गलतियों से नहीं सीख रहे हम, पहाड़ी इलाकों में विकास कार्यों पर सोचने की जरूरत

जो अतीत की गलतियों से नहीं सीखते हैं, वो उसी गलती को दोहराते हैं.

Update: 2021-02-08 16:16 GMT

जो अतीत की गलतियों से नहीं सीखते हैं, वो उसी गलती को दोहराते हैं. उत्तराखंड के चमोली (Chamoli) जिले में रविवार को ग्लेशियर टूटने के बाद आई बाढ़ दोबारा इसी बात की तसदीक करती है. हादसे में अब तक 14 लोगों की जानें जा चुकी हैं और 170 से ज्यादा लोगों का पता नहीं चल पाया है. इस घटना में राज्य के चार बिजली परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं, जिसमें ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट (Rishiganga Power Project) पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है.


इस हादसे के पीछे की असली वजहों का पता लगाने की कोशिश अब भी जारी है. अनुमान लगाया जा रहा है कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए ऊपरी इलाकों में जंगलों की कटाई और बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण यह हादसा हुआ है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि अनियंत्रित रूप से पहाड़ों को तोड़ने, टनल की खुदाई करने और कमजोर पहाड़ों से पत्थर खोदने के कारण ये हादसा हमारे सामने है. एक्सपर्ट भी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स को लेकर इलाके में सुरक्षा स्थिति पर चिंता जता चुके हैं.

पिछली आपदा से नहीं ली कोई सीख?

2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड में 98 कुल चालू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट (सभी क्षमता के) हैं, जिनकी कुल क्षमता 3,600 मेगावाट है. इनमें से करीब 1,800 मेगावाट केंद्र सरकार की परियोजनाएं हैं और 503 मेगावाग प्राइवेट सेक्टर के हैं. राज्य सरकार उत्तराखंड में 336 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पहुंचाने का लक्ष्य तय कर रही है, जिसकी कुल क्षमता 27,000 मेगावाट से भी ज्यादा होगी.

सात साल पहले जून 2013 में, इसी तरह की घटना केदारनाथ में हुई थी जिसमें 5,000 से ज्यादा लोगों की जानें गई थी और राज्य की आधारभूत संरचनाओं का व्यापक तौर पर नुकसान हुआ था. उस घटना ने पहाड़ी क्षेत्र की नाजुक स्थिति को सहज रूप से सामने ला दिया था. हालांकि भयानक बर्बादी के बाद राज्य ने खुद को दोबारा खड़ा किया.

एक्सपर्ट कमिटी ने पावर प्रोजेक्ट्स को लेकर उठाए थे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने जून 2013 की आपदा और उत्तराखंड में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के प्रभाव व पर्यावरण नुकसान की जांच के लिए केंद्र सरकार को एक एक्सपर्ट कमिटी बनाने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने कहा था, "बादल फटने से पहले हुई बर्फबारी ने भी केदारनाथ के नजदीक चोराबारी लेक को सैलाब बनने में मदद की थी, जिसके कारण भयानक तबाही ने बड़े स्तर पर जानमाल का नुकसान पहुंचाया. मौजूदा परियाजनाओं, निर्माणाधीन और प्रस्तावित प्रोजेक्ट के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन की जरूरत है."

एक्सपर्ट कमिटी ने बताया था कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स का उत्तराखंड आपदा (2013) में बहुत बड़ा रोल था और सरकार को इन परियोजनाओं के पर्यावरण प्रणाली में सुधार करने की तत्काल जरूरत है. कमिटी ने राज्य में अध्ययन किए गए 24 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स में से 23 को खत्म किए जाने की सिफारिश की थी.

2019 में, ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के निर्माण पर चेतावनी देते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई. याचिका में कहा गया था कि यह प्रोजेक्ट रैणी गांव के लोगों के लिए खतरनाक है. इसके अलावा इस प्रोजेक्ट ने इलाके में स्टोन क्रशिंग को लेकर सरकार के बने नियमों की अनदेखी की. याचिका में घटिया इंजीनियरिंग और निर्माण स्थल से धूल/गंदगी हटाने को लेकर भी चिंता जताई गई थी.

रविवार को चमोली में हुए हादसे की असल वजह अभी साफ नहीं है. लेकिन यह घटना पर्यावरणीय दृष्टिकोण से नाजुक हिमालयी जल बहाव क्षेत्र में विकास कार्यों पर दोबारा सोचने का एक गंभीर मामला बनकर सामने आया है.


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