हिमाचल में चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने दृष्टिपत्र या घोषणापत्र की तैयारी में व्यस्त हैं। ऐेसे में दो प्रश्न उठते हैं। क्या घोषणाओं और विजन के बीच कभी सत्ता का तालमेल बना। क्या आम नागरिक की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करती ईमानदारी दिखाई दी। इसी तरह नीतियों का जिक्र भी होगा, क्योंकि विजन के कार्यान्वयन में ईमानदार-पारदर्शी नीतियां चाहिएं। वर्तमान सरकार के दौर में या इससे पहले की सरकारों ने लगातार स्थानांतरण नीति को लेकर बड़े बयान दिए या समितियों तक का गठन किया, लेकिन नतीजा वही ठन-ठन गोपाल। हर सरकार अपने खर्च घटाने का वादा करती है, लेकिन सियासी प्राथमिकताएं सारे धन को निचोडऩे के बाद उधार की चटनी चाट रही हैं। अब तो विजन सीधे-सीधे मुफ्त की रेवडिय़ों से मात खा रहा है और जब राजनीतिक गारंटी योजनाओं के तहत चुनाव को परिभाषित होते देखेंगे, तो पता चलेगा कि प्रदेश को अब आर्थिक कंगाली से कोई नहीं बचा सकता। क्या प्रदेश के विजन ने सामाजिक सुरक्षा के मामलों में गुणवत्ता हासिल कर ली या ऐसी शर्तें व नियम लागू कर दिए जिनके तहत सरकारी कार्य-संस्कृति सुदृढ़ हो गई। हम विजन को सजावटी तो बना सकते हैं, लेकिन राजनीतिक उदारता के पाखंड में राज्य के यथार्थ को उज्ज्वल नहीं कर सकते।
हिमाचल में प्रशासनिक व आर्थिक सुधारों की जबरदस्त जरूरत है, ताकि यह अपने कद, भौगोलिक, सांस्कृतिक-सामाजिक व आर्थिक परिस्थिति के अनुकूल आगे बढ़ सके। आश्चर्य तो यह है कि अब प्रदेश का अपना कोई मौलिक व यथार्थवादी बजट नहीं बनता, लिहाजा दिल्ली के बजट से ही रास्ते निकाले जाते हैं। हम लगभग यह मान चुके हैं कि यह प्रदेश अब सिर्फ ऋण उठाकर ही चलेगा। हम यह भी मान चुके हैं कि हर सरकार को अपनी घोषणाओं में सबसे अधिक स्थान कर्मचारी व सरकारी नौकरी के फार्मूलों को देना है। हम यह भी मान चुके हैं कि सत्ता के दोहन में महारत हासिल करते हुए, प्रदेश से अत्यधिक कैसे न कैसे मिलना चाहिए। इसलिए क्षेत्रवाद फैलाया जाता रहेगा और वित्तीय अनुशासन के विषय गौण होंगे। प्रदेश के लिए सबसे बड़ा विजन तो हिमाचल का अपव्यय घटाने और आय बढ़ाने को लेकर पैदा करना होगा और इसके लिए आवश्यक है कि आगामी सरकार में वित्त मंत्रालय का प्रभार किसी स्वतंत्र मंत्री को दिया जाए। मुख्यमंत्री के पास पीडब्ल्यूडी व जल शक्ति जैसे विभाग नहीं होने चाहिएं। एक शपथपत्र यह भी जारी हो कि पूर्व सरकारों द्वारा शुरू किए गए निर्माण कार्य संपन्न होंगे। हर जिला के लिए संपर्क या पालक मंत्री का प्रभार दिया जाए ताकि हर महीने कामकाज की स्वतंत्र पड़ताल की जा सके।
हर विभाग को जिलावार लक्ष्य, पंचवर्षीय विकास का खाका, विभागीय मंत्रियों के प्रादेशिक आबंटन का संतुलन और इसके अलावा बोर्ड-निगमों के उपाध्यक्षों व सदस्य के मनोनयन में सेवानिवृत्त अधिकारियों या विशेषज्ञों को स्थान दिया जाए। हर जिला में कम से कम एक मेगा प्रोजेक्ट तथा राज्य को खेल, पर्यटन व हर्बल स्टेट बनाने का संकल्प लेना होगा। शिक्षा को सरकारी नौकरी से रोजगार तक पहुंचाने के लिए स्वरोजगार अधोसंरचना, निवेश जोन, नए उपग्रह नगर, आईटी पार्क व आधुनिक बाजारों का निर्माण करने के साथ-साथ नवाचार को शिक्षा का द्वार बनाना होगा। नए कार्यालयों, स्कूल-कालेजों और अस्पतालों के खोलने पर प्रतिबंध, लेकिन हर गांव में खेल स्टेडियम, ओपन एयर जिम, हाट बाजार, मेला-त्योहार और कलाकार को अवसर देने की व्यवस्था करनी होगी। प्रदेश की सरकारी संपत्तियों का मू्ल्यांकन, चार नए शहर, छह शहरी प्राधिकरण तथा सरकारी भवनों के निर्माण तथा प्रबंधन के लिए राज्य एस्टेट प्राधिकरण का गठन भी करना होगा। इसी तरह मंदिर व्यवस्था के लिए भी राज्य स्तरीय मंदिर विकास प्राधिकरण, हाईवे टूरिज्म के तहत दर्जनों वे-साइड केंद्र तथा हर गांव से शहर तक का स्वतंत्र भूमि बैंक स्थापित करना होगा। एक साथ दो-तीन शहरों को जोड़ते हुए शहरी विकास की नई परिकल्पना के तहत अपव्यय कम तथा ढांचागत सुधार का प्रसार होगा। राज्य का भविष्य आर्थिक स्वावलंबन है और इस दिशा में कब तक मौन गवाही मिलती रहेगी।
By: divyahimachal