विटामिन की कमी
हर पांच में से दो बच्चों को समुचित मात्रा में विटामिन ए नहीं मिल पा रहा है
भारत में हर पांच में से दो बच्चों को समुचित मात्रा में विटामिन ए नहीं मिल पा रहा है. प्रतिष्ठित जर्नल बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, तमाम विकासशील देशों में यह समस्या चिंताजनक स्तर पर है. दुनियाभर में पांच साल से कम आयु के लगभग 19 करोड़ बच्चे विटामिन ए की कमी से जूझ रहे हैं. इसका मतलब यह है कि हर तीन में से एक बच्चे के साथ यह समस्या है.
मानव शरीर की कई महत्वपूर्ण कोशिकीय प्रक्रियाओं में इस विटामिन की आवश्यकता होती है. इनमें आंखों की दृष्टि, शारीरिक विकास, घावों का ठीक होना, कोशिकाओं का पुनरुत्पादन, रोगों से बचाव के लिए प्रतिरोधक क्षमता आदि उल्लेखनीय हैं. हालांकि यह समस्या देश के कई राज्यों में है, लेकिन राज्यों के भीतर कुछ इलाकों में अधिक गंभीर है.
जो क्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं, जहां रोगों, विशेषकर संक्रामक रोगों, का प्रकोप अधिक है और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है, वहां अधिक बच्चे इस अहम विटामिन की कमी का सामना कर रहे हैं. हालांकि विटामिन ए की कमी तथा विटामिन ए युक्त भोजन की उपलब्धतता में कमी के बीच का ठोस संबंध पर इस सर्वेक्षण में नहीं पाया गया है, पर इसके बारे में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
पोषणयुक्त भोजन के द्वारा ही विटामिन ए की समुचित मात्रा प्राप्त की जा सकती है, लेकिन भारत समेत सभी विकासशील एवं अविकसित देशों में पोषणयुक्त भोजन से आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा वंचित है. इन देशों में संक्रामक बीमारियों का भी बड़ा जोर है तथा सुधार के बावजूद शिशु मृत्यु दर भी बहुत अधिक है. यदि बच्चों में विटामिन ए की कमी होती है, तो इसका असर जीवनभर बरकरार रह सकता है.
हमारे देश में इसे बहुत पहले से नियंत्रित किये जा सकने वाले एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिन्हित किया गया है और 2006 से ही पांच से नौ साल आयु के बच्चों को अधिक मात्रा में विटामिन ए मुहैया कराने की सलाह सरकार द्वारा दी जाती रही है. इस संबंध में जागरूकता प्रसार के लिए भी प्रयास होते रहे हैं. चाहे विटामिन की कमी हो या संक्रामक बीमारियों का प्रकोप, ये सब कुपोषण की समस्या से जुड़े हुए हैं.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, हमारे देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से आधे से अधिक की स्थिति गंभीर है. ठीक से भोजन न मिलने तथा विटामिनों की कमी से कुपोषित बच्चों के बीमार पड़ने, यहां तक की उनकी मृत्यु हो जाने, की आशंका बढ़ जाती है. केंद्र सरकार ने स्वच्छता पर जोर देने के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिए अनेक पहलें के है, जिनमें पोषण अभियान भी शामिल है. साल 2018 से शुरू इस अभियान के तहत बच्चों के साथ किशोरों, गर्भवती स्त्रियों और स्तनपान करा रहीं महिलाओं के पोषण पर भी ध्यान दिया जा रहा है. आशा है कि जल्द ही हमारे बच्चे सुपोषित हो सकेंगे.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय