दो मोर्चों पर जंग

ताइवान के अलगाववादी ताइवान की ‘स्वतंत्रता’ की रक्षा कर पाने की अमेरिका की क्षमता पर सवाल उठा रहे थे

Update: 2022-03-03 07:01 GMT
By NI Editorial
ताइवान के अलगाववादी ताइवान की 'स्वतंत्रता' की रक्षा कर पाने की अमेरिका की क्षमता पर सवाल उठा रहे थे। उन्हें इस बात से मायूसी हुई कि अमेरिका सीधे तौर पर यूक्रेन की मदद के लिए वहां नहीं पहुंचा। ऐसे में सवाल उठा कि क्या चीन ने हमला किया, तो अमेरिका सचमुच उसके बचाव के लिए आएगा?
यूक्रेन संकट के कारण अमेरिका के यूरोप में अधिक उलझते जाने से चीन विरोधी अमेरिकी लॉबी आशंकित थी। उसकी तरफ से कहा जा रहा था कि इस संकट का फायदा चीन उठा रहा है, जिससे उसका प्रभाव और बढ़ सकता है। दूसरी तरफ ताइवान के अलगाववादी ताइवान की 'स्वतंत्रता' की रक्षा कर पाने की अमेरिका की क्षमता पर सवाल उठा रहे थे। उन्हें इस बात से मायूसी हुई कि अमेरिका सीधे तौर पर यूक्रेन की मदद के लिए वहां नहीं पहुंचा। ऐसे में सवाल उठा कि क्या अगर चीन ने अपने एकीकरण अभियान के तहत उस पर हमला किया, तो अमेरिका सचमुच उसके बचाव के लिए आएगा? तो इस सवाल का जवाब देने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों का एक दल ताइवान भेजा, जो वहां की राजधानी ताइपेई पहुंच गया है। इस प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व अमेरिकी सेना के पूर्व जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ माइक मलेन कर रहे हैं। जाहिर है, बाइडेन प्रशासन के इस कदम से चीन भड़क उठा है। इसके साथ ही अमेरिका टू फ्रंट वॉर की चर्चा फिर से गर्म हो गई है। क्या सचमुच अमेरिका एक साथ चीन और रूस दोनों के साथ युद्ध करने की तैयारी कर रहा है? या फिर वह सिर्फ युद्ध का माहौल बनाए रखना चाहता है, जिससे उसके रणनीतिक हित सधें?
खुद अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद- खास कर इस सदी में में अमेरिका के सैन्य अभियानों का रिकॉर्ड बेहतर नहीं है। वह अफगानिस्तान से लेकर इराक, सीरिया, लीबिया या सोमालिया- कहीं भी अपने घोषित उद्देश्य हासिल नहीं कर सका। जबकि वे सभी कमजोर देश थे। अब यूक्रेन के मामले में भी यही जाहिर हुआ है कि अमेरिका रूस से सीधा सैनिक टकराव लेने के मूड में नहीं है। बल्कि जाहिर यह हुआ है कि अपने रणनीतिक हित साधने के लिए अपने यूरोपीय और एशियाई सहयोगी देशों को इकट्ठा करने की नीति पर चल रहा है। संभवतः मकसद यह है कि ये देश उसकी तरफ से लड़ाई लड़ें। लेकिन इस क्रम में दुनिया के एक बड़े हिस्से में अमेरिकी वर्चस्व और उसकी सैन्य एवं आर्थिक क्षमताओं को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैँ। नतीजा है कि यूक्रेन संकट में भारत, आसियान, ब्राजील और मेक्सिको जैसे देशों ने भी उसका पूरा साथ नहीं दिया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया, यह अमेरिका के लिए आत्म-चिंतन का विषय होना चाहिए।
Tags:    

Similar News

-->