नई शर्तों का क्या तर्क?
अब इस समझौते को पुनर्जीवित करने के बदले ईरान आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहा है
अब इस समझौते को पुनर्जीवित करने के बदले ईरान आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहा है। इस मांग को नाजायज नहीं कहा जा सकता। आखिर समझौते से अमेरिका हटा था। तो पहल उसे ही करनी चाहिए। पश्चिम का दावा है कि समझौते पर सहमति बनाने के लिए कुछ ही हफ्तों का समय बचा है।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम के भविष्य पर चल रही अंतरराष्ट्रीय वार्ता क्रिसमस की छुट्टियों के दौरान ही दोबारा शुरू हुई है। छुट्टियों के समय वार्ताकार फिर इकट्ठे हुए, इसे इस मसले को लेकर बढ़ती चिंता का संकेत बताया गया है। गतिरोध के कारण वार्ता आगे नहीं बढ़ रही थी। अब बताया गया है कि रूस और चीन की मध्यस्थता से फिर बातचीत की जमीन बनी है। 2015 के परमाणु समझौते पर का लक्ष्य ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए मनाना था। लेकिन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 2017 में अचानक अपने देश को इस समझौते से हटा लिया। तब ईरान पर सख्त प्रतिबंध फिर से थोप दिए गए। अब इस समझौते को पुनर्जीवित करने के बदले ईरान आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहा है। इस मांग को नाजायज नहीं कहा जा सकता। आखिर समझौते से अमेरिका हटा था। तो पहल उसे ही करनी चाहिए। उधर पश्चिमी देशों के वार्ताकारों का दावा है कि समझौते पर सहमति बनाने के लिए कुछ ही हफ्तों का समय बचा है। अमेरिका के समझौते से हटने के बाद ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम फिर से चालू कर दिया था। अब पश्चिमी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ईरान ने परमाणु तकनीक की विशेषज्ञता हासिल कर ली, तो फिर इस समझौते की कोई प्रासंगिकता नहीं रहेगी।
तो सवाल है कि अमेरिका प्रतिबंध हटा कर बातचीत की गति को तेज करने में अपनी तरफ से योगदान क्यों नहीं देता? उलटे खबर है कि अगर वियना में चल रही बातचीत सफल नहीं रही, तो अमेरिका ईरान पर और आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। गौरतलब है कि सालों तक चले तनाव के बाद जुलाई 2015 में ईरान और वैश्विक शक्तियों के बीच एक समझौता हुआ था। इस 'जॉइंट कंप्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन' (जेसीपीओए) के तहत ईरान के परमाणु संवर्धन प्रोग्राम पर विस्तृत पाबंदियां लगाई गई थी। ईरान ने माना कि वह उच्चस्तरीय यूरेनियम या प्लूटोनियम का उत्पादन नहीं करेगा। 2021 में जो बाइडेन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने और उन्होंने कहा था कि अगर ईरान समझौते की शर्तों पर वापस लौट आए, तो अमेरिका भी फिर से डील में शामिल हो जाएगा। हालांकि बाइडेन का यह भी कहना था कि वह एक विस्तृत विमर्श चाहते हैं, जिसमें ईरान के मिसाइल कार्यक्रम जैसी बाकी गतिविधियां भी शामिल हों। जाहिर है, यह नई शर्त है। आखिर इसका क्या तर्क है?
नया इण्डिया