वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बिना भेदभाव के हो भ्रष्टाचार पर कार्रवाई
इस समय केंद्र सरकार कई व्यापारियों और नेताओं के यहां छापे डलवा रही है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
इस समय केंद्र सरकार कई व्यापारियों और नेताओं के यहां छापे डलवा रही है। इसमें सामान्यतया कोई बुराई नहीं है, क्योंकि अब से लगभग तीन सौ साल पहले फ्रांसीसी विद्वान सेंट साइमां ने जो कहा था, वह आज भी बहुत हद तक सच है। उन्होंने कहा था, 'समस्त संपत्ति चोरी का माल होती है।' फिलहाल उनके इस दार्शनिक कथन की गहराई में उतरे बिना हम यह मानकर चल सकते हैं कि कुछ हेराफेरी किए बिना बड़ा माल कमाना मुश्किल ही है।
उद्योग और व्यापार में तो पैसा बनाने के लिए कई वैध-अवैध तरीके अपनाने ही पड़ते हैं लेकिन राजनीति में भ्रष्टाचार किए बिना पैसा बनाना असंभव सा है। पिछले 70-75 साल में मैं ऐसे कई नेताओं को जानता रहा हूं, जिसके पास खाने और पहनने की भी ठीक-ठाक व्यवस्था नहीं थी लेकिन आज वे करोड़ों के मालिक हैं। पैसे के खेल ने दुनिया के सारे लोकतंत्रों को खोखला कर दिया है।
भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा है इसलिए इसकी साफ-सफाई के लिए मोदी सरकार जो कार्रवाइयां कर रही है, वह सराहनीय है लेकिन सवाल यह है कि ये सब कार्रवाइयां विरोधी दलों के नेताओं और सिर्फ उन सेठों के खिलाफ क्यों हो रही हैं, जो कुछ विरोधी दलों के साथ रहे हैं? कहते हैं कि मालवा की महारानी अहिल्याबाई ने अपने पुत्र को ही दोषी पाए जाने पर हाथी के पांव के नीचे कुचलवा दिया था।
मेरे मित्र एक नेता ने मुझसे पूछा कि चुनाव जीतने के लिए कोई मंत्र बताइए। मैंने तीन मंत्र बताए। उसमें पहला मंत्र यही था कि अपनी पार्टी के भ्रष्ट नेताओं के यहां आप छापे डलवा दीजिए। आप भारत के महानायक बन जाएंगे। लेकिन जो सरकार सिर्फ अपने विरोधियों के यहां ही छापे डलवाती है और उन नेताओं और सेठों को छोड़ देती है, जो उसके अपने माने जाते हैं, उस सरकार कीछवि चुपचाप पेंदे में बैठती चली जाती है।
इसका एक बुरा असर सत्तारूढ़ दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भी होता है। वे बेखौफ पैसा बनाने में जुट जाते हैं। अपने विरोधियों के खिलाफ की गई कार्रवाइयां कानूनी दृष्टि से तो ठीक हैं लेकिन उनका नैतिक औचित्य तभी मान्य होगा, जब वे सबके विरुद्ध एक-जैसी हों।