स्वाधीनता के अमृत काल में प्रस्तुत नए भारत को गढऩे का क्या है संकल्प
सामान्य तौर पर बजट के मौसम में अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं कि
डा. अश्विनी महाजन। सामान्य तौर पर बजट के मौसम में अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं कि सरकार लोगों, खासतौर पर मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए करों में राहत देगी। कारपोरेट सेक्टर की लाबिंग रहती है कि उन पर टैक्स घटाने की बात होगी। विदेशी निवेशकों को लगता है कि वित्त मंत्री के पिटारे में से उनके लिए भी कुछ कर राहतें निकलेंगी। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट 2022-23 में ऐसा कुछ नहीं रहा। बल्कि कहा जा सकता है कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो यह बजट आगामी 25 वर्षों के विकास का खाका प्रस्तुत करता हुआ दिखाई दे रहा है.
पिछले दो-तीन दशकों से बजट में यह देखा जा रहा है कि सरकार पूंजीगत खर्च की ओर से स्वयं को धीरे धीरे विमुख करती जा रही है। ऐसा लगता था कि शायद पूंजीगत निवेश का सारा दारोमदार निजी क्षेत्र पर आ गया है। उस पर भी तुर्रा यह कि विदेशी निवेश हर कमी की भरपाई कर सकता है, चाहे वह प्रौद्योगिकी विकास हो, रोजगार हो, निवेश हो अथवा निर्यात। लेकिन पिछले लगभग एक दशक से तमाम प्रयासों के बावजूद देश में पूंजी निवेश बढ़ नहीं पा रहा, चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो अथवा निजी क्षेत्र।
सरकार के सोच में बदलाव हुआ और सरकार ने संरचनागत ढांचा समेत कई क्षेत्रों में पूंजी निवेश करना शुरू किया। पिछले दो वर्षों से कोरोना की मार सह रही अर्थव्यवस्था में एक नई जान फूंकने के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के निवेश को बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही थी, लेकिन कोरोना के कारण राजस्व भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा था जिस कारण सरकार जो पहले से ही गरीबों की बेहतरी की व्यवस्था करने और कोरोना के राहत पैकेज पर खर्च बढ़ा चुकी थी, उसके लिए निवेश के लिए धन जुटाना संभव नहीं हो पा रहा था। परंतु वर्तमान वित्त वर्ष में 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर के चलते जीएसटी प्राप्तियों में भी अच्छी वृद्धि हुई और प्रत्यक्ष करों के राजस्व में भी। इसका पूरा फायदा उठाते हुए चालू वित्त वर्ष में भी पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है और आगामी वर्ष में भी साढ़े सात लाख हजार करोड़ रुपये खर्च का प्रविधान किया गया है, जो वर्तमान बजट का 19 प्रतिशत है। पिछले तीन दशकों में शायद यह खर्च सर्वाधिक है।
इस स्थिति में वित्त मंत्री ने लोकलुभावन नीतियों से परहेज करते हुए 'प्रधानमंत्री गति शक्ति परियोजनाÓ को तेजी प्रदान करने का प्रयास किया है। इसमें विविध प्रकार के इन्फ्रास्ट्रक्चर के समन्वित विकास का लक्ष्य है, ताकि देश में लाजिस्टिक लागत को कम करते हुए देश की कार्यदक्षता में वृद्धि की जा सके। इसके लिए विभिन्न प्रकार के खर्चों का प्रविधान तो किया ही है, साथ ही लघु उद्योगों, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर, पेयजल के लिए व्यवस्था एवं गरीबों के लिए आवास समेत विविध प्रकार के खर्चों का प्रविधान किया है। यह सभी भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। कहा जा सकता है कि यह बजट लोकलुभावन नहीं, बल्कि आगामी 25 वर्षों के विकास पर केंद्रित है।
उद्योगों का संरक्षण : भूमंडलीकरण के दौर में संरक्षण एक प्रकार से प्रतिबंधित शब्द हो गया था। भूमंडलीकरण के प्रति मोह के चलते इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया कि 2001 के बाद चीन से आयातों के बढऩे से देश का विनिर्माण क्षेत्र लगभग तबाह हो गया। चीन द्वारा अपनाए गए हथकंडों के चलते हमारा एपीआइ यानी दवाओं के लिए कच्चा माल बनाने वाला उद्योग नष्ट हुआ, इलेक्ट्रानिक उद्योग तो अपने शैशव काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया, रासायनिक उद्योग पर भी बुरा प्रभाव पड़ा और लघु उद्योगों की जो दुर्गति हुई उसे सब जानते ही हैं। डब्ल्यूटीओ यानी विश्व व्यापार संगठन में हमें औसतन 40 प्रतिशत टैरिफ लगाने का अधिकार था, लेकिन हम औसतन मात्र 10 प्रतिशत का ही टैरिफ लगा रहे थे। नतीजा हम सबने देखा। कोरोना से पूर्व ही मोदी सरकार के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2018 में प्रस्तुत अपने बजट में भारत के इलेक्ट्रानिक और टेलीकाम उद्योग को संरक्षण देते हुए टैरिफ को 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत करने की घोषणा की थी। उसके बाद संरक्षण का यह क्रम निरंतर बढ़ता रहा। कोरोना काल के दौरान सरकार ने अपनी ही पूर्व की 'मेक इन इंडियाÓ नीति में बदलाव करते हुए, आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को रेखांकित किया। जिन क्षेत्रों में आयातों के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है उनमें से 13 क्षेत्रों को चिन्हित करते हुए उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन यानी पीएलआइ योजना शुरू की गई। सेमीकंडक्टर को देश में ही बनाने के लिए पिछले माह 10 अरब डालर के सहयोग की घोषणा भी हुई। यह सब देश के उद्योगों के संरक्षण के लिए किया गया।
वर्तमान बजट में भी उस नीति को जारी रखते हुए सरकार ने विविध क्षेत्रों एवं उत्पादों के हिसाब से टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की है और कई क्षेत्रों में जहां पूर्व में देश में उत्पादन बढ़ाने के लिए मध्यवर्ती वस्तुओं के टैरिफ घटाए गए थे, उस छूट को भी वापस लिया है। देश में सौर ऊर्जा के उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 19,500 करोड़ रुपये की विशेष घोषणा भी बजट में हुई है।
कृषि विकास : हरित क्रांति के समय से जिस प्रकार से देश में रासायनिक खेती को बढ़ावा दिया गया, उससे कृषि उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन साथ ही किसानों का कृषि पर खर्च भी बढ़ा और हमारे खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों समेत अनचाहे रसायन भी आ गए। पिछले कुछ समय से सरकार का जोर रसायनमुक्त खेती की ओर है। रसायनमुक्त खेती के लक्ष्य को क्रमश: आगे बढ़ाते हुए इस बजट में प्राकृतिक खेती, जीरो बजट खेती और जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन का प्रविधान किया गया है। देश में खाद्यान्नों का उत्पादन जरूरत से ज्यादा है और तिलहनों का कम, जिस कारण देश की निर्भरता विदेशी खाद्य तेलों पर ज्यादा है। इसको दुरुस्त करने के लिए भी बजट में प्रविधान किया गया है।
राज्यों को मदद : कोरोना की मार झेल रहे राज्य सरकारों के खजाने को मदद देने की जरूरत महसूस की जा रही थी। पिछले साल के बजट में इस मद में 10 हजार करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया था, जिसे संशोधित अनुमानों में बढ़ाकर 15 हजार करोड़ रुपये किया गया और अगले वर्ष के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रविधान बजट में किया गया है, जिसे राज्य कुछ विशेष खर्चों के लिए इस्तेमाल कर पाएंगे।
अगले 40 दिनों में होने जा रहे पांच राज्यों के चुनावों के बावजूद, लोकलुभावन नीतियों से परहेज करते हुए, विशुद्ध रूप से आर्थिक विकास को गति देने और नीतिगत विसंगतियों को दूर करने के तमाम प्रयास इस बजट में देखे जा सकते हैं।
( लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं )