आखिर छुपते-छिपाते क्यों?
क्वाड्रैंगुलर सिक्युरिटी डायलॉग (क्वैड) की आमने-सामने पहली शिखर बैठक के समय भी वह परदादारी जारी रही
यह सबको मालूम है कि चार देशों का ये गुट चीन को घेरने के मकसद से बना है। इसमें शामिल चारों देश वो हैं, जिनके चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हैं। गुट के नाम में ही सिक्युरिटी शब्द शामिल है। तो इस समूह के नेता ने अपना यही मकसद खुल कर क्यों नहीं बताते हैं?
क्वाड्रैंगुलर सिक्युरिटी डायलॉग (क्वैड) की आमने-सामने पहली शिखर बैठक के समय भी वह परदादारी जारी रही, जिसका कोई तर्क समझ में नहीं आता। यह सबको मालूम है कि चार देशों का ये गुट चीन को घेरने के मकसद से बना है। इसमें शामिल चारों देश वो हैं, जिनके चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हैं। गुट के नाम में ही सिक्युरिटी शब्द शामिल है। जाहिर है, यह एक तरह की रक्षा वार्ता है। इसीलिए यह रहस्यमय है कि मार्च में जब इस समूह की पहली वर्चुअल शिखर बैठक हुई और अब जबकि इसकी पहली आमने-सामने शिखर बैठक हुई है, तब भी इस समूह के नेताओं ने अपना यही मकसद खुल कर क्यों नहीं बताया? ऐसा तो नहीं है कि अगर उन्होंने सार्वजनिक रूप से दिए बयान में कोरोना महामारी और जलवायु परिवर्तन से संघर्ष को अपना सर्वोच्च मुद्दा बताया, तो चीन ने उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया है। चीन की प्रतिक्रिया वैसी ही है, जैसा उसे लक्ष्य करके स्थापित किए गए सिक्युरिटी डायलॉग पर होनी थी। कहने का मतलब यह कि क्वैड के ठोस रूप लेने से जो तनाव बढ़ना है, वह बढ़ ही रहा है। ऐसे में उसके मकसद पर परदादारी करना अजीब सा लगता है।
प्रश्न यह है कि अगर इस गुट का मकसद इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रक्षा गोलबंदी मजबूत करने से कुछ इतर है, तो फिर आखिर इन चार देशों को जोड़ने वाला पक्ष क्या है? बहरहाल, परदादारी की वजह यह मालूम पड़ती है कि अमेरिका, जैसाकि एक अंग्रेजी कहावत है, केक खाना चाहता है, और उसको बचा कर रखना भी चाहता है। क्या यह हैरतअंगेज नहीं है कि क्वैड शिखर बैठक के दिन ही उसने चीन के साथ हुवावे कंपनी की मुख्य वित्तीय अधिकारी मेंग वानझाऊ को रिहाई के लिए चीन से समझौता कर लिया? अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में बढ़े तनाव की एक प्रमुख वजह अमेरिका की प्रत्यर्पण अर्जी पर मेंग को तीन साल से कनाडा में नजरबंद रखना थी। इसी तरह क्वैड शिखर बैठक से ठीक पहले उसने ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक त्रिगुट बनाने का करार कर लिया, जिसका लक्ष्य भी चीन ही है। जाहिर है, चीन के प्रति अमेरिका की नीति में स्थिरता और साफ समझ का अभाव है। ऐसे में जो देश उससे क्वैड जैसे समूह में जुड़ रहे हैं, वे अपने लिए एक जोखिम ही मोल ले रहे हैं।
क्रेडिट बाय नया इंडिया