अपनी ही महिला अफसरों से क्यों बच रही है फौज?

सेना में उन्होंने अपने जिदंगी के स्वर्णिम 20 से 25 साल समर्पित कर दिए. परिवार की जगह हमेशा सेना को प्राथमिकता दी.जो भी जिम्मेदारी मिली

Update: 2021-09-04 07:33 GMT

राजीव रंजन। सेना में उन्होंने अपने जिदंगी के स्वर्णिम 20 से 25 साल समर्पित कर दिए. परिवार की जगह हमेशा सेना को प्राथमिकता दी.जो भी जिम्मेदारी मिली, उसे पूरी ईमानदारी से निभाया लेकिन फिर भी उन्हें 2003 से अपना वाजिब हक पाने के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे है. हम बात कर रहे हैं सेना में महिला अधिकारियों की और खासतौर पर उन 72 महिलाओ की जिन्हें लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार देश की सर्वोच्च अदालत ने उनका हक दिलाया पर सेना यह बात मानने को तैयार नही है.

ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने सेना के मापदंड के अनुसार स्पेशल सलेक्शन बोर्ड फाइव में भी 60 फीसदी अंक हासिल कर दिखाए. बावजूद इसके, इन महिलाओं को सेना स्थायी कमीशन देने में आनाकानी कर रही है वह भी तब, जब इन महिलाओं की महज दो से 10 साल तक की नौकरी ही बची है। ऐसे में अब ये महिला अफसर पूछ रही है कि आखिर उनके साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों ? उम्र के इस पड़ाव में पहुंचकर उन्हें लग रहा है कि उनकी अपनी सेना ने उन्हें कभी अपनाया ही नहीं? बस, उन्हें संगठन में मजबूरी में रखा है और उनको पूरे अवसर नहीं दे रही है.
सेना में शामिल इन महिला अफसरों को शुरू से ही अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ी है । ये 21 से 23 साल की उम्र में सेना में शामिल हुई. ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई में कड़ी ट्रेनिंग के बाद सेना की वर्दी पहनी और कसम खाई कि देश सबसे पहले, उसके बाद देशवासी और सबसे आखिर में वे स्वयं. इन महिलाओं ने केवल कहने भर को कसम नहीं खाई बल्कि उसे निभाया भी. रेगिस्तान से लेकर कश्मीर में एलओसी तक ड्यूटी की, कॉम्बेट रोल को छोड़कर सेना के हर विभाग में पेशेवर तरीके से काम किया. लेकिन एक जैसे हालात और दायित्व निभाने के बाद भी उनकी तुलना में पुरुषों को ज्यादा नंबर मिले. इसकी वजह यह रही कि उस वक्त के अधिकारी यह सोच कर महिलाओं को कम नंबर देते थे कि पांच साल बाद तो महिलायें सेना से बाहर चली जाएगी और पुरुषों को अधिक नंबर इसलिए दिये जाते थे कि वो सेना में ही रहेंगे.
सेना में अपनी नौकरी के दौरान इन महिलाओं ने एक नहीं पांच-पांच इम्तिहान अव्वल नंबरों से पास किए। पहली पांच साल की नौकरी के बाद सलेक्शन बोर्ड फाइव में चयन की परीक्षा पास की, फिर दस साल की नौकरी के बाद यही परीक्षा पास की. इसके बाद स्थाई कमीशन के लिए स्पेशल सलेक्शन बोर्ड फाइव पास किया. इतना ही नहीं लेफ्टिनेंट से कैप्टन, कैप्टन से मेजर और मेजर से लेफ्टिनेंट कर्नल बनने के लिए भी इम्तिहान पास किए. इसके बावजूद इन महिलाओं को लेफ्टिनेंट कर्नल पद पर टाइम स्केल प्रमोशन दिया गया जबकि इनके साथ के पुरुष साथी को तीन साल पहले ही कर्नल रैंक मिल गया और अब वो अगले साल ब्रिगेडियर बनने की तैयारी में होंगे । महिलाओं को अपने साथ कोर्स करने वाले पुरुष साथियों को अब सैल्यूट ठोकना पड़ता है क्योंकि वो रैंक में उनके ऊपर है.
सेना में वैसे तो अभी 1500 के करीब महिला अफसर है. पुरुष अफसरों की तादाद 48,000 के आसपास है. पुरुष अधिकारियों की तुलना में यह संख्या करीब तीन फीसदी ही है. आने वाले दिनों में उम्मीद भी नहीं है कि महिलाओं की संख्या बढ़ेगी. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सेना में इस साल पुरुष अफसरों की वैकेंसी 1600 से 1700 के करीब है जबकि महिलाओं की वैकेंसी मात्र 70 से 100 तक की है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल सेना में 1500 अफसर भर्ती होते है । इनमें महिलाओं की तादाद 80 से 100 के करीब ही होती है. वैसे सेना में ज्यादातर हर बैच से पुरुषों को स्थाई कमीशन 90 से 100 फिसदी तक मिलता है जबकि महिलाओं के मामले में यह शून्य से लेकर 35 फिसदी तक ही दिया गया है. इतना ही नहीं सेना मे महिलाओं की भर्ती केवल ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी के जरिये ही होती है जबकि पुरुषों को एनडीए, ओटीए और आईएमए के जरिये भी एंट्री मिलती है. कहने का मतलब यह है कि सेना में महिलाएं केवल एक जगह से और पुरुष तीन संस्थानों से अफसर बनकर निकलते हैं.
शुरू में, महिलाओं को अस्थायी कमीशन ही मिलता है बाद में जाकर कुछ खुश किस्मत महिलाओं को स्थाई कमीशन मिल पाता है. स्थाई कमीशन के लिये सेना में महिलाओं ने काफी लंबी लड़ाई लड़ी है. 2010 में जाकर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि महिलाओं को भी सेना में स्थायी कमीशन मिले । वायुसेना और नौसेना तो हाई कोर्ट के फैसले को मान गई पर थल सेना यह मानने को तैयार नहीं हुई. वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई. थल सेना की अपनी महिला अफसरों को स्थाई कमीशन न दिये जाने के पीछे की दलील भी सुनने लायक है । पहला तर्क दिया कि सेना में जवान गांवों या छोटी जगहों से आते है और वे अपने महिला अफसर से कमांड नहीं लेंगे यानी कि महिलाओं की बात नहीं सुनेंगे । महिलाओं को पारिवारिक जिम्मेदारी निभानी पड़ती है इसलिए वह सेना की जिम्मेदारी सही तरीके नहीं निभा पाएगी. सेना के अधिकारियों ने मीडिया से कहा कि महिलाओं के आने से सेना में सेक्सुअल मोलेस्टेशन के मामले बढ़ जाएंगे. यहां भी कहा कि सेना में महिलाओं के कपड़े बदलने पर जवान ताका झांकी करेंगे.
सेना का अपनी महिला अफसरों को लेकर नजरिया जो भी हो, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई महिला अफसरों की उपलब्धियों का उदाहरण दिया है. हालांकि, कोर्ट ने 26 महिलाओं का जिक्र किया पर सेना ने इनमें से भी केवल आठ को ही स्थायी कमीशन दिया है. अगर एक नजर इन महिलाओं की योग्यताओं और उनके योगदान पर डाले तो पता चलता है कि इन महिलाओं ने खुद को हर कसौटी पर खरा साबित किया है. बात लेफ्टिनेंट कर्नल सरस हाडा की करे तो वे माइक्रोबायोलाजी और अंग्रेजी में डबल मास्टर है. ईजराइल से यूएवी लॉजस्टिक कोर्स किया हुआ है. सेना में फ्रेंच भाषा की इंस्ट्रक्टर रह चुकी है. सेना के ऑपरेशन विजय और ऑपरेशन पराक्रम का हिस्सा रह चुकी है. पांच फील्ड पोस्टिंग काट चुकी है. ऐसे ही लेफ्टिनेंट कर्नल अंजली बिष्ट ने स्की में सेना का प्रतिनिधित्व करते हुए राष्ट्रीय खेलों में भाग लिया. इनको उत्तरी कमांड के आर्मी कमांडर की ओर से कमेंडेशन और 15 अगस्त 2021 को वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ की ओर से कमेंडेशन कार्ड से सम्मानित किया गया. मेजर पल्लवी शर्मा ने न केवल सेना के ऑपरेशन में अपनी बेहतर काबिलियत दिखाई बल्कि सेना की ओर से शूटिंग की राष्ट्रीय़ और अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में हिस्सा लिया. विदेशों में भी भारत की नुमांइदगी की । तीन गोल्ड और दो सिल्वर मैडल जीते हैं. इंजीनयरिंग रेजिमेंट की लेफ्टिनेंट कर्नल अनुपमा अग्रवाल अफसर ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई में इंस्ट्रक्टर रह चुकी है. लेफ्टिनेंट कर्नल मिनाक्षी कपूर को 26 जनवरी को अपने कार्यकाल में दो बार आर्मी कमांडर के कमेंडेशन से सम्मानित किया गया. ऐसे ही लगभग हर महिला अफसरो ने अपने क्षेत्र में शानदार उपलब्धियां हासिल की है.
सेना में कार्यरत महिलाओं का कहना है कि वे तो पुरुषों की तुलना में डबल ड्यूटी निभाती है. वर्दी की जिम्मेदारी तो निभाती ही है, परिवार भी संभालती है और बच्चे भी पालती है. जब कश्मीर या उत्तर पूर्वी राज्यों में फील्ड ड्यूटी करनी पड़ती है तो अपने बच्चे को परिजनों के पास छोड़कर अपनी जिम्मेदारी निभाती है. सेना की नौकरी 24*7 की होती है. रात हो या दिन जब भी आदेश आता है उसी वक्त काम करना पड़ता है. कई महिलाओं ने तो सेना का फर्ज निभाने में कोई कोताही ना हो इसके लिए शादी तक नहीं की? कई महिलाओं की तो शादी सेना की कठिन नौकरी की वजह से टूट गई. अपनी जिंदगी न्योछावर कर देने के बाद भी जब इन महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के लायक नहीं समझा जाता है तो महिलाओं की नाराजगी समझी जा सकती है. हालांकि, तमाम विरोध या रुकावटों के बाद भी इनके हौसले टूटे नहीं है बल्कि चट्टान की तरह बुलंद है. उन्होंने अभी तक हार नहीं मानी है. जब सेना ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद स्थाई कमीशन नहीं दिया तो उन्होंने सेना को कानूनी नोटिस भेजा है. इन महिला अफसरों का केस लड़ रहे मेजर सुधांशु शेखर पांडेय ने कहा कि सेना को इन महिलाओं को स्थायी कमीशन ना देना ना केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है बल्कि सेना के नीति के भी खिलाफ है. अगर इन महिला अफसरों को नेगेटिव या वीक रिमार्क्स मिला भी है तो उसके आधार पर परमानेंट कमीशन देने से मना नहीं किया जा सकता. सेना की ओर से ऐसी कोशिश की गई तो हम सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिये मुकद्दमे करने के लिये बाध्य होंगे. जाहिर है इसके बावजूद अगर सेना उन्हें उनके वाज़िब अधिकार नही देती है तो फिर इन महिला अफसरों को फिर से उच्चतम न्यायालय में जाकर अपनी पीड़ा बतानी होगी...बहरहाल अभी सेना के जवाब का इतंज़ार है.


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