वैक्सीन की कमी

कोरोना की मौजूदा लहर में जो अनेक समस्याएं सामने आ रही हैं, उनमें से एक है टीके की कमी।

Update: 2021-05-12 00:55 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कोरोना की मौजूदा लहर में जो अनेक समस्याएं सामने आ रही हैं, उनमें से एक है टीके की कमी। अगर इस समस्या के समाधान के लिए तुरंत युद्ध स्तर पर उपाय नहीं किए गए, तो यह समस्या आने वाले वक्त में और गंभीर होती जाएगी। भले ही यह लहर खत्म हो जाए, लेकिन कोरोना पर स्थाई नियंत्रण के लिए जरूरी है कि देश की कम से कम 50-60 प्रतिशत जनसंख्या को जल्दी से जल्दी वैक्सीन लगाया जाए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर इस समस्या की ओर ध्यान दिलाया है। केजरीवाल ने यह सुझाव भी दिया है कि केंद्र सरकार वैक्सीन का फॉर्मूला दो कंपनियों से लेकर ज्यादा कंपनियों को दे, ताकि वैक्सीन का उत्पादन बढ़ सके। इन दो कंपनियों को अन्य कंपनियां इसके लिए कुछ रॉयल्टी दे सकती हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि ये दोनों कंपनियां अभी तकरीबन छह-सात करोड़ खुराक ही हर महीने बना पा रही हैं और इस तरह पूरे देश के टीकाकरण में बरसों लग जाएंगे।

केजरीवाल की फिक्र जायज है, और हो सकता है कि आने वाले वक्त में और भी मुख्यमंत्री इस विषय पर कुछ बोलें। इसकी वजह यह है कि वैक्सीन की कमी का सबसे बड़ा खामियाजा राज्य सरकारों को भुगतना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने वैक्सीन के बंटवारे का जो फॉर्मूला तैयार किया है, उसके मुताबिक, राज्य सरकारों को कुल उत्पादन का पच्चीस प्रतिशत ही मिलेगा, जबकि 18 से 44 की उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही है। फिर अलग-अलग राज्यों से मांग के मुताबिक वैक्सीन न दिए जाने की शिकायतें भी मिल रही हैं। एक दिन पहले ही केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस मुद्दे पर विवाद हो चुका है। हो सकता है कि माहौल को कुछ सौहार्दपूर्ण बनाने के लिए ही केजरीवाल ने यह चिट्ठी लिखी हो। बहरहाल, वैक्सीन की कमी की शिकायतें लगभग हरेक जगह से मिल रही हैं और 18 से 44 आयुवर्ग के लोगों के लिए टीके लगवाना तकरीबन असंभव हो रहा है। यह स्थिति अभी बनी रहेगी, क्योंकि वैक्सीन की मांग बहुत है और आपूर्ति उसके मुकाबले काफी कम। केंद्र सरकार ने वैक्सीन निर्माताओं को पहले क्या सोचकर ऑर्डर दिए थे, यह नहीं मालूम, मगर उसके जो भी पूर्वानुमान थे, इस दूसरी लहर ने उसे तहस-नहस कर दिया है। अचानक संक्रमण के बढ़ने से लोग डर गए और टीका लगवाने दौड़ पड़े। बढ़ते दबाव में सरकार ने 18 से 44 की उम्र के लोगों को भी टीका लगाने की घोषणा कर दी, जबकि इसके लिए जमीनी तैयारी नहीं थी। नतीजतन, एक किस्म की अफरातफरी का माहौल बन गया है। हालात ऐसे हैं कि 45 से ज्यादा उम्र के लोगों को भी टीका लगाने में दिक्कत आ रही है और अब तक देश की सिर्फ दो प्रतिशत जनसंख्या को दोनों खुराकें मिल पाई हैं। वैक्सीन का उत्पादन कंपनियां बढ़ाती हैं। उनका फॉर्मूला ज्यादा कंपनियों को मिल जाता है और एकाध नई वैक्सीन भी आती है, तब भी इसकी कमी दूर होने में दो-तीन महीने तो लग ही जाएंगे। ऐसे में, सरकार को चाहिए कि वह स्थिति का सही आकलन करे और उसके मुताबिक जनता को सही स्थिति बताते हुए टीकाकरण की योजना बनाए। यदि ऐसा न हुआ, तो अनिश्चय, अराजकता और संदेह का माहौल स्थिति को और खराब करेगा। इससे बचने की जरूरत है।


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