पेट्रोल-डीजल की जगह बिजली के इस्तेमाल का कितना असर, इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल का स्वच्छ ऊर्जा खपत बढ़ाने पर बहुत कम असर होगा
इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में होने वाली वृद्धि और इंटरनल कम्बशन इंजनों के जाने को लेकर बहुत उत्साह है
इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में होने वाली वृद्धि और इंटरनल कम्बशन इंजनों के जाने को लेकर बहुत उत्साह है। इससे निश्चिततौर पर स्थानीय वायु प्रदूषण और तेल का आयात कम होगा, हालांकि शायद इसका स्वच्छ ऊर्जा खपत पर बहुत कम असर पड़े। ऐसा इसलिए क्योंकि कई शहरी गरीब दोपहिया वाहन इस्तेमाल नहीं करते और ज्यादातर ग्रामीण भारत अब भी बायोमास (लकड़ी आदि) इस्तेमाल करता है।
संवहनीय विकास लक्ष्य (एसडीजी)- 7 का पूरा अर्थ 'सभी के लिए सस्ती, भरोसेमंद, संवहनीय और आधुनिक ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।' भारत की ऊर्जा खपत में मुख्यत: कोयला (45%), तेल व गैस (26%), और पारंपरिक बायोमास (12%) शामिल हैं। पिछले लेख में हमने कोयले की जगह अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल के संदर्भ में चर्चा की थी कि 'स्वच्छ' ऊर्जा 'सस्ती' नहीं है।
अब तेल (डीजल, पेट्रोल आदि) और गैस की बात करें तो इसका बड़ा हिस्सा यातायात (सड़क एवं रेल) में इस्तेमाल होता है। उम्मीद है कि डीजल और पेट्रोल की जगह बिजली के उपयोग से इसका इस्तेमाल कम होगा। इससे शहरों की हवा की गुणवत्ता सुधरेगी, हालांकि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के पास वाले इलाकों में प्रदूषण जारी रहेगा।
इलेक्ट्रिक वाहनों को सरप्लस बिजली के समय में चार्ज किया जा सकता है। इससे अक्षय ऊर्जा के एकीकरण में मदद मिलेगी, जैसा कि पिछले लेखों में चर्चा हुई है। साथ ही ऊर्जा का बिजली के तारों से परिवहन, टैंकर की तुलना में ज्यादा प्रभावी व स्वच्छ है। हालांकि ये लाभ तभी मिलेंगे जब ईवी की संख्या पर्याप्त बढ़े। इसमें कम से कम एक दशक का समय लगेगा।
ईवी सस्ती ऊर्जा का लक्ष्य पाने में कितना योगदान देंगे? अनुमान है कि शहरी गरीबों की आबादी में एक तिहाई हिस्सेदारी है। वे पैदल या साइकिल से काम पर जाते हैं, जिससे उनके काम की संभावनाएं उन जगहों तक सीमित हो जाती हैं, जहां रहने का खर्च वे उठा सकते हैं। दोपहिया वाहनों की वृद्धि के पीछे सार्वजनिक परिवहन की असफलता ज्यादा है।
मेट्रोरेल ने कई शहरों में बिजली से चलने वाले विकल्प जोड़े हैं। हालांकि जनसंख्या के बड़े हिस्से के लिए मेट्रोरेल का खर्च वहन करना अब भी चिंता का विषय है। जब तक आय के स्तर नहीं बढ़ते, सब्सिडी वाला परिवहन जारी रहेगा। इस संदर्भ में इलेक्ट्रिक दोपहिया में उछाल का सीमित असर होगा। बसों को सार्वजनिक परिवहन का सबसे लचीला और सस्ता साधन माना जाता है। भारत सरकार शहरी प्रशासनों को इलेक्ट्रिक बसें खरीदेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इन्हें जरूरतमंद लोगों के लिए सस्ती सेवा बनाने के लिए और अधिक सब्सिडी की जरूरत होगी।
पारंपरिक बायोमास प्राथमिक ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है। यह बड़े पैमाने पर घरेलू उद्देश्यों के में इस्तेमाल किया जाता है (जैसा कि तेल का एक बड़ा हिस्सा)। भारत में प्रति व्यक्ति तेल की खपत चीन, ब्राजील और रूस के आधे से भी कम है, और जापान, दक्षिण कोरिया व अमेरिका का एक अंश है। आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच के लक्ष्य की दिशा में प्रगति के लिए इन पैमानों को काफी बढ़ाने की जरूरत है।
घरों को बायोमास की जगह एलपीजी इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना अभी जारी है। इससे स्थानीय हवा की गुणवत्ता सुधरेगी और महिलाओं के स्वास्थ्य पर अच्छा असर होगा। सार्वजनिक परिवहन का विद्युतीकरण और भोजन पकाने में स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल से एसडीजी 3 (अच्छा स्वास्थ्य और सेहत) तथा एसडीजी 5 (लैंगिक समानता) में भी योगदान होगा।
मनीष अग्रवाल का कॉलम