टीकाकरण की आखिरी चिंता

देश की 69 फीसदी से अधिक वयस्क आबादी को कोरोना टीके की एक खुराक दी जा चुकी है

Update: 2021-10-01 18:50 GMT

 Divyahimachal देश की 69 फीसदी से अधिक वयस्क आबादी को कोरोना टीके की एक खुराक दी जा चुकी है, जबकि 25 फीसदी से ज्यादा वयस्कों ने दोनों खुराकें ले ली हैं। टीकाकरण अभियान 90 करोड़ को पार कर चुका है। यकीनन यह अनपेक्षित और अविश्वसनीय लगता है। लक्ष्य बेहद करीब लग रहा है, लेकिन टीकाकरण का यह अंतिम चरण ही बेहद नाजुक और महत्त्वपूर्ण है। कोरोना वायरस के खिलाफ भारत ने कई मोर्चे जीते हैं। टीकाकरण अभियान की व्यापकता और विशालता अपने आप में कीर्तिमान है। भारत सरकार का 31 दिसंबर, 2021 तक का जो लक्ष्य है, वह अब दूर नहीं है। फिर भी आगामी तीन माह बेहद संवेदनशील हैं। करीब 100 करोड़ खुराकें और दी जानी हैं। औसतन एक करोड़ खुराक हररोज दी जानी चाहिए। उसके बाद कोरोना प्रतिरोधक क्षमता के संदर्भ में भारत को सुरक्षित कवच के दायरे में आंका जा सकता है। वैसे सितंबर माह के दौरान औसतन 76 लाख खुराकें रोज़ाना दी गई हैं। यह आंकड़ा जुलाई माह से काफी बेहतर रहा है, क्योंकि इस दौरान का औसत टीकाकरण 45 लाख खुराक प्रतिदिन था। यह डाटा भी महामारी के दौर में हमें आश्वस्त करता है कि देश के छह राज्यों और संघशासित क्षेत्रों-हिमाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, अंडेमान निकोबार, चंडीगढ़ और सिक्किम-में 100 फीसदी लोगों को कमोबेश टीके की एक खुराक दी जा चुकी है।

करीब 25 राज्य ऐसे हैं, जहां करीब 80 फीसदी लक्ष्य हासिल किया जा चुका है। यकीनन ये सुखद और सकारात्मक आंकड़े हैं, जो कल्पनातीत भी लगते हैं, लेकिन चिंतित सरोकार यह है कि अब भी 24 फीसदी वयस्क आबादी ऐसी है, जिसने टीके की एक खुराक तक नहीं ली है-बिल्कुल खुराकहीन! लिहाजा भारत सरकार और टीकाकरण के पैरोकारों तथा संचालकों के लिए महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर 30 करोड़ के करीब आबादी टीकाकरण से वंचित क्यों रही? उन्हें एक भी खुराक क्यों नहीं दी जा सकी? क्या उस आबादी में टीके के प्रति खौफ या इंकारी की मानसिकता अब भी है? इस मुद्दे को संबोधित करना लाजिमी है, क्योंकि वह आबादी किसी भी स्तर पर संक्रमण फैला सकती है और हमारा अभी तक का अभियान आधा-अधूरा साबित हो सकता है। इस आबादी में 60 साल और उससे ज्यादा की उम्र वाले लोग हैं। यही अति संवेदनशील और कमज़ोर जमात है, जो संक्रमण की चपेट में आसानी से आ सकती है। इसी से मौत के आंकड़े भी बदल सकते हैं। ये आंकड़े तब सामने आए हैं, जब महामारी और संक्रमण विशेषज्ञ अब भी एक संभावित तीसरी लहर को लेकर सरोकार जता रहे हैं। मौत की दर उस समूह से करीब 50 गुना ज्यादा बढ़ सकती है, जिन वरिष्ठ नागरिकों ने टीके की कमोबेश एक खुराक ले रखी है।
टीके का सुरक्षा औसत इतना शानदार और साबित सामने आया है। हालांकि अब टीकों की आपूर्ति का संकट अपेक्षाकृत समाप्त हो चुका है, लिहाजा इतने व्यापक स्तर पर टीकाकरण संभव हो रहा है, फिर भी टीकाकरण अभियान 2022 में जरूर जाएगा। यानी दिसंबर, 2021 तक ही टीकाकरण का प्रथम चरण सम्पन्न नहीं होगा, क्योंकि अब भी कोविशील्ड टीके की आपूर्ति तय लक्ष्य से पीछेे चल रही है। विशेषज्ञ त्योहारी मौसम के बाद तीसरी लहर की आशंकाएं जता रहे हैं, लिहाजा बेहतर होगा कि हम दशहरा, दीवाली अपने घर में ही मनाएं और बाज़ारों की भीड़ से दूर ही रहें। यह डाटा भी सामने आया है कि टीके के प्रति संकोच या इंकार ग्रामीण आबादी में ही नहीं है, बल्कि शहर की पढ़ी-लिखी जमात में दिखा है। उसके बुनियादी कारण क्या हैं? क्या यह आबादी किसी बीमारी के कारण टीकाकरण में शामिल नहीं हुई है या कोई अन्य ठोस कारण है, इसका खुलासा स्थानीय प्रशासन के स्तर पर किया जाना चाहिए। यह पहल भी सरकार को ही करनी पड़ेगी। फिलहाल कोरोना संक्रमण देश भर में काफी कम हुआ है। सक्रिय मरीजों की संख्या भी तीन लाख से कम हुई है। अस्पतालों में मारा-मारी की स्थिति नहीं है। कोरोना वायरस शांत लग रहा है। विशेषज्ञों के एक समूह का यह मानना है कि कोरोना का संक्रमण भी नजला-जुकाम और खांसी जैसा प्रभावी हो सकता है। बहरहाल आखिरी चरण की चिंता गंभीर है, क्योंकि वहीं से तीसरी लहर की दशा-दिशा तय हो सकती है। आगामी समय त्योहारी सीजन का है, इसलिए भीड़-भड़क्का खूब होगा। ऐसी स्थिति में ही कोरोना संक्रमण बढ़ता है। अतः हमें इससे बचना है।


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