जिस तरह राजनीति में कई तरीकों से, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक संबंधों का स्वादिष्ट, बढिय़ा अचार डाला जाता है, उसी प्रकार स्वाद की दुनिया में भी अनेक तरह के अचारों का बहुत महत्त्व है। ग्राहक बाज़ार की रौनक बनने, नए-नए अचार डाले जाते हैं और नए-नए आकर्षक, स्वादिष्ट तरीकों से बेचे जाते हैं। दर्जनों कम्पनियां पता नहीं किस किस चीज़ का सिर्फ अचार ही बेचती हैं। नए अचार के ईमानदार व शोरदार विज्ञापन में अचार को सलीके से होममेड बताया जाता है यानी घर में बनाया या घर का बना। वैसे हमें इसका अर्थ किसी भी बिल्डिंग में बनाया लेना चाहिए क्यूंकि ऐसा विज्ञापन में ही इंगित कर दिया जाता है। अचार और व्यवहार में से आम तौर पर चटपटे अचार को ज़्यादा पसंद किया जाता है और व्यवहार को किनारे रख दिया जाता है। वह बात अलग है कि अच्छे व्यवहार का प्रभाव उगाने वाला विज्ञापन सफल हो जाए तो अचार खरीददारों की लाइन लग जाती है। विज्ञापन का ज़माना है, नया और लुभावना रचने का समय है, इसलिए विज्ञापन में दर्शाए गए चित्र सिर्फ रचनात्मक प्रस्तुति के लिए बनाए होते हैं। होममेड शब्द लिखना केवल एक ट्रेड मार्क चिन्ह है और अचार की वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। पिछले कुछ समय से तो परिस्थितियां भी ऐसी चल रही थी कि होम निवासियों का अचार और व्यवहार, अप्रत्याशित और अस्वादिष्ट बना हुआ था। विज्ञापन पकाने वालों की तारीफ़ होनी चाहिए। वे मानते हैं कि विज्ञापन शब्दों, चित्रों और कल्पना का खेल है। यह बात चुनाव से सम्बद्ध है कि खेलने का मैदान समाज, धर्म या राजनीति में से क्या हो या सभी मैदानों में एक साथ, एक ही खेल खेला जाए। हमारे यहां तो हर चीज़ ट्रेड मार्क हो चली है और हर काम ट्रेड यानी व्यापार।
यहां तो व्यवहार भी ट्रेडमार्क है ठीक होममेड शब्द की तरह। व्यवहार तो किसी भी व्यक्ति या महाव्यक्ति की वास्तविक प्रकृति, प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व नहीं करता । इधर नए होममेड अचार का विज्ञापन आता रहता है और संहिता का ताज़ा अचार जगह जगह डाला जाता रहता है। इस व्यावहारिक अनुशासन के लिए हमें करवट बदलती व्यवस्था का शुक्रगुजार होना चाहिए। संहिता के अचार को नई नई विधियों से डालकर ज्यादा स्वादिष्ट और बिकाऊ बनाने के पूरे प्रयास हमेशा किए जाते रहे हैं। अचार की पुरानी संहिता में नए होममेड मसाले डाले जाते रहे हैं। हर स्वाद का स्तर उठाए रखने के लिए धार्मिक, क्षेत्रीय, जातीय व साम्प्रदायिक आंच पर खूब पकाया जाता है। सामाजिकता, नैतिकता व इंसानियत के होममेड गुण विशेष घरों की ऐतिहासिक एवं पारम्परिक रसोई में पकाकर लाए जाते हैं। हमने समय को पूरा बदल दिया है, अब तो कहीं भी ‘नेचुरल’ शब्द पढ़ाकर प्रकृति की याद दिलाई जाने लगती है। इस शब्द द्वारा ज़ोर शोर से कुदरत का प्रतिनिधित्व कराया जाता है। हर चीज़, विचार, व्यवहार और कर्मों का ‘होममेड’ अचार डालकर उसे सबसे बढिय़ा, स्वादिष्ट और टिकाऊ बताकर बाज़ार में उतारने का ज़माना है। इन उत्पादों को बेचने के लिए हर कोई तैयार बैठा है, लेकिन गुणवत्ता संबंधित शिकायत करना वर्जित है। हां, सप्लाई एवं सर्विस से संबंधित कोई भी शिकायत करनी हो तो संपर्क केन्द्रों की भरमार है। सीधी बात यही है कि अब होममेड सिर्फ ट्रेड मार्क है।
प्रभात कुमार
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal