कहां खो गए उत्तर, भारत के शहर?

क्या उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के शहर रहने योग्य नहीं रहे?

Update: 2021-03-06 15:11 GMT

क्या उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के शहर रहने योग्य नहीं रहे? यह सवाल तीनों राज्यों की जनता और प्रशासन के सामने मुंह बाए खड़ा हो चुका है। केन्द्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा ईज आफ लिविंग इंडेक्स रेकिंग 2020 के लिए जिन शहरों की सूची जारी की गई है उसमें पंजाब का कोई शहर नहीं है। दुख इस बात का है कि इस बार चंडीगढ़ टॉप-10 से बाहर हो गया है। 2018 में रहने योग्य शहरों के लिए जो 111 शहरों की सूची जारी हुई थी, उसमें चंडीगढ़ दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की सूची पर पांचवें पायदान पर था। इस बार चंडीगढ़ 54.40 अंकों के साथ 20वें पायदान पर है। केन्द्र सरकार ने दस लाख से ज्यादा आबादी वाले क्षेत्रों के ​लिए अलग और दस लाख से कम आबादी वाले शहरों के ​लिए अलग से अंक और स्थान तय किए हैं। शहरवासियों में फीडबैक ज्यादा अच्छा न होने के कारण चंडीगढ़ की रैकिंग नीचे चली गईं जबकि चंडीगढ़ को सिटी ब्यूटीफुल का दर्जा प्राप्त है। लुधियाना शहर 14वें स्थान पर रहा है।


दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में टॉप-दस में पंजाब के साथ हरियाणा का भी कोई शहर नहीं, जबकि दस लाख से कम आबादी वाले शहरों में शिमला शीर्ष पर रहा और हरियाणा का गुरुग्राम 8वें पायदान पर रहा है। दोनों ने ही उत्तर भारत में टॉप-10 में शामिल हैं। जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है उसका भी कोई शहर किसी सूची में नहीं। दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की शीर्ष 50 की रैकिंग में लखनऊ 26वें, वाराणसी 27वें, कानपुर 28वें, गाजियाबाद 30वें, प्रयागराज 32वें, आगर 35वें, मेरठ 36वें और बरेली 47वें पायदान पर रहे हैं। दस लाख से कम आबादी वाले शहरों में झांसी 34वें, मुरादाबाद 38वें, रायबरेली 40वें, सहारनपुर 44वें, अलीगढ़ 58वें और रामपुर 59वें नम्बर पर रहे हैं।

सर्वे के दौरान सभी शहरों में मंत्रालय द्वारा यह चैक किया गया कि शहरों में रहने के लिए साधन और सुविधाएं कैसी हैं। इसके साथ ही शहर में विकास के कामों में और परियोजनाओं को भी देखा गया। इस बात की पड़ताल भी की गई कि विकास कार्यों का इन शहरों की जनता के जीवन पर कितना असर पड़ा है। ईज आफ लिविंग इंडेक्स में मुख्य तौर पर तीन आधार देखे गए। पहले रहने की गुणवत्ता, दूसरा लोगों की आर्थिक योग्यता और तीसरा विकास की गति। इसके साथ-साथ करीब 50 बिन्दुओं को स्टडी किया गया। सर्वे के लिए शहरों के लिए गवर्नेंस, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, आर्थिक, हालत, रोजगार, कूड़ा प्रबंधन, सीवर प्रबंधन, पर्यावरण प्रदूषण का स्तर, आवासीय सुविधाएं, भूमि का उपयोग, बिजली आपूर्ति, परिवहन, पेयजल की आपूर्ति और नागरिकों के लिए पार्क स्थलों को भी देखा गया।

सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि उत्तर भारत के शहरों को क्या हो गया है? उत्तर भारत के शहर जीवन सुगमता के मामले में एक-दूसरे के आसपास हैं। यह कहा जा रहा है कि उत्तर भारत के शहरों पर आबादी का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। बड़ी आबादी के चलते बुनियादी ढांचा चरमराने लगता है। उत्तर भारत के शहरों में विकास बेतरतीब ढंग से हुआ है। फ्लाईओवरों का निर्माण तो कर दिया गया लेकिन यह फ्लाईआेवर भी संकरी गलियों में रहने वालों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। अनियोजित ​विकास का खामियाजा अब यह शहर भुगत रहे हैं। लुधियाना जैसे शहर के बाजारों को देख लीजिए। बाजारों की भीड़ में से निकलने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। लेकिन जीवन की सुगमता के मामले में बेंगलुरु टाॅप पर रहा है। इसके अलावा चेन्नई, सूरत, नबी मुम्बई, कोयम्बटूर, बड़ोदरा, इंदौर, ग्रेटर मुम्बई, पुणे, अहमदाबाद टॉप-10 में आए हैं। इनकी आबादी भी कोई कम नहीं है। दरअसल शहरी नियोजन को लेकर उत्तर भारत को इन शहरों से सीखने की जरूरत है। सभी नागरिकों के जीवन को आसान बनाने के ​लिए सुधारों की बहुत जरूरत है। शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार, जल आपूर्ति प्रणालियों को कुशल बनाना और स्वास्थ्य सेवा को अधिक प्रभावी बनाना कुछ ऐसे तौर-तरीके हैं, जिनके जरिये एक औसत भारतीय के जीवन में क्रांतिवादी परिवर्तन हो सकते हैं।

यह भी देखना होगा कि स्थानीय निकायों की आर्थिक स्थिति क्या है। कमजोर आर्थिक क्षमता के चलते निकाय कुछ नहीं कर पाते। शहरों में लोगों को पर्याप्त रोजगार मिले और धन संसाधन जुटाना भी स्थानीय निकायों का दायित्व है। शहरों के लिए नई परियोजनाएं तभी शुरू होंगी जब नगर निकायों के पास राजस्व आएगा। राजस्व संग्रहण में लेट लतीफी और निकाय स्तर पर भ्रष्टाचार के चलते लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। आज लोग कारोबारी सुगमता चाहते हैं, अनावश्यक बाधाओं से जीवन दुश्वार हो जाता है। जरूरी है कि इस इंडेक्स के माध्यम से नगरपालिकाओं को बेहतर नियोजन और प्रबंधन किया जा सकता है। स्थानीय निकायों और जनप्रतिनिधियों को नागरिकों की सोच में शामिल कर शहरी जीवन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण बनाने की जरूरत है। आज नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और कुशल प्रबंधन की जरूरत है। यह भी जरूरी है कि नियोजित विकास इस ढंग से किया जाए कि वह बढ़ने वाली आबादी के दृष्टिगत लम्बे अर्से तक उसका इस्तेमाल कर सकें। दूरगामी सोच नहीं अपनाई गई तो सड़कें संकरी, गलियां बनते जाएंगे और बुनियादी ढांचा क्षत-विक्षत हो जाएगा।


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