West Bengal Chunav 2021: लेफ्ट-कांग्रेस-ISF का साथ, BJP-TMC से रार, जानें चुनावी घमासान में क्या पड़ेगा प्रभाव?
बंगाल में त्रिकोणीय हो सकता है मुकाबला
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election) की घोषणा के साथ सियासी घमासान में लेफ्ट (Left), कांग्रेस (Congress) और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंड ( ISF) एक साथ हैं और बीजेपी (BJP) और टीएमसी (TMC) से खिलाफ एकजुट होकर मुकाबला करने की घोषणा की है. ब्रिगेड मैदान में सभा के साथ इस सियासी घमासान का शंखनाद किया है और इससे फिर बंगाल की सियासत में वापसी की कोशिश कर रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में हाशिये पर पहुंचा लेफ्ट और कांग्रेस ने चुनाव के पहले एक बार फिर से एकजुट होकर जनता के विश्वास की जीतने की कोशिश कर रही है. ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस और लेफ्ट का पीरजादा की पार्टी के साथ गठबंधन के बाद उन्हें सीटों पर बढ़त नजर आ रही है और वे फिर से वापसी की कोशिश कर रहे हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) में कांग्रेस-लेफ्ट को मात्र दो सीटें मिली थीं और उनका वोट प्रतिशत सिर्फ 12 था. पार्टियां को उम्मीद है कि उन्हें आईएसएफ के समर्थन से कम से कम वे सीटें वापस मिल जाएंगीं, जो उन्होंने बीते कुछ वर्षों में खोई हैं.
बंगाल में त्रिकोणीय हो सकता है मुकाबला
पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव टीएमसी, बीजेपी और लेफ्ट-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन के बीच त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है. हालांकि अभी यह देखा जाना बाकी है कि असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) कितनी सीटों पर चुनाव लड़ती है और तृणमूल के मुस्लिम वोटों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है.
साल 2011 से टीएमसी को मिलता रहा है मुस्लिमों का वोट
हालांकि साल 2011 से, जब से टीएमसी सत्ता में है, तब से उसे दक्षिण बंगाल में भारी मुस्लिम समर्थन मिलता रहा है. धार्मिक नेताओं और प्रभावशाली मौलवियों ने मुस्लिम मतदाताओं से ममता बनर्जी की सरकार का समर्थन करने की अपील की और ममता बनर्जी को समर्थन मिला भी. मुस्लिम बहुल इलाके मालदा, मुर्शिदाबाद, और उत्तर बंगाल में उत्तर दिनाजपुर, हालांकि, बड़े पैमाने पर कांग्रेस का गढ़ रहे हैं.
मुस्लिम वोटों का हो सकता है विभाजित
अब्बास सिद्दीकी की आइसएएफ (ISF) संभावित रूप से बंगाली भाषी मुस्लिम वोटों को बिना ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के समर्थन से टीएमसी कांग्रेस-लेफ्ट के बीच तीन तरीकों से विभाजित कर सकती थी. अब जबकि आइएसएफ ने कांग्रेस-वाम के साथ गठबंधन कर लिया है, ऐसे में टीएमसी के अब संभावित रूप से कम मुस्लिम वोट मिल सकते हैं.
साल 2016 में कांग्रेस-लेफ्ट हुए थे साथ, ममता से खाई थी मात
साल 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व वामपंथी पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था उसके बावजूद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने 294 सीटों में से 211 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी. बीजेपी ने 291 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 3 सीटें जीती थीं. सीपीआई (एम) ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ कर 26 सीटें जीती थीं.
लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस को मिला था लाभ
साल 2016 में कांग्रेस ने 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती थीं. चुनाव में कांग्रेस वाम मोर्चे के गठबंधन में सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को ही हुआ था. कांग्रेस पार्टी ने मात्र 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती थीं, जबकि वाम पंथी दल 202 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 32 सीटें ही जीत पाए थे. 44 सीटें जीतने के कारण कांग्रेस को विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी मिला था.