एक जोड़ा दो बच्चों को जन्म देता है, तो जनसंख्या नियंत्रित स्तर पर बढ़ेगी, लेकिन यदि एक जोड़ा दो से अधिक बच्चों को जन्म देता है, तो इससे दूसरी पीढ़ी में जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी. इसी तरह, यदि एक जोड़ा एक ही बच्चे को जन्म देता है, तो जनसंख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी, लेकिन घटती दर पर.
इस लिहाज से उत्साहजनक बात यह है कि सिक्किम, लद्दाख, गोवा, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, जम्मू और कश्मीर और चंडीगढ़ में प्रजनन दर 1.5 से कम है. दूसरी तरफ, महाराष्ट्र और राजस्थान में प्रजनन दर 2 है जो राष्ट्रीय औसत के लगभग बराबर है, जबकि शेष 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रजनन दर 1.6 और 1.9 के बीच है.
1952 में आई परिवार नियोजन योजना
वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद से भारत में जनसंख्या वृद्धि की समस्या हमेशा सरकारों के लिए चिंता का विषय रही है. बता दें कि पहली परिवार नियोजन योजना वर्ष 1952 में बनाई गई थी.
हालांकि, तभी से हर सरकार अपने वोट बैंक को बचाए रखने के लिए परिवार नियोजन योजना को अच्छी तरह लागू कराने में पीछे रही है. इस बीच भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1972 में एक विवादास्पद सार्वजनिक नसबंदी अभियान शुरू किया था. इससे जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित तो नहीं हो सकी थी, उल्टा इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को बहुत अधिक राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था.
वर्ष 1950 के आंकड़े बताते हैं कि तब देश में प्रजनन दर 5.90 थी, जिसका मतलब था कि एक घर में औसतन 6 बच्चे थे. तब से, औसत जन्म दर हर दशक में कम तो हो रही है, लेकिन बहुत धीमी गति से. इसलिए, 1950 से 2021 तक जन्म दर 5.90 से घटकर 2.0 रह गई है, जो देश के लिए राहत की बात है. हालांकि, इसका यह मतलब भी नहीं है इससे देश की जनसंख्या तेजी से घटने लगेगी.
सदी के अंत का अंदाजा
दरअसल, जनसंख्या नियंत्रण इस बात पर निर्भर करेगी कि अगली पीढ़ी जन्म दर में किस तरह तक गिरावट लाती है. अब तक देश स्थिरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा है. 'लैंसेट' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यदि भारत की जनन दर में मौजूदा दर से गिरावट जारी रहती है, तो अब से 80 साल बाद (सदी के अंत तक) देश की आबादी 1 अरब (100 करोड़) के आसपास ही बनी रह सकती है, जो कि वर्तमान में है. कई अन्य देशों की जनसंख्या अध्ययन में भी यह पाया गया कि तब तक जनन दर 2.0 से गिरकर 1.27 हो सकती है.
लेकिन, दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या डेटा शीट 2021 के अनुसार, 2024-28 के दौरान भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी और भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा. जाहिर है कि भारत को जन्म दर को कम करने और जनसंख्या वृद्धि से निजात पाने के लिए अभी और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
वहीं, वर्तमान सर्वेक्षण के अनुसार, जनन दर में गिरावट का कारण विभिन्न गर्भ निरोधकों का उपयोग है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की तुलना में इस बार के सर्वेक्षण में यह तथ्य उजागर हुआ है कि गर्भ निरोधकों का उपयोग करने वालों की संख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
जन्म दर में गिरावट की जिम्मेदारी महिलाओं पर
वर्तमान में, देश के औसत 67 प्रतिशत लोग गर्भ निरोधकों का उपयोग कर रहे हैं और संस्थागत स्तर पर जन्म दर 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गई है. दूसरा तथ्य यह है कि नसबंदी में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों की तुलना में अधिक है. यह वर्ष 2015-2016 में महिला नसबंदी 36 प्रतिशत थी, वर्ष 2019-21 में बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई है. महिला नसबंदी में वृद्धि यह बताती है कि अपने यहां जन्म दर में गिरावट की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही बनी हुई है.
यहां यह बताना भी आवश्यक है कि घटती जनन दर जनसंख्या को नियंत्रित करने का अकेला महत्वपूर्ण कारक नहीं है, क्योंकि जन्म के समय या कम उम्र में शिशु मृत्यु दर भी जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करती है.
बच्चों के आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण बच्चों का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाता है, जिसके कारण भारत में 36 प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र के अनुसार विकसित नहीं हो पाते हैं. यही वजह है कि देश में 67.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. यह महिलाओं में 57 प्रतिशत और पुरुषों में 25 प्रतिशत है.
देश के आर्थिक, सामाजिक ताने-बाने पर प्रभाव
घटती प्रजनन दर के साथ एक दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह उजागर हुआ है कि कुल जनसंख्या में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों का प्रतिशत तेजी से घट रहा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-1 (1992-93) के अनुसार, इस आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या 38 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 26.5 प्रतिशत हो गई है. इससे पता चलता है कि निकट भविष्य में भारत की जनसंख्या घटती दर में रहेगी, जिसका देश के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.
सरकारी परिवार नियोजन कार्यक्रम के अलावा, घटती प्रजनन दर का एक कारण छोटे परिवारों के प्रति लोगों की बढ़ती आस्था है. एक अच्छी बात यह है कि भारत में चीन की तरह 'एक बच्चे की नीति' लोगों पर नहीं थोपी गई है, इसके बावजूद अपने देश के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जन्म दर 1.1 से 1.9 रही है.
छोटे परिवारों के प्रति लोगों की बढ़ती आस्था के कारण सरकार के लिए जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना आसान हो जाएगा, क्योंकि लोग अपने दम पर एक बच्चा वाला सीमित परिवार रखना चाहते हैं.
दूसरी तरफ, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में 'मिशन परिवार विकास' जैसे कार्यक्रमों को बड़े पैमाने पर लागू करने और इन राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर को गंभीरता से बढ़ाने तथा उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने की भी तत्काल आवश्यकता है. इस दिशा में सरकार को गंभीर प्रयास इसलिए भी करने चाहिए कि इन तीन राज्यों में 40 से 45 प्रतिशत महिलाएं अभी भी निरक्षर हैं.



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जाता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
शिरीष खरे लेखक व पत्रकार
2002 में जनसंचार में स्नातक की डिग्री लेने के बाद पिछले अठारह वर्षों से ग्रामीण पत्रकारिता में सक्रिय. भारतीय प्रेस परिषद सहित पत्रकारिता से सबंधित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित. देश के सात राज्यों से एक हजार से ज्यादा स्टोरीज और सफरनामे. खोजी पत्रकारिता पर 'तहकीकात' और प्राथमिक शिक्षा पर 'उम्मीद की पाठशाला' पुस्तकें प्रकाशित.
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