वैक्सीन ही भगायेगी 'कोरोना-भय'

संसद का सत्र चल रहा है और देश में कोरोना की तीसरी संभावित लहर के बारे में अलग – अलग खबरों के साथ भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किये जा रहे हैं,

Update: 2021-07-26 01:00 GMT

संसद का सत्र चल रहा है और देश में कोरोना की तीसरी संभावित लहर के बारे में अलग – अलग खबरों के साथ भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किये जा रहे हैं, इसे देखते हुए देश के नये स्वास्थ्य मन्त्री को संसद के पटल पर ही सब प्रकार के भ्रमों को दूर करते हुए देशवासियों को उन तैयारियों के प्रति आश्वस्त करना चाहिए जो सरकार कर रही है। इस सन्दर्भ में सबसे बड़ी आशंका देश में सभी लोगों को कोरोना का टीका लगाये जाने के बारे में है। अभी तक रोजाना लगभग 40 लाख लोगों के टीके लग रहे हैं जिसके मद्देनजर कुल टीकायुक्त लोगों की संख्या 42 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है जबकि लक्ष्य दिसम्बर महीने के अंत तक सभी 94 करोड़ वयस्कों को दो बार टीका लगाने का है। फिलहाल केवल आठ प्रतिशत लोगों का ही सम्पूर्ण टीकाकरण हो पाया है। यह सर्वविदित है कि कोरोना से बचाव का एकमात्र प्रमुख तरीका केवल कोरोना वैक्सीन ही है। बाकी जो अन्य तरीके हैं वे केवल संक्रमण में अवरोध पैदा करने के लिए ही हैं। जैसे कि मास्क लगाना या एक-दूसरे से जमीनी दूरी बनाये रखना। ये तरीके सम्पूर्ण टीकाकरण के बाद भी तब तक अपनाना जरूरी समझा जा रहा है जब तक कि कोरोना संक्रमण पूरी तरह खत्म ही न हो जाये। टीकाकरण का पूरा खाका संसद में रखा जाना इसलिए भी आवश्यक है जिससे लोगों का न केवल सामाजिक जीवन एहतियाती कदम उठाते हुए पटरी पर आये बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी पुराने ढांचे में वापस लौट सकें। संक्रमण के चलते सबसे बड़ा धक्का देश की अर्थव्यवस्था को ही लगा है जिसकी वजह से रोजगार धंधे सिसक रहे हैं और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। इसके समानान्तर ही जिस तरह महंगाई बढ़ी है और कोरोना काल में लोगों की आमदनी घटी है उससे उनका जीवन कष्टप्रद होता जा रहा है।

यह आश्चर्य का विषय हो सकता है कि बाजार में माल की कमी न होने के बावजूद और मांग कम होने और लोगों के हाथ में पैसा कम होने पर भी महंगाई क्यों बढ़ रही है? महंगाई बढ़ने का कारण माल की सप्लाई कम होने या बाजार में रोकड़ा की प्रचुरता होने अर्थात लोगों के पास धन की कमी न होना होता है जबकि इन तीनों में से एक भी 'कारक' अर्थव्यवस्था में नजर नहीं आ रहा है। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि कोरोना ने ऐसा डर का माहौल समूचे तन्त्र मे बनाया है जिसकी वजह से महंगाई बढ़ने के स्थापित मानकों के परखचे उड़ गये हैं।
असली सवाल इसी डर को समाप्त करके देशवासियों में निर्भयता का माहौल बनाने का है और ऐसा केवल संसद ही कर सकती है क्योंकि इसमें कहा गया एक-एक शब्द पत्थर की लकीर होता है। जैसा खबरों से पता लग रहा है कि केन्द्र सरकार के कोरोना से मुकाबला करने वाले कार्यदल ने आगाह किया है कि तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए पूरे देश में चिकित्सा तन्त्र को पहले से ही अधिकाधिक मजबूत करने की जरूरत है क्योंकि तीसरी लहर चलने पर एक दिन में चार से पांच लाख तक व्यक्ति संक्रमित हो सकते हैं जिससे बचने के लिए ऐसी प्रणाली विकसित पहले से ही करनी होगी जिससे एक दिन में संक्रमितों की संख्या किसी भी हालत में 50 हजार से ऊपर न जा सके। इसके लिए पहले से ही आक्सीजन सिलेंडरों समेत अस्पतालों में आक्सीजन सुविधायुक्त बिस्तरों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी, परन्तु समस्या केवल यही नहीं है। पिछले 32 महीनों से देश के स्कूल-कालेज बन्द पड़े हुए हैं। नैनिहालों से लेकर युवा पीढ़ी तक घर में बैठ कर ही पढ़ने के लिए मजबूर है। स्कूलों में प्रवेश पाने के लिए नई पीढ़ी के नौनिहाल घरों में ही अपने माता-पिता के साथ पढ़ाई कर रहे हैं और जो विद्यालयों में हैं उन्हें इंटरनेट के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। इनमें साठ प्रतिशत बच्चे ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं जिनके पास इंटरनेट की पर्याप्त सुविधा नहीं है। अतः इस परिस्थिति से निकलने के लिए हमें नौनिहालों से लेकर युवा पीढ़ी के जवानों तक के कोरोना वैक्सीन लगानी होगी। क्योंकि देश के अधिसंख्य अभिभावकों का मत है कि बच्चों के स्कूल तब तक नहीं खोले जाने चाहिएं जब तक कि उनके टीका न लग जाये। अभी भारत में बच्चों के टीके का परीक्षण चल रहा है। एक परीक्षण कोवैक्सीन का है दो से 17 वर्ष तक की वय के बालकों के लिए है और दूसरा जायडस-कैडिला का है जो छह से 12 वर्ष तक की आयु के बालकों के लिए हैं। जाहिर है कि स्कूल न खोलने के तरफदार माता-पिता इन वैक्सीनों के लगने का इंतजार करेंगे। मगर दूसरी तरफ कुछ ऐसे विशेषज्ञ व लोग भी हैं जो मौजूदा माहौल में ही स्कूल खोलने की वकालत कर रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों मे संक्रमण खास कर छोटे बच्चों में संक्रणम का खतरा न्यूनतम होता है। मगर इससे जाहिराना तौर पर माता-पिता का बहुमत सहमत नहीं हो सकता क्योंकि वे अपने बच्चों के साथ किसी प्रकार का खतरा मोल नहीं लेना चाहते। इसे देखते हुए ही शिक्षा के क्षेत्र में हमें डर समाप्त करने के कदम उठाने होंगे। बेशक शिक्षा भी स्वास्थ्य की भांति राज्यों का विषय है मगर राज्य सरकारें अपने बूते पर यह काम नहीं कर सकती हैं क्योंकि वैक्सीन लगाने का काम केन्द्र सरकार के हाथ में है। इसलिए बच्चों की वैक्सीन तैयार करने से लेकर उसे लगाने की रूपरेखा भारत सरकार को ही तय करनी पड़ेगी। जरूरी यह है कि हर देशवासी वैक्सीन को लेकर इस प्रकार आश्वस्त हो कि इस साल के भीतर-भीतर दो वर्ष से ऊपर की आबादी के टीका लग जायेगा जिससे पुनः जीवन सामान्य तरीके से पटरी पर दौड़ पड़े और अधमरी अर्थव्यवस्था पुनः खड़ी होकर रोजगार व काम धंधे की गारंटी दे सके।


Tags:    

Similar News

-->