क्या यह आवश्यक नहीं सोनिया, राहुल और प्रियंका हार की जिम्मेदारी लेने की घोषणा करते?

कांग्रेस को संचालित करने के तौर-तरीकों से नाखुश नेताओं का समूह अपनी सक्रियता बनाए हुए है

Update: 2022-03-19 17:09 GMT
कांग्रेस को संचालित करने के तौर-तरीकों से नाखुश नेताओं का समूह अपनी सक्रियता बनाए हुए है। इस सक्रियता के बीच पार्टी नेतृत्व यानी गांधी परिवार ने चुनाव वाले राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों से त्यागपत्र मांग लिए। इससे यही साबित हुआ कि गांधी परिवार पांच राज्यों में पार्टी की पराजय के लिए अपनी कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं।
हैरानी यह है कि कोई भी कांग्रेसी नेता ऐसा कुछ कहने को तैयार नहीं कि चुनाव वाले राज्यों में जब सारे फैसले परिवार के लोगों यानी सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी ने लिए, तो फिर हार का ठीकरा राज्य अध्यक्षों पर क्यों फोड़ा जा रहा है? जहां चुनाव के चार-पांच महीने पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी की पहल पर पंजाब में मुख्यमंत्री बदला गया, वहीं उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की ओर से उन सारे बड़े नेताओं को किनारे कर दिया गया, जो राज्य में कुछ असर रखते थे।
क्या यह आवश्यक नहीं था कि सोनिया, राहुल और प्रियंका कम से कम हार की जिम्मेदारी लेने की घोषणा करते? उनके रवैये से यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि वे पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली करने वाले नहीं और पांच राज्यों में हार की समीक्षा के नाम पर लीपापोती ही होने वाली है। आश्चर्य नहीं कि इस बार भी पिछले मौकों की तरह हार की समीक्षा तो की जाए, लेकिन उससे कोई सबक न सीखे जाएं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी तक वह एंटनी रपट सामने नहीं आ सकी है, जिसे 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद तैयार किया गया था।
यह तो समय ही बताएगा कि जी-23 समूह के नेताओं की सक्रियता के क्या नतीजे सामने आएंगे, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि समस्या केवल इतनी भर नहीं है कि गांधी परिवार मनमाने तरीके से फैसले ले रहा है, बल्कि यह भी है कि कांग्रेस ऐसा कोई एजेंडा नहीं पेश कर पा रही है, जिससे देश की जनता उसकी ओर आकर्षित हो सके। यदि कल को जी-23 नेताओं के दबाव में गांधी परिवार पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली कर दे या फिर सामूहिक नेतृत्व की उनकी मांग को पूरा कर दे, तो भी बात बनने वाली नहीं है। बात तब बनेगी, जब कांग्रेस का चिंतन बदलेगा। कांग्रेस वामपंथी दलों की तरह जिस प्रकार इस पर जोर देने लगी है कि सब कुछ सरकार को करना चाहिए, उससे वह देश को कोई ठोस दिशा नहीं दे सकती।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय 
Tags:    

Similar News

-->